मुख्यपृष्ठखबरेंमुंबई मिस्ट्री : मुंबई है देश की स्वातंत्र्य राजधानी

मुंबई मिस्ट्री : मुंबई है देश की स्वातंत्र्य राजधानी

विमल मिश्र
मुंबई

देश की स्वतंत्रता के इतिहास में महाराष्ट्र सरीखा योगदान कहीं और नहीं मिलता। मुंबई तो देश की आर्थिक राजधानी ही नहीं, स्वातंत्र्य राजधानी भी है।

महाराष्ट्र ने केंद्रीय सत्ता के रूप में पहले सातवाहन व वाकाटक और फिर कलचुरी, चालुक्य, यादव, खिलजी और बहमिनी वंशों का शासन देखा, जो बाद में बिखरकर छोटी-छोटी सल्तनतों में बदल गया। मराठा राज्य का सूर्य चढ़ा १७ वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज के आगमन के साथ। छत्रपति शिवाजी महाराज और कुछ हद तक उनके पुत्र संभाजी ने बिखरी ताकतों को एकबद्ध कर तान्हाजी मालसुरे, कान्होजी आंग्रे और अपने विश्वस्त सिपहसालारों के साथ शक्तिशाली सैन्य बल का संगठन किया और निजामशाही और मुगलों से जमकर लोहा लेते रहे।
मुंबई की तस्वीर १९ वीं सदी के शुरुआती दशकों में शेष महाराष्ट्र से बिलकुल अलग थी। १८२४ और १८२८-३० के दौरान मुंबई में कोलियों की इंफेंट्री में विद्रोह जरूर हुआ था, पर कैप्टेन एलेक्जेंडर व कैप्टेन मैकिंटोश के नेतृत्व में अंग्रेजी फौजों ने उसे दबा दिया था।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मुंबई
१८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ने मुंबई में भी रंग दिखाया। ब्राह्मण, बैरागियों और भिक्षुओं के दल शहर में जगह- जगह फैलने लग गए। विद्रोह की शुरुआत शहर की २९ हिंदुस्तानी रेजिमेंट व पलटनों में से तीन में असंतोष पैâलने से हुई। इनमें मरीन बटालियन की १० वीं और ११ वीं मरीन पलटनें भी थीं। भयभीत गोरों ने अपने परिवारों को एहतियातन समुद्र में नौकाओं पर भेज दिया और खुद घरों में दुबककर ‌छिप बैठे। अनहोनी रोकने के लिए इंग्लैंड से आई अंग्रेज सैनिकों की टुकड़ियां मुंबई में दाखिल होने लगीं। इनमें १९ सितंबर को आया सर ह्यूज रोज का काफिला भी था। स्थिति काबू आते ही सभी बागियों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। १५ अक्टूबर, १८५७ को मरीन बटालियन के ड्रिल हवलदार सैयद हुसैन और १० वीं रेजिमेंट के सिपाही मंगल गुदड़िया मुश्कें कसकर आजाद मैदान के ‘फांसी तालाब’ पर घसीट लाए गए, उनकी पीठें तोप के मुंह से बांधी गर्इं और बहुत निर्ममता से उन्हें गोलों से उड़ा दिया गया। इतिहास की किताबों में इसे ‘बॉम्बे प्लॉट’ के नाम से जाना जाता है। १८५७ के बाद तो स्वतंत्रता संग्राम की कोई भी कहानी महाराष्ट्र के सपूतों की चर्चा के बिना पूरी नहीं होती। राजगुरु ने तो सांडर्स के वध में भगत‌सिंह और सुखदेव के साथ फांसी का फंदा चूमा।

मुंबई में राजनीतिक चेतना की शुरुआत ३१ जनवरी, १८८५ को डॉ. दादाभाई नौरोजी द्वारा बॉम्बे प्रेसिडेंसी असोसिएशन की स्थापना से हो गई थी। यही वर्ष था, जब गवालिया टैंक के पास एक हाल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। १९०५ में ‘बंग भंग’ से जब स्वदेशी आंदोलन ने जोर पकड़ा, तब उसका सबसे ज्यादा असर मुंबई पर पड़ा, जो अपनी नवस्थापित मिलों से देश के विशालतम औद्योगिक क्षेत्र के रूप में उभर रहा था। महाराष्ट्र में उसकी अगुवाई कर रहे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक की २२ जुलाई, १९०८ को गिरफ्तारी से यह आंदोलन भीषण हो उठा।

तिलक और गांधी का युग
१९वीं सदी के अंतिम और २०वीं सदी के प्रारंभिक दो दशकों तक-गांधी युग के उदय से पहले तिलक ने देश की भावभूमि पर एकछत्र राज किया। गणेशोत्सव के माध्यम से महाराष्ट्रवासियों को उन्होंने प्राणवान कर दिया था। खुद पर चले राजद्रोह के मुकदमे के दौरान उन्होंने नारा दिया, ‘स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा’,जो देश के जन-जन की अभिव्यक्ति बन गया।
महात्मा गांधी १९१५ में दक्षिण अफ्रीका से लौटे, तब से अपने पांच आंदोलनों में से दो की कर्मभूमि उन्होंने मुंबई को बनाया और वर्धा को आश्रम। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन ने उन्हें विश्वनायक बना दिया। १९१७ से १९३४ तक मणिभवन ही उनका घर रहा। विनायक दामोदर सावरकर जैसे क्रांतिकारी, बाबासाहेब आंबेडकर सरीखे लोक उन्नायक और सरोजिनी नायडू व अरुणा आसफअली सरीखे महाराष्ट्र के नेताओं ने मुंबई को अपना कर्मक्षेत्र बनाया, तो जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, लाला लाजपत राय, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी जैसे बाहर के नेताओं के लिए मुंबई दूसरे घर जैसा रहा। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई देश की स्वातंत्र्य राजधानी भी है- उतनी ही, जितनी राजनीतिक राजधानी दिल्ली।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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