मुख्यपृष्ठस्तंभमुंबई मिस्ट्री : स्वातंत्र्य कोकिला सरोजिनी नायडू

मुंबई मिस्ट्री : स्वातंत्र्य कोकिला सरोजिनी नायडू

विमल मिश्र
मुंबई

भारत में ‘महिला दिवस’ जिनकी याद में मनाया जाता है वे सरोजिनी नायडू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष और महात्मा गांधी की अनन्य सहयोगी होने के साथ ही उच्च कोटि की कवयित्री भी थीं। उन्हें ‘भारत कोकिला’ के नाम से संबोधित किया जाता है।

९ अगस्त, १९४२। देश के स्वतंत्रता इतिहास का सबसे हंगामी दिन। तड़के साढ़े चार बजे मुंबई के पुलिस कमिश्नर लाव-लश्कर के साथ बिड़ला हाउस पहुंचते हैं और कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को जगाकर भारत सुरक्षा कानून के अंतर्गत गिरफ्तार करने के बाद विशेष ट्रेन में बैठाकर विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन से फौरन रवाना कर देते हैं। महात्मा गांधी, उनके सचिव महादेव देसाई और मीराबेन के साथ चिंचवड उतरकर पुणे भेजकर वहां के आगा खां पैलेस में नजरबंद कर दिए जानेवालों में सरोजिनी नायडू भी हैं। अगले २१ महीने उन्हें यहीं कैद रहना है। पर वे मगन हैं- यहां उनके साथ बापू और कस्तूरबा जो हैं। यह साथ १९१६ से ही है।
गांधीजी का सरोजिनी नायडू का यह पुराना साथ दरअसल, १९१६ से भी पुराना-दक्षिण अफ्रीका के दिनों जितना ही पुराना है, देश की राजनीति में कदम रखने से भी पहले सरोजिनी नायडू जहां काम कर चुकी थीं। अमदाबाद में गांधीजी ने जब साबरमती आश्रम शुरू किया तो स्वाधीनता के वचननामे पर हस्ताक्षर करनेवाले आरंभिक स्वयंसेवकों में सरोजिनी भी थीं।
१३ फरवरी, १८७९ को हैदराबाद में एक बंगाली परिवार में पैदा सरोजिनी को यह स्वातंत्र्य चेतना विरासत में मिली थी। उनके पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय- जो इंग्लैंड में पढ़े डॉक्टर व वैज्ञानिक होने के साथ एक कॉलेज के प्रशासक थे- हैदराबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला सदस्य बनकर नौकरी छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ी सरोजिनी के एक भाई वीरेंद्रनाथ क्रांतिकारी थे, जिन्होंने बर्लिन कमिटी बनाने में मुख्य भूमिका निभाई थी और १९३७ में एक अंग्रेज के हाथों शहीद हो गए थे। इंग्लैंड में पढ़ाई के दौरान सरोजिनी की मुलाकात डॉ. गोविंद राजुलू नायडू से हुई, जिनसे उन्होंने अंतर्जातीय विवाह कर लिया। उस जमाने में यह किसी क्रांतिकारी कदम से कम नहीं था। उन्हें पांच बेटे-बेटियां हुर्इं, जिनमें पद्मजा नायडू मां की ही तरह कवयित्री बनने के साथ राजनीति में भी उतरीं और १९६१ में पश्चिम बंगाल की राज्यपाल बनीं।
गोलमेज सम्मेलन में
पिता अघोरनाथ, माता वरदा सुंदरी और भाई हरींद्रनाथ चट्टोपाध्याय की तरह सरोजिनी को भी काव्य सृजन की प्रतिभा विरासत में प्राप्त हुई थी। १२ साल की उम्र में मद्रास यूनिवर्सिटी में १२वीं की परीक्षा में टॉप करनेवाली सरोजिनी स्कूल की कॉपियों में बचपन से ही कविता लिखने लगी थीं। उनकी काव्य नाटिका ‘माहेर मुणीर’ से प्रभावित होकर हैदराबाद के नबाब ने उन्हें विदेश में पढ़ाई के लिए वजीफा दिया, जिसके दम पर आगे की पढ़ाई के लिए लंदन के किंग कॉलेज और फिर वैंâब्रिज यूनिवर्सिटी के गिर्टन कॉलेज चली गर्इं।
सुरीली आवाज, बच्चों सी मासूमियत, एक खास तरह का चुलबुलापन और शुद्ध भारतीयता। १९०५ में सरोजिनी की कविता ‘बुलबुले हिंद’ प्रकाशित हुई, जिसके बाद उन्हें सब जानने लगे। ‘गोल्डन थ्रैशोल्ड’ उनका पहला कविता संग्रह था। ‘बर्ड ऑफ टाइम’ और ‘ब्रोकेन विंग’ ने उन्हें ‘भारत कोकिला’ बना दिया। उनके प्रशंसकों में रवींद्रनाथ टैगोर और जवाहरलाल नेहरू खास लोगों से लेकर आमजन-सभी थे। काव्य प्रतिभा ने उन्हें कई पुरस्कार दिलाए। हिंदी, उर्दू, तेलुगु, इंग्लिश, गुजरातीऔर फारसी कई भाषाओं का ज्ञान इस सृजन में उनके उसी तरह काम आया, जिस तरह आम जनता से संपर्क में। विख्यात स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले ने उनकी कविताओं को सुनकर आग्रह किया अपनी काव्य प्रतिभा को वे स्वतंत्रता की लड़ाई में आमजन को प्रोत्साहित करने में काम में लाएं। सरोजिनी अब देश भर घूम-घूम कर लोगों में, खासकर महिलाओं में आजादी के लिए ललक जगाने लगीं। उन्होंने महिलाओं एवं बच्चों के लिए अहम कार्य किए।
१९१७ में उन्होंने वूमंस इंडियन एसोसिएशन बनाने में सहयोग किया। एसोसिएशन की अध्यक्ष एनी बेसेंट के साथ वे संयुक्त प्रवर समिति में महिलाओं के मतदान अधिकार की पैरवी के लिए लंदन भेजी गर्इं। १९२८ में अमेरिका जाकर उन्होंने वहां के लोगों से स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग मांगा। १९२५ में कानपुर में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ तो चुनाव में जीत कर सरोजिनी कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष बनीं। १९३० के नमक सत्याग्रह में जब गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया था, तब उन्होंने ही गांधीजी की जगह कमान संभाली। शासन की मांगों को लेकर संवैधानिक सुधारों के लिए १९३१ में जब लंदन में दूसरा गोलमेज सम्मेलन हुआ, तब उसमें गांधीजी और महामना मदनमोहन मालवीय के साथ शामिल होनेवालों में से सरोजिनी नायडू भी थीं। भारत में प्लेग की महामारी के दौरान काम के लिए मिला अपना ‘वैâसर-ए-हिंद’ का खिताब उन्होंने ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों के विरोध में लौटा दिया। १९४७ में देश की आजादी के बाद सरोजनी जी को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनाया गया। इस पद पर पहुंचने वाली वे देश की पहली महिला थीं। २ मार्च, १९४९ को ऑफिस में काम करते हुए उन्हें हार्ट अटैक हुआ और वे चल बसीं। उनकी जयंती के अवसर पर ‘महिला दिवस’ १३ फरवरी, १९६४ को भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया।

(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)

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