विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
असली मन्या सुर्वे के तो वह पासंग बराबर न था। मन्या को वह जानता तक न था। उसने तो बस मन्या पर बनी फिल्म देखी और फिर वह जुनून की हद तक मन्या का दीवाना हो गया। उसका नाम है ‘राहुल काला उर्फ रवि उर्फ मन्या।’
फरवरी २०१४ के अंतिम सप्ताह में बवाना में दोहरी हत्या के दो आरोपी मुंबई माफिया पर बनी हिंदी मसाला फिल्मों से बेतरह प्रभावित थे। एक ने अपना नाम मन्या सुर्वे के नाम पर रखा, दूसरे ने एक फिल्मी खलनायक ‘कातिया’ का नाम ओढ़ लिया।
दिल्ली के तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस आयुक्त आऊटर संजय कुमार के मुताबिक, सुलतानपुर डबास में दो भाइयों के हत्याकांड में दीपक उर्फ कातिया को पुलिस दस्ते ने गिरफ्तार किया। वह सुलतानपुर डबास का निवासी है। उनके मुताबिक, हत्याकांड में दीपक कातिया के साथ राहुल काला और रवि उर्फ मन्या भी थे।
२८ फरवरी को सुलतानपुर डबास गांव के निवासी दो भाइयों कप्तान सिंह और साहब सिंह की हत्या महज कार मे लगी एक खरोंच के चलते हो गई। इस बात के लिए तीनों ने सिंह बंधुओं को गोली मार दी क्योंकि उनके बीच वाहन खड़े करने का विवाद हो गया। हत्यारों के नाम पंकज बावनिया, दीपक उर्फ कातिया और राहुल काले था। सिंह भाइयों का चैंपियन टैंपो घर के बाहर खड़ा था। हत्यारों की स्कोडा कार गली में न घुस पाई। गुस्से में कार चालक रवि उर्फ मन्या पहलवान ने हॉर्न तेजी से बजाया। साहब सिंह ने रिक्शा हटा लिया। कार आगे जाते समय रिक्शे की हल्की टक्कर लग गई। उनके बीच विवाद हो गया। तीनों आरोपी कार से बाहर आए और साहब सिंह को पीटने लगे। कप्तान सिंह उसे बचाने आया। उसे भी तीनों ने पीटा। सिंह भाइयों ने बचाव करना चाहा तो हत्यारों ने हथियार निकाले, गोलियां बरसा कर दोनों को ढेर किया व भाग निकले।
कप्तान के बेटे सागर सिंह ने हमलावरों का पीछा किया तो हमलावरों ने उस पर भी गोलियां दागीं। वारदात में इस्तेमाल स्कोडा कार पैरोल से फरार नीरज बावनिया के भाई पंकज की थी। बावनिया गिरोह के सरगना नीरज बावनिया का सगा भाई पंकज है। नीरज पैरोल तोड़ कर फरार है।
१५ अप्रैल २०१४ की सुबह नीरज बावनिया गिरोह के ये गुंडे पुलिस मुठभेड़ के बाद प्रह्लादपुर गांव के पास पकड़े गए। उनके खेड़ा खुर्द गांव जाने की सूचना थी। उनका इरादा नीतू दबोढा गिरोह के सदस्य राजेश उर्फ दुर्मठ की हत्या करने का था। राहुल और रवि पर एक-एक लाख रुपए का इनाम था। उनसे दो विदेशी पिस्तौलें, सात गोलियां, चली गोलियों के दो खोके मिले। उनकी वह मारुति स्विफ्ट कार भी जब्त हुई, जिसमें वे सवार थे।
राहुल बावनिया गिरोह का सबसे सक्रिय सदस्य था। वह जरा सी बात पर हथियार निकाल कर गोलियां बरसाने लगता था। सन २०११ में एक बार बवाना में उसने पुलिस दस्ते का आमना-सामना होते ही पिस्तौल से गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। वह हरियाणा के बाहरी इलाकों में हफ्ता वसूली करता था। उसका भाई नवीन उर्फ बाली जेल में है। रवि भी उसकी तरह निशानची और हफ्ताखोर है।
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, पूछताछ में पता चला कि रवि ने मुंबई के खतरनाक हत्यारे और सरगना मन्या सुर्वे से प्रभावित होकर ‘मन्या’ नाम रखा। उस पर बनी फिल्म में जॉन अब्राहिम ने मन्या का किरदार निभाया था। बावनिया गिरोह के सदस्यों ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि रवि ने यह फिल्म दर्जन बार देखी। उसे मन्या सुर्वे की हत्या करने का तरीका, उसके बोलबचन इस कदर भाए कि अपना नाम ‘मन्या पहलवान’ कर दिया। फिल्म में देखा कि वैâसे मन्या सुर्वे मामूली बातों पर गोलीबारी करता है, उसी से प्रेरित होकर रवि ने सिंह बंधुओं को मारने के लिए गोलियां चलार्इं।
अधिकारियों ने बताया कि रवि की तरह दीपक ने भी एक हिंदी मसाला फिल्म से ‘कातिया’ नाम रखा। कुछ भी हो, असल तो असल ही रहती है। डुप्लीकेट या जिरॉक्स कॉपी कभी असल नहीं हो सकती। मन्या सुर्वे बनने के पहले मन्या जैसा होना भी जरूरी है। यही बात रवि नहीं सीख पाया था।
पुलिस अधिकारियों के लिए ये नया ट्रेंड परेशानी पैदा करने लगा है, लेकिन अपराधी हैं कि फिल्मी गिरोह सरगनाओं से प्रेरणा लेने लगे हैं, वे कहते हैं-
‘उन छुटभैय्ये गुंडों की हरकतें तो चाय से केटली गरम वाली हो गई है।’
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)