विमल मिश्र
कैनेडी ब्रिज से जुड़ी ग्रांट रोड की एक प्रमुख सड़क महान स्वतंत्रता सेनानी विट्ठल भाई पटेल के नाम पर है। विट्ठल भाई लौहपुरुष वल्लभ भाई पटेल के बड़े भाई थे। उन्हें केंद्रीय धारा सभा का पहला भारतीय अध्यक्ष होने का गौरव हासिल है।
कैनेडी ब्रिज से जुड़ी ग्रांट रोड की एक प्रमुख सड़क विट्ठल भाई पटेल की याद दिलाती है, जिनका अपने छोटे भाई सरदार वल्लभ भाई पटेल की ही तरह मुंबई से गहरा नाता रहा। वे कांग्रेस के उन चुने हुए नेताओं में से थे, जिन्होंने विधि और संसदीय कार्य विधानों में अपनी निपुणता से गोरे शासकों में अलग किस्म का खौफ पैदा किया। विट्ठल भाई पटेल का जन्म २७ सितंबर, १८७३ को गुजरात के खेड़ा जिले के करमसद गांव में हुआ था। करमसद और नाडियाद में प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने के बाद वे कानून की शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैंड गए। वहां से बैरिस्टरी की डिग्री लेकर १९१३ में लौटे और मुंबई और अमदाबाद में वकालत शुरू की। १९१५ में पत्नी के अचानक निधन ने उन्हें राजनीति की ओर मोड़ दिया। वे कांग्रेस में शामिल हो गए। विट्ठल भाई ने रौलट ऐक्ट और असहयोग सहित महात्मा गांधी के कई आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया। १९३० में उन्हें छह महीने की जेल की सजा सुनाई गई। कांग्रेस पार्टी के भीतर विट्ठल भाई को एक उग्र नेता के रूप में जाना जाता था, जिनके गांधीजी से कई मुद्दों पर तीव्र मतभेद रहे। जब चौरी-चौरा कांड के बाद गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तब खिन्न होकर कांग्रेस छोड़कर वे चित्तरंजन दास और मोतीलाल नेहरू की स्वराज पार्टी के साथ हो लिए। जेल से छूटकर अमेरिका सहित तमाम देशों में घूम-घूमकर उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में प्रचार किया। वियना में जब वे इलाज करा रहे थे, उनकी भेंट नेताजी सुभाषचंद्र बोस से हुई।
विट्ठल भाई-जो अपने जोशीले व तार्किक भाषणों की वजह से बहुत कामयाब वकील थे, अब चिंतनपरक लेखों के अलावा विधि विषयक और संसदीय विधि-विधानों के सूक्ष्म ज्ञान के लिए भी जाने जाने लगे। मुंबई का मेयर व बॉम्बे कौंसिल का सदस्य रहने के बाद २४ अगस्त, १९२५ को वे केंद्रीय धारा सभा के पहले भारतीय अध्यक्ष चुने गए। एक साहसिक नेता के रूप में उनके संसदीय निर्णय आज तक मानक बने हैं, जिन्होंने गोरी सरकार को नाकों तले चने चबवा दिए थे। पं. मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में स्वराज पार्टी ने जब धारा सभा से बहिर्गमन किया था, उस समय उन्होंने कोई भी विवादास्पद बिल सदन में उपस्थित करने से गोरी सरकार को रोक दिया। उन्होंने अधिवेशन के दौरान पुलिस को केंद्रीय एसेंबली हॉल में प्रवेश करने से रोका ही नहीं, जब सरकार सार्वजनिक सुरक्षा बिल को पास कराने पर आमादा थी, उन्होंने खुद के निर्णायक मत से उसे अस्वीकृत भी करा दिया। १९३० में कांग्रेस ने जब धारा सभाओं का बहिष्कार आरंभ किया तो विट्ठल भाई ने उसकी अध्यक्षता से इस्तीफा दे दिया।
छोटे भाई से नहीं बनी
विट्ठल भाई सरदार वल्लभ भाई पटेल के सगे बड़े भाई थे, पर दोनों भाइयों के बीच रिश्ते आजीवन तल्ख ही रहे। इसकी शुरुआत कानून की पढ़ाई के लिए उनके विदेश जाने को लेकर शुरू हुई थी। राजनीति में आते ही यह दरार दिन-ब-दिन और चौड़ी होती गई। जहां वल्लभ भाई हमेशा गांधीजी को अपना पथ प्रदर्शक मानते थे, वहीं विट्ठल भाई ने समर्थन के साथ कई बार उनके राजनीतिक दर्शन और सिद्धांतों की खुलकर मुखालफत भी की। मृत्यु से पहले अपनी वसीयत में विट्ठल भाई ने दो-तिहाई हिस्सा राष्ट्रीय कार्यों में खर्च के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नाम कर दिया। वल्लभ भाई ने इसे बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी। हाई कोर्ट ने वल्लभ भाई को ही बड़े भाई की संपत्ति का कानूनी वारिस मानते हुए वसीयत को रद्द कर दिया। वल्लभ भाई ने यह संपत्ति विट्ठल भाई मेमोरियल ट्रस्ट को देने की घोषणा की। नेताजी ने इसके विरुद्ध अपील की, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया।
२२ अक्टूबर, १९३३ को जेनेवा (स्विट्जरलैंड) में विट्ठल भाई का निधन हो गया। उनके पार्थिव शरीर को मुंबई लाया गया, जहां १० नवंबर, १९३३ को तीन लाख लोगों ने अश्रुपूरित आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी। धारा सभा से उन्हें जो वेतन मिलता था, उसका बड़ा अंश विट्ठल भाई महात्मा गांधी को भेंट कर देते थे। इस तरह एकत्र ४० हजार रुपए से एक बालिका विद्यालय की स्थापना की गई, जिसका उद्घाटन गांधीजी ने ३१ मई, १९३५ को किया। गुजरात विधानसभा का भवन विट्ठल भाई के नाम पर है। उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया गया है।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)