मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : दाऊद की गिरफ्तारी

मुंबई का माफियानामा : दाऊद की गिरफ्तारी

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

उनका नाम था दयाशंकर…
करीबी लोग उन्हें डीएस पुकारते थे…
ईमानदारी का तो ठेका ऊपर से लेकर ही नीचे आए थे…
देश के सबसे तेज-तर्रार और विवादास्पद कस्टम्स अधिकारी थे…
स्वभाव से बेहद झक्की, लेकिन काम की लगन और धुन ऐसी पक्की कि कोई उनके आड़े नहीं आता…
…स्याह सायों के संसार में यह कम ही लोग जानते हैं कि देश के सबसे बड़े सरमायादार दाऊद इब्राहिम को दयाशंकर ने गिरफ्तार किया था।
उन दिनों डीएस की तैनाती गुजरात के शहर वलसाड़ में थी। उनकी एक खूबी थी कि हर उस जगह का पहले ही सर्वेक्षण कर लेते, जहां तैनाती होती। वे एक बार समंदर किनारे खुली सड़क पर जा रहे थे। सरकारी जीप खुद ही चला रहे थे। उनके पास से अचानक आसमानी रंग की एक मर्सडिज कार फर्राटे भरते गुजरी। उसकी अगली सीट पर दो जवान लड़के बैठे थे।
डीएस की पारखी नजरों ने भांप लिया कि इस सुनसान तटीय सड़क पर ऐसी महंगी मुंबई के रजिस्ट्रेशन नंबर वाली कार के ऐसे बेतहाशा दौड़ने के पीछे खास राज है।
डीएस ने सोचा कि ये कार कहां जाएगी? उन्हें पता था कि ये सड़क कुछ किलोमीटर आगे जाकर दो फाड़ हो जाती है। बार्इं ओर का रास्ता इतना ऊबड़-खाबड़ है कि उस पर इतनी नीची कार कोई नहीं ले जाएगा। दार्इं तरफ की सड़क ऐसे तटीय गांव पहुंचती है, जो मछुआरों का है। ये गांव सोना तस्करी के लिए बदनाम है। डीएस ने तय किया कि ये महंगी आसमानी कार वहीं जाएगी। अब डीएस ने ऐसी कच्ची सड़क पकड़ी, जो सीधे उस गांव जाती थी। वे आंधी तूफान की तरह जीप दौड़ाते गांव पहुंचे। कार उनके सामने वहां आई। उसमें कार चालक तो सीट पर बैठा रहा, लेकिन पड़ोस में बैठा युवक जीप देखकर भाग निकला। उधर, कार चालक ने देखा कि डीएस ने उसके साथी के पीछे दौड़ लगा दी है तो कार लेकर भाग निकला। वह सीधे यूसुफ हीरो के उसी गांव पहुंचा, जहां से सोने के २४० बिस्किट भरी जैकेट्स लाया था। जैकेट वहीं रखकर वो मुंबई लौट गया। सोने की जैकेट यूसुफ हीरो की थीं। समंदर से मुंबई में किसी के पास भेजनी थीं। अनीस वही कर गया था।
डीएस ने उस युवक का पीछा करके पकड़ लिया। वह जवान दाऊद इब्राहिम था। कार चालक अनीस था। तब दाऊद भाइयों के साथ तस्करों का सोना सड़क मार्ग से ट्रांसपोर्ट करता था।
अब डीएस ने ‘डी’ को जीप में बैठाया और दफ्तर आ पहुंचे। वहां छत पर उन्होंने लॉन टेनिस खेलने की नेट बांधने के लिए खंबे लगा रखे थे। उनके बीच लंबी रस्सी से इस तरह दाऊद और एक हेड कांस्टेबल की गर्दनें फंसा दीं, हाथ पीछे बांधकर खड़ा कर दिया कि किसी एक को नींद आए, वो नीचे झुके तो दूसरे के गले का फंदा कस जाए।
आंखों ही आंखों में दोनों की सारी रात कटी। खुदा-खुदा कर सुबह हुई। सुबह डीएस ऊपर आए तो दाऊद ने हाथ जोड़ दिए। उसने डीएस के सामने कबूल किया कि वह गलत इरादे से वहां आया था, लेकिन माल मिला नहीं तो वे भी क्या करेंगे। वाकई उससे कुछ बरामद नहीं हुआ था। डीएस ने दाऊद को जाने दिया।
ये थी कहानी डी की गिरफ्तारी और डीएस के प्रति उसके श्रद्धा भाव की, लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती है। इसका दूसरा हिस्सा भी है।
इसे कहते हैं:
– नहले पे दहला।

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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