मुख्यपृष्ठस्तंभमुंबई मिस्ट्री : नारी शिक्षा का पहला कदम

मुंबई मिस्ट्री : नारी शिक्षा का पहला कदम

विमल मिश्र मुंबई

डी. एन. रोड की भीतरी गलियों में जे. बी. पेटिट गर्ल्स हाई स्कूल नामक गौरवशाली संस्था है। यह याद दिलाती है मेरी प्रेस्कॉट नामक एक अंग्रेज महिला की, जो मुंबई में नारी शिक्षा की अलख जगाने डेढ़ सौ वर्ष पहले मुंबई आई थीं।

जिस काल में देश में लड़कियों की शिक्षा वर्जना मानी जाती थी मुंबई को शिक्षा संस्थाओं के जरिए महिला सशक्तिकरण के लिए देश में पहला कदम उठाने का श्रेय हासिल है। डी. एन. रोड के भीतर की गलियों में जे. बी. पेटिट गर्ल्स हाई स्कूल नामक गौरवशाली संस्था आज भी मौजूद है, याद दिलाती हुई मेरी प्रेस्कॉट नामक एक अंग्रेज महिला की, जो डेढ़ सौ वर्ष से भी पहले, १८६० के दशक में अकेले मुंबई आई थीं।
मिस प्रेस्कॉट ने यह स्कूल १८६० में मुंबई के उदारमना रईसों के चंदे से बनवाया था। इसके लिए जमीन भेंट की थी तत्कालीन गवर्नर सर बार्टले प्रâेयर ने। शुरू में इसे मिस प्रेस्कॉट फोर्ट इंग्लिश स्कूल के नाम से जाना जाता था। यह स्कूल था तो क्रिश्चियन स्कूल पर ईसाई-गैर ईसाई की बंदिशों से दूर। फोर्ट के इस इलाके को मिस प्रेस्कॉट के सम्मान में प्रेस्कॉट रोड के नाम से जाना जाने लगा। आज इसका नया नाम है घनश्याम तलवलकर मार्ग।
नारी शिक्षा का पहला कदम
१९१५ में मिस प्रेस्कॉट फोर्ट इंग्लिश स्कूल के पास जब सारी जमा-पूंजी समाप्त हो गई तो इसे वैâथेड्रल गर्ल्स स्कूल के साथ मिलाया जाना तय हुआ। अगर ऐसा होता तो यह पूरी तरह क्रिश्चियन संस्था हो जाती। नामचीन पारसी धनिक जहांगीरजी बोमनजी पेटिट (जे. बी. पेटिट) ने इस आधार पर इसे बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी कि ईसाई संस्था होने से वैâथेड्रल स्कूल भारतीय बच्चों के साथ भेदभाव करेगा।
उस जमाने के जाने-माने दानी-धर्मी प्रेमचंद रायचंद स्कूल के लिए ५०,००० रुपए का योगदान करने को तैयार थे, पर इस शर्त के साथ कि स्कूल सभी धर्मों व समुदायों की भारतीय लड़कियों के लिए खुला रहेगा और उन्हें प्रवेश देते समय उनकी संख्या या फीस का कोई आग्रह नहीं रखा जाएगा। न्यायालय ने एकीकरण के खिलाफ पैâसला सुनाया। जे. बी. पेटिट ने भी स्कूल को वित्तीय सहायता प्रदान की और इस तरह यह बच गया।
१८७८ में जब स्कूल बनकर तैयार हुआ तो इसकी लागत आई ७८००० रुपए। सर बार्टले प्रâेयर और रेवरेंड डब्ल्यू. के. फ्लेचर के योगदान की स्मृति में स्कूल का नाम अब हो गया प्रâेयर-फ्लेचर स्कूल। १९३८-४० के बीच दो मंजिला नई इमारत के रूप में स्कूल और समृद्ध हो गया।
स्कूल ने अस्तित्व रक्षा के लिए कई झंझावात झेले। आर्थिक परेशानियों से १९१५ में एक बार फिर इसके बंद होने की नौबत भी आ गई और उसे पास की बैस्टन रोड पर मौजूद वैâथेड्रल एंड जॉन कॉनन मिडिल स्कूल में अपना अस्तित्व होम करना पड़ा था। स्कूल इसके बाद जे. बी. पेटिट और एक ट्रस्टी बोर्ड के सीधे नियंत्रण में आ गया। १९२१ में इसने नया नाम धरा ‘न्यू हाई स्कूल फॉर गर्ल्स।’ जे. बी. पेटिट के निधन के बाद से यह फिर से उन्हीं के नाम से पुकारा जा रहा है।
प्रेस्कॉट रोड दूसरे विश्व युद्ध में ब्रिटिश सेना का महत्वपूर्ण ठिकाना थी। अंग्रेज फौजों की फील्ड इंटेलिजेंस यूनिट यहीं के क्वींस मैंशन से काम करती थी। पास ही आपको पारसी लाइंग इन हॉस्पिटल, केमोल आर्ट गैलरी, ज्ञानप्रवाह सेंटर, क्वींस मैंशन, वेंकटेश चैंबर्स, डीबीएस हेरिटेज हाउस और बॉम्बे जिमखाना की स्क्वैश कोर्ट्स के दर्शन होंगे। ट्रैफर्ड हाउस और यंग लेडीज हाई स्कूल जैसी कुछ इमारतें तो १८८२ – १८८९ के जमाने की हैं। वर्षों पहले यह इलाका कुछ रहस्यमयी घटनाओं के लिए चर्चा के केंद्र में आया, जब यहां के सोराब मैंशन में रहने वाले कई लोगों ने सूर्यास्त के बाद धुंधलके में यहां एक पारसी दंपति को प्रार्थना करते देखा और ‘प्रेत बाधा’ दूर करने के लिए उन्हें पंडितों और मौलवियों की मदद लेनी पड़ी।

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