विमल मिश्र
मुंबई
पूरे महाराष्ट्र में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी के उपयोग का प्रचार करते हुए जुलूसों का तांता लगा था, जिनमें कई का नेतृत्व कर रही थीं महिलाएं। १९२० में महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन पहला ऐसा आंदोलन था, जिसने बड़ी संख्या में महिलाओं ने भाग लिया। शृंंखला की अंतिम कड़ी।
जब औरतों की दुनिया चूल्हे-चौके और घर-आंगन तक ही सीमित थी देशसेविका संघ, हिंद महिला समाज, भगिनी समाज और राष्ट्रीय स्त्री सभा जैसे दर्जनों महिला संगठनों ने उन्हें घरों की ड्योढ़ी से बाहर निकाला और अलग पहचान दी। १९२० में महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन पहला ऐसा आंदोलन था, जिसने बड़ी संख्या में महिलाओं ने भाग लिया। उन दिनों पूरे महाराष्ट्र में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी के उपयोग का प्रचार करते हुए जुलूसों का तांता लगा था, जिनमें कई का नेतृत्व कर रही थीं महिलाएं। उन्होंने विदेशी वस्त्रों का उपयोग बंद कर खादी पहनना शुरू कर दिया था। जब तिलक स्वराज फंड लॉन्च किया गया, तो उन्होंने देह पर पहने आभूषण तक उतारकर दान कर दिए थे। शहर की सड़कों पर… ध्वज वंदन सभाओं व प्रभात फेरियों में… विदेशी वस्त्र और शराब बेचने वाली दुकानों के खिलाफ धरनों में… व्यस्त जंक्शनों पर पर्चे और हैंडबिल बांटते… कॉलेज गेट और रेलवे व बस स्टेशनों पर नारे लगाते – जहां देखो हाथ में तिरंगा लिए महिलाएं ही महिलाएं दिखती थीं। स्वतंत्रता संग्राम का कई महिलाओं ने वंचित और अनपढ़ साथिनों को साक्षर और आत्मनिर्भर बनाने में भी उपयोग किया, ताकि वे स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी बढ़ा सकें।
सितंबर, १९३० में कांग्रेस और देशसेविका संघ की महिलाओं ने विधानमंडलों के लिए मतदान को बाधित करने के लिए धरना दिया। इसमें लगभग ३८० महिलाओं को गिरफ्तार किया गया। जब देशसेविका संघ पर प्रतिबंध लगा तो ५,००० महिलाओं ने आजाद मैदान तक विरोधस्वरूप मार्च किया। नमक सत्याग्रह के दौरान महिलाओं के समूह हर रोज समुद्र का पानी लाते थे, कांग्रेस हाउस व दर्जनों अन्य स्थानों पर इसे सीमेंट के चूल्हों पर उबालकर प्रतिबंधित नमक बनाकर उसे बेचते थे और उन्हें गिरफ्तारी का सामना करना पड़ता था। १३ अप्रैल, १९३० को चौपाटी की रैली में १,००० से अधिक महिलाएं थीं।
रमा खांडवाला
सौ को छूती उम्र में रमा खांडवाला टूरिस्ट गाइड का काम करते हुए अजूबा भले लगतीं, पर यह उनकी रोजी-रोटी थी। इसके लिए वे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से सम्मानित हो चुकी हैं। इस उम्र में भी उनकी यह चुस्ती-फुर्ती नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज के दिनों की देन थी, जिसकी रानी झांसी ब्रिगेड में वे राइफल और ब्रेनगन धारी सेकेंड लेफ्टिनेंट हुआ करती थीं।
दुर्गा भागवत
असत्य, अन्याय और बेईमानी के विरुद्ध दुर्गा भागवत की लेखनी आग थी तो दलित, वंचित व शोषितों के लिए मरहम और लोरी। मराठी साहित्य में उन्होंने जो नाम कमाया, उसके पीछे ब्रितानी हुकूमत के विरुद्ध संघर्ष के उनके अनुभव भी थे।
लीलावती मुंशी
पति कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी की ही तरह स्वतंत्रता सेनानी और लेखक। नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल गर्इं। बम्बई विधानसभा और राज्यसभा की कांग्रेस सदस्य रहीं। फिल्मों में अश्लीलता के विरुद्ध १९५९ में सिनेमैटोग्राफ अधिनियम में संशोधन उन्हीं की देन है।
क्रांति सीतलवाड
महात्मा गांधी जब पुणे के आगा खां पैलेस में नजरबंद थे साबरमती जेल में बंद निर्मला देसाई नामक एक गर्भवती सत्याग्रही ने कन्या को जन्म दिया। गांधीजी के सुझाव पर उसका नाम ‘क्रांति’ रखा गया। अगस्त क्रांति मैदान में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की जो जनसभा हुई थी, उसमें शामिल होते वक्त क्रांति की उम्र केवल १२ वर्ष थी। इस सभा का प्रवेशपत्र आज तक उन्होंने संभालकर रखा है। इंदिरा गांधी ने जो ‘वानरसेना’ बनाई थी, वे उसकी सदस्य थीं। उनके दादा हरिप्रसाद देसाई गांधीजी और सरदार वल्लभभाई पटेल के अनन्य सहयोगी थे। इंदिराजी विले पार्ले के एक स्कूल में उनकी वरिष्ठ थीं। आजादी की लड़ाई में उन्हें पति जगदीश सीतलवाड का पूरा साथ मिला।
कावेरीताई पाटील
चार बार ठाणे महानगरपालिका में नगरसेवक रहीं कावेरीताई पाटील को ठाणे जिले का पहला सत्याग्रही होने का गौरव हासिल है, जिसके लिए ठाणे और येरवडा जेलों में उन्होंने वैâद भुगती। उनके पति गुलाबराव पाटील भी स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं। गवालिया टैंक पर १९४२ के ‘भारत छोड़ो’ में तालुका मुख्यालय तक आंदोलनकारियों के एक मोर्चे का नेतृत्व करते समय वे एक बार फिर गिरफ्तार हुर्इं। उनका बेटा उनके बंदीकाल में ही हुआ।
मथुराबाई लोटलीकर
गिरगांव की इस पीटी टीचर ने, जो कभी कांग्रेस सेवा दल की कमांडर रही-एक नहीं, नौ बार गोरे शासन के सींखचों में जेल काटी। गजब का दुस्साहस दिखाते हुए एक बार उन्होंने एंबुलेंस कर्मचारी के वेश में जाकर वहां झंडा फहरा दिया, जहां ब्रिटिश पुलिस का भारी पहरा था। चंपूताई गणपतराव और फातिमा अली उनकी समकालीन थीं।
रमाबाई कामदार
रमाबाई कामदार ने पति एन. एच. कामदार के साथ सरोजिनी नायडू की होम लीग और सविनय अवज्ञा आंदोलनों में योगदान दिया। इन आंदोलनों में कांग्रेस बुलेटिनों के प्रकाशन की जिम्मेदारी संभाली, जिसके लिए गिरफ्तार हुर्इं। वनिता विश्राम और गुजराती हिंदू स्त्री मंडल जैसे महिला संगठनों से संयुक्त होकर महिलाओं को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ा।
(लेखक ‘नवभारत टाइम्स’ के पूर्व नगर संपादक, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं।)