मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : अली-राजन गठबंधन

मुंबई का माफियानामा : अली-राजन गठबंधन

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

अली बुदेश के गिरोह सरगना अरुण गवली और सुभाष सिंह ठाकुर से संबंध टूट गए…
अचानक उसे बीमारी हो चली…
बीमार अली के कुछ समय में आपराधिक संसार से संपर्क टूट गए…
अब वह फिर एक गठबंधन बनाना चाहता था…
…जब वह काम करने लायक हुआ, उसके कुछ समय बाद ही बहरीन गुप्तचर पुलिस ने खूंखार इस्लामी आतंकवादी ओसामा बिन लादेन और अल कायदा नेटवर्क से संबंधों के शक में उसे गिरफ्तार कर ३ माह से अधिक जेल की सलाखों के पीछे सड़ा दिया। उसके खिलाफ कुछ न मिला तो बहरीन गुप्तचर विभाग ने रिहा कर दिया, लेकिन तब तक मुंबई के आपराधिक संसार पर उसका नियंत्रण खत्म हो गया।
बैंकॉक में छोटा शकील और दाऊद द्वारा छोटा राजन पर करवाए जानलेवा हमले के बाद अली ने उससे हाथ मिलाने की कोशिश की। राजन ने इसमें रुचि न दिखाई। इसके बाद अली पूरी तरह अकेला पड़ गया और लाख कोशिशों के बावजूद वापसी नहीं कर पाया।
वह लगभग जून २००३ के अंतिम सप्ताह की बात होगी, जब फजलू, बंटी पांडे, हेमंत पुजारी, एजाज लकड़ावाला के राजन गिरोह से बाहर आने के बाद अली को फिर मौका मिला। उसने फजलू को बबलू के जरिए अपने साथ काम करने के लिए पटाया और वे साझा संगठन बनाकर साथ काम करने लगे। फजलू ने दिल्ली में कई लोगों का अपहरण कर भारी मात्रा में फिरौती वसूली की।
मुंबई में फजलू द्वारा फिल्मी हस्तियों को हफ्ते के लिए धमकाने और हफ्तावसूली करने के पीछे अली बुदेश का ही दिमाग माना गया। अली को मुंबई की भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, वित्तीय बल्कि आपराधिक गतिविधियों की अच्छी जानकारी है, क्योंकि उसका बचपन घाटकोपर की मख्दूम शाह दरगाह के इर्द-गिर्द बीता है। उसने आपराधिक दुनिया में प्रवेश ही दाऊद गिरोह के सिपहसालारों और शूटरों के बीच रहते किया था।
उनके गठबंधन की काफी सूचनाएं बांद्रा अपराध शाखा के अफसरान द्वारा अली-फजलू के एक हफ्ताखोर दिनेश शेट्टी की गिरफ्तारी के बाद हुई पूछताछ से मिली थीं। और हां, यह बताना तो रह ही गया कि अली और राजन के बीच गठबंधन नहीं हो सका तो उसके पीछे अविश्वास ही एक बड़ा कारण रहा था।
गिरोहों में ये आम कहा जाता है:
-जबी दिल नहीं मिलेंगा, तो हाथ मिलाके फायेदा क्या।
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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