मुख्यपृष्ठस्तंभमुंबई मिस्ट्री : बलिदानी बाबा राव सावरकर

मुंबई मिस्ट्री : बलिदानी बाबा राव सावरकर

विमल मिश्र, मुंबई

‘सावरकर’ नाम से भला कौन अपरिचित है! सुनते ही पहला नाम ध्यान में आता है विनायक दामोदर सावरकर का। अव्वल पंक्ति के स्वतंत्रता सेनानी, अंडमान सेल्यूलर जेल में दोहरी आजीवन कारावास वाले ‘कालापानी’ के वैâदी, ‘देशप्रेमियों की गीता’ कहलानेवाली ‘१८५७ का स्वातंत्र्य समर’ के लेखक और कितनी ही किंवदंतियों के नायक। सच्चाई यह है ‌कि सावरकर परिवार में हर किसी का बलिदान अपने आप में मिसाल है।
४ जुलाई, १९११ को विनायक दामोदर सावरकर को जब सेल्यूलर जेल में बंद रखा गया, तब उनके बड़े भाई गणेश सावरकर (प्रचलित नाम ‘बाबा राव’) भी काला पानी की सजा पाकर इसी जेल में बंद थे। छोटे भाई डॉ. नारायण सावरकर अमदाबाद में वायसराय लॉर्ड मिंटो और लेडी मिंटो पर बम फेंकने के आरोप में गिरफ्तार रह चुके थे। १९४८ में महात्मा गांधी की हत्या हो गई थी, तब महाराष्ट्र के बहुत से ब्राह्मण नाराज लोगों के कोप का निशाना बने थे। इसमें बुरी तरह घायल होने के बाद नारायण सावरकर की जान चली गई थी। इसे ही आजाद भारत की पहली ‘मॉब लिंचिंग’ कहा जाता है। जब अंग्रेज महाराष्ट्र के स्वतंत्रता सेनानियों के पीछे हाथ धोकर पड़े थे। सावरकर परिवार की महिलाएं पेट पर बम बांधकर गर्भवती स्त्री का रूप धारण कर उन्हें एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाती रहीं।
१८७९ में नासिक नगर के निकट भागपुर में जन्मे बाबा राव सावरकर तीनों सावरकर भाइयों में सबसे बड़े थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा भी नासिक में ही हुई। शुरू में उनकी रुचि धर्म, योग, जप, तप आदि विषयों की ओर थी, पर जब उन्होंने नजदीक से सामान्य जनता पर अंग्रेजी राज के अत्याचार देखे तो सशस्त्र क्रांति समर्थक बन गए। युवाओं में देशभक्ति जागृत करने के लिए उन्होंने ‘मित्रमेला’ नामक संगठन बनाया और सार्वजनिक रूप से राष्ट्रगुरु रामदास स्वामी, छत्रपति शिवाजी महाराज, नाना फडणवीस आदि महापुरुषों की जयंती और पुण्यतिथि मनानी शुरू कर दी। अभिनव भारत सोसायटी उस समय अपनी तरह का पहला क्रांतिकारी संगठन था, १९०४ में जिसकी स्थापना में सावरकर भाइयों का हाथ था। दासता के पाश से मुक्ति के लिए अभिनव भारत सोसायटी युवाओं को हथियार बांटा करती थी। विनायक दामोदर सावरकर जब इंग्लैंड चले गए तो बाबाराव ने उनके क्रांतिकारी साहित्य और देशभक्ति की कई रचनाएं प्रकाशित कराईं और उनका वितरण किया। उन्होंने स्वयं भी कई पुस्तकें लिखीं। इनमें दुर्गानंद और गोलवलकर के छद्म नामों से लिखी पुस्तकें भी थीं। उनकी ‘इंडिया एज ए नेशन’ को सरकार ने जब्त कर लिया था। बाबाराव हिंदी के कट्टर समर्थक थे।
नासिक षड्यंत्र
१९०९ में नासिक के अत्याचारी अंग्रेज कलेक्टर ए. एम. टी. जैक्सन की अनंत कान्हेरे नामक क्रांतिकारी ने हत्या कर डाली थी। जांच के बाद अंग्रेजी अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि इस कांड के पीछे सावरकर बंधुओं का ही दिमाग था। १९०९ में गणेश को गिरफ्तार कर लिया गया और देशद्रोह के आरोप में आजीवन वैâद की सजा देकर अंडमान की सेल्यूलर जेल में बंद कर दिया। १९२१ में वे भारत लाए गए, जहां उन्हें एक और वर्ष की कैद साबरमती जेल में काटनी पड़ी।
१९२२ में रिहाई के बाद डॉ. हेडगेवार ने जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बनाया तो बाबाराव उसके संस्थापक सदस्यों में थे। अपने पुराने संगठन उन्होंने संघ में ही विलीन कर दिए। १९४५ में उनका देहांत हो गया।

(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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