विमल मिश्र
मुंबई
दूर-दूर तक पसरी हरियाली, शुद्ध आबो-हवा, दुर्लभ फल-फूल व वनस्पतियां और साथ में पक्षियों का गुंजार कलरव। मानसून पूरी रवानी पर है और कर्नाला पक्षी अभयारण्य अपनी पूरी शोभा पर। महाराष्ट्र का पहला पक्षी अभयारण्य यही है।
मुंबई के कंक्रीट जंगल और पागल भागदौड़ से ताजगी भरा एक ब्रेक चाहिए तो पर्वतों और घने जंगलों के बीच हरे-भरे कर्नाला चले आइए। पक्षी दर्शन के लिए ही नहीं, पिकनिक और ट्रैकिंग के लिए भी और इतिहास की वीथियों में सैर-सपाटे के वास्ते भी। दूर-दूर तक पसरी हरियाली, शुद्ध आबो-हवा, दुर्लभ फल-फूल व वनस्पतियां और साथ में पक्षियों का गुंजार कलरव। मानसून पूरी रवानी पर है और कर्नाला पक्षी अभयारण्य अपनी पूरी शोभा पर। आने का माकूल वक्त यही है बारिश की शुरुआत। या फिर अक्टूबर से अप्रैल।
बोरीवली नेशनल पार्क और तुंगारेश्वर के साथ १२.११ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पैâला मुंबई का यह अपना वन अभयारण्य कर्नाला माथेरान व कर्जत के पास रायगढ़ जिले में और मुंबई-पुणे राष्ट्रीय राजमार्ग से पनवेल से महज १२ किलोमीटर दूर स्थित है। अभयारण्य सुबह सात बजे से दोपहर तीन बजे तक खुला रहता है। यहां आप होटलों और रिसॉर्ट्स के साथ दो सरकारी विश्राम गृहों में भी ठहर सकते हैं। महाराष्ट्र का पहला पक्षी अभयारण्य यही है। यहां आनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज का कर्नाला किला जाना नहीं भूलते, जो यहां मुश्किल से एक घंटे की चढ़ाई पर है।
१९६८ में स्थापित कर्नाला पक्षी अभयारण्य फ्लेमिंगों व ४० प्रकार के प्रवासी पाखियों सहित पक्षियों की २२२ से अधिक प्रजातियों का घर है, जो यहां के ३३ पक्षी गृहों में रहते हैं। बहुत सारे और वन्यजीवों के साथ (कुछ समय पहले ही यहां एक तेंदुआ भी देखा गया।) इनमें कई दुर्लभ हैं। कर्नाला तितलियों की ११४ प्रजातियों का भी बसेरा है। कई प्रकार के औषधीय गुणों वाले पेड़-पौधे भी यहां मिलते हैं।
दूर देश के पक्षी
यूरोप, मध्य एशिया व आस्ट्रेलिया के अलावा साइबेरिया और टुंड्रा जैसे ठंडे इलाकों से हजारों की तादाद में फ्लेमिंगों और दूसरे पक्षी गुजरात के कच्छ के रण में ब्रीडिंग के बाद सर्दियां शुरू होने पर, भोजन की तलाश में कर्नाला के फ्लैटबेड्स और वेटलैंड में बसेरा करने साल-दर-साल आते हैं और करीब छह महीने-मानसून की पहली बरखा होने तक यहां रहते हैं और फिर मूल स्थानों की ओर लौट जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों से इन नभचरों ने यहां से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया है। हजारों की उनकी तादाद लगातार गिरते हुए अब सैकड़ों में रह गई है। उनकी प्रजातियां भी कम हो रही हैं। इसके लिए बारिश व मौसम में बदलाव, बच्चों के बड़े होने में लगने वाला वक्त, भोजन की कम उपलब्धता सहित कई कारक जिम्मेदार हैं। पक्षियों को आकृष्ट करने के लिए उन्हें रुचने वाले फल-फूल वाले जैसे पेड़-पौधे चाहिए वे अब पहले जितने नहीं रहे। वातावरण और ध्वनि प्रदूषण ने स्थिति को विकट कर दिया है। इंप्रâास्ट्रक्चर डिवलपमेंट के साथ वन क्षेत्रों के गिर्द लगातार शहरीकरण भी इन पंछियों की बेरुखी के कारण हैं। वेटलैंड्स, मडफ्लैट और झील जैसे इलाके-जहां ये पंछी ब्रीडिंग और फीडिंग किया करते हैं-रिहाइश और उद्योग-धंधों के लिए खाड़ी को पाटे जाने, मिट्टी जमते जाने से खाड़ी के जरूरत से ज्यादा उथला होने, कचरा फेंकने और शिपिंग ऐक्टिविटीज की वजह से सिकुड़ते जा रहे हैं। औद्योगिक कांप्लेक्स से समुद्र में रासायनिक उत्सर्जन, सीवरेज और तेल रिसाव जारी है। मछुआरों और शिकारियों द्वारा आखेट अन्य बड़े कारण के रूप में उभरा है।