विमल मिश्र मुंबई
दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से एम.डी. की डिग्री लेने के बाद डॉ. सुशीला नैयर १९३९ में भाई प्यारेलाल (जो महात्मा गांधी के निजी सचिव थे) से मिलने वर्धा के सेवाग्राम आश्रम पहुंची तो देखा हर तरफ हैजे का प्रकोप। आते ही पहला काम रोगियों की परिचर्या का आन पड़ा। बापू ने २५ साल की इस लड़की की सेवा, साहस और समर्पण देखा तो डॉ. बी.सी. रॉय से चर्चा की और उनकी सिफारिश पर अपने और कस्तूरबा के निजी चिकित्सक की जिम्मेदारी दे दी। यहां रहते १९४४ में उन्होंने आश्रमवासियों के लिए जो डिस्पेंसरी कायम की थी वह आगे चलकर कस्तूरबा अस्पताल कहलाई और १९६९ से महात्मा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान है- भारत का पहला ग्रामीण मेडिकल कॉलेज।
२६ दिसंबर, १९१४ को पंजाब के छोटे से शहर कुंजा में पैदा डॉ. सुशीला नैयर के भाई प्यारेलाल थे। लाहौर में महात्मा गांधी से हुई पहली भेंट के बाद से सुशीला उनके इर्द-गिर्द ही केंद्रित रहीं। ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के दौरान गांधीजी के साथ वे पुणे के आगा खान पैलेस में नजरबंद रहीं। यह साथ बापू के अंतिम समय तक बना रहा। ३० जनवरी, १९४८ को दिल्ली के बिड़ला भवन में जब नाथूराम गोडसे ने बापू को गोलियां मारी, तब उनके एक बगल में सुशीला नैयर खड़ी थीं और दूसरे में मनुबेन। गांधी हत्याकांड के मुकदमों में ये दोनों ही महत्वपूर्ण गवाह रहीं।
बापू की संगत में लंबे समय तक रहने के कारण सुशीला जी ने देशवासियों के स्वास्थ्य से संबंधी उनकी चिंताओं को गहरे से समझा था। गांधीजी की हत्या के बाद वे अमेरिका चली गर्इं, जहां उन्होंने जॉन हॉपकिंस स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से सार्वजनिक स्वास्थ्य में दो डिग्रियां लीं। १९५० में भारत लौटकर अपना जीवन देश में जन स्वास्थ्य की सुविधाएं बेहतर बनाने को समर्पित कर दिया। इसकी शुरुआत उन्होंने फरीदाबाद में टी.बी. सेनेटोरियम की स्थापना से की। गांधी मेमोरियल लेप्रोसी फाउंडेशन का प्रधान पद संभाला। फिर वर्धा, झांसी समेत देश में कई पिछड़े इलाकों में अस्पतालों की स्थापना की। जीवनभर वे डॉक्टरों को ग्रामीण क्षेत्र में जाने को प्रेरित करती रहीं।
देश की स्वास्थ्य मंत्री
सुशीला जी ने अपनी राजनीतिक पारी १९५२ में दिल्ली से शुरू की, जहां पहली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री का पद संभाला। फिर १९५५ से १९५६ तक विधानसभा अध्यक्ष रहीं। संसद में चार कार्यकालों के दौरान उन्होंने केंद्र सरकार में भी १९६२ से १९६७ के बीच स्वास्थ्य मंत्री का दायित्व संभाला। कांग्रेस शासन के दौरान इंदिरा गांधी से अलग हो गर्इं। जनता पार्टी में शामिल होकर वे एक बार फिर सांसद बनीं, फिर राजनीति से संन्यास ले लिया। वे आजीवन अविवाहित रहीं। ३ जनवरी, २००१ को हृदयगति रुक जाने से उनका देहांत हो गया।
सुशीला जी ने खुद को गांधीवादी आदर्श के लिए समर्पित कर रखा था। गरीब महिलाओं की घरेलू चिंताओं से जोड़ते हुए वे शराब बंदी की जीवनभर हिमायत करती रहीं। परिवार नियोजन को भी महिलाओं, विशेष रूप से गरीब महिलाओं के लिए आवश्यक सशक्तीकरण के रूप में देखती थीं। बापू और कस्तूरबा पर उनकी कई पुस्तकें चर्चित रही हैं। उनकी दो पुस्तकें शराब बंदी और परिवार नियोजन पर भी हैं।
मनुबेन
मीरा बेन और डॉ. सुशीला नैयर के साथ मनुबेन (वास्तविक नाम मृदुला गांधी) – जो गांधीजी के भतीजे जयसुखलाल अमृतलाल गांधी की बेटी थीं- महात्मा गांधी के अंतिम वर्षों में उनकी पर्सनल असिस्टेंट थीं और दिल्ली में उनकी हत्या होने के समय तक साये की तरह लगातार उनके साथ रहीं। आगा खां पैलेस में कस्तूरबा का ध्यान रखने की जिम्मेदारी मनुबेन पर ही थी। उन्होंने गांधीजी के साथ अपने जीवन पर एक डायरी लिखी है। ४० वर्ष की उम्र में अविवाहित रहते हुए उन्होंने दिल्ली में गुमनामी में दम तोड़ा।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)