मुख्यपृष्ठस्तंभमुंबई मिस्ट्री : गुमनाम बलिदानी आजादी के-भाग - १

मुंबई मिस्ट्री : गुमनाम बलिदानी आजादी के-भाग – १

विमल मिश्र
मुंबई

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई देश की स्वातंत्र्य राजधानी भी है -उतनी ही, जितनी राजनीतिक राजधानी दिल्ली। देश की आजदी के इतिहास में महाराष्ट्र सरीखा योगदान किसी और राज्य का नहीं है। इनमें महात्मा गांधी, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, गोपालकृष्ण गोखले, दादाभाई नौरोजी, वीर सावरकर और विनोबा भावे सरीखे महानायक भी हैं, तो स्वतंत्रता की बलिवेदी पर आत्मोत्सर्ग कर देने वाले गुमनाम सिपाही भी।

उमाजी नाईक, वासुदेव बलवंग गोगाटे, अक्कानाथ व लहूजी राघोबा साल्वे
पुणे ने कई क्रांति नायक और स्वतंत्रता सेनानी दिए, जिनसे शनिवार वाडा, गणेशखिंड रोड, सदाशिव पेठ, नारायण पेठ और दक्कन जैसे स्थान संबद्ध हैं। उमाजी नाईक (१७९१-१८३२) संभवत: इनमें पहले थे। मराठा साम्राज्य के पतन के तुरंत बाद उन्होंने वीर लड़ाकों की एक छोटी-सी फौज खड़ी की और एक घोषणापत्र जारी कर ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध खुला जेहाद छेड़ दिया। उनकी गिरफ्तारी पर १०,००० रुपए का इनाम घोषित किया गया। एक साथी की दगाबाजी से वे पकड़े गए और ३ फरवरी, १८३२ को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।
क्रांतिगुरू लहूजी वस्ताद या लहूजी राघोबा साल्वे (१७९४-१८८१) को देशप्रेम के साथ कुश्ती का शौक भी विरासत में मिला था। पुणे के गंजपेठ में उनकी अपनी व्यायाम शाला थी और ‘वस्ताद’ (उस्ताद) उनका विशेषण। युवकों को ‌अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत के लिए ललकारते वे इस व्यायामशाला में उन्हें सैन्य प्रशिक्षण दिया करते। महात्मा फुले के सत्यशोधक समाज से जुड़कर उन्होंने दलितोद्धार के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किए। १४ नवंबर को उनका जन्मदिन ‘राष्ट्रीय स्वातंत्र्य संकल्प दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। मुंबई का गवर्नर सर हटसन पुणे में फर्ग्यूसन कॉलेज की एक सभा में भाग लेने के बाद जब लौट रहा था, तब रास्ते में पुणे के जांबाज युवक वासुदेव बलवंग गोगाटे ने उसकी छाती पर निशाना साध कर गोली दाग दी। बुलेट प्रूफ जैकेट पहने होने से हटसन की जान बच गई। गोगाटे को १२ वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। अक्कानाथ ११ अगस्त, १९४२ को ‘भारत छोड़ो’ के दौरान पुणे में एक जुलूस का नेतृत्व करते हुए पुलिस की गोली का शिकार बन गए।
इनायतुल्ला खान, विलायत खान, नवाब कादर खान व दीदार खान
१८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब अंग्रेज शासन के ‌विरुद्ध लड़ाई जारी थी इनायतुल्ला खान, विलायत खान, नवाब कादर खान व दीदार खान नामक क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर ९ अगस्त, १८५७ को नागपुर के जुम्मा गेट (गांधी गेट) पर फांसी पर लटका दिया गया था।

वीर बाबूराव पुल्लेसुर शेडमाके
चंद्रपुर के एक राजघराने में जन्मे मध्य भारत के गोंड नेता, ‌जिन्होंने १८५७ के पहले स्वतंत्रता संग्राम में अपनी आहुति दी। १९५८ में सात महीनों तक उन्होंने छापामार युद्ध से ब्रिटिश शासन के दांत खट्टे कर दिए। अंग्रेजों ने पकड़कर उन्हें फांसी पर लटका दिया। गोंडवाना क्षेत्र में उनकी जयंती और पुण्यतिथि आज भी बहुत आदर के साथ मनाई जाती है।

सखाराम गोडे
क्रांतिकारी गतिविधियों के चलते नासिक में कपड़े के व्यवसायी सखाराम गोडे पर सरकारी जासूसों की कड़ी नजर थी। १९१० में षड़यंत्र के आरोप में वे बंदी बने, जो जेल से उनकी मृत देह ही वापस आ पाई। अब्दुल्ला खलीफा, मोहम्मद हुसैन, सुलेमान शाह, इस्राइल अल्लारक्खा, शबन भिकारी, बुद्धु फरीद व मौलाना अब्दुल गफूर १९१९ – २० के असहयोग और खिलाफत आंदोलनों के दौरान मालेगांव शहर पर क्रांतिकारियों ने कब्जा कर लिया था। उन्होंने मालेगांव किले से ब्रिटिश ध्वज हटाकर भारतीय ध्वज फहरा दिया और शाह सुलेमान मियां की अगुवाई में भारत की अपनी सरकार कायम की। पुलिस और आंदोलनकारियों की झड़प में एक सिपाही ने जान गंवा दी। इसपर ब्रिटिश पुलिस ने शहरवासियों पर बहुत जुल्म ढाए। अनगिनत लोगों के येरवडा जेल में ठूंस दिया गया। १२ लाख रुपए का सामूहिक जुर्माना भी लगाया गया। विद्रोही गतिविधियों में भाग लेते हुए शराब की दुकानों पर पिकेटिंग करने वाले अब्दुल्ला खलीफा और मोहम्मद हुसैन को तीन वर्ष की सजा सुनाई गई, पर इसी वर्ष अगस्त में पुलिस की असहनीय यातनाओं से दोनों की जेल में ही जान चली गई।

रामाबामा कोली
रामाबामा कोली कोकण के कुलाबा जिले के किसान स्वतंत्रता सेनानी, जो २५ सितंबर, १९३० के सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान चिरनेर के अक्कादेवी मैदान में पुलिस की गोली का निशाना बने।

अण्णा होरे, कुंदा कुंभार व किसन अहीर
अण्णा होरे सांगली जिले के सपूत थे, जिन्होंने १९३० के सविनय अवज्ञा आंदोलन में महाराष्ट्र के विभिन्न स्थानों पर जाकर क्रांतिकारी युवकों को संगठित किया। उन्होंने भारतीय फौजों के बीच गुप्त रूप से पर्चे बांटे और अंग्रेजों की तरफ से द्वितीय विश्व युद्ध के समय लड़ने से रोकने का आह्वान किया। ‘भारत छोड़ो’ के दौरान गोरी सरकार ने अण्णा होरे की सारी संपत्ति जब्त कर ली। पुलिस के शारीरिक अत्याचारों से फरवरी, १९४३ में जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई। कुंदा कुंभार सांगली के भंगा मालगांव के निवासी थे, जिन्होंने इसी आंदोलन के दौरान ५ सितंबर, १९३० को बिलाशी में हुए पुलिस फायरिंग में जान निछावर कर दी थी। सांगली जिले के ही मंजूर में किसन अहीर २५ फरवरी, १९४६ में सरकारी रेल, डाक-तार व्यवस्था का जब विध्वंस करने में लगे थे एक गोली आकर उन्हें लगी और उनके प्राण-पखेरू उड़ गए।
(जारी)

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