विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
८ अक्टूबर १९९७ को एजाज पर कराची स्थित घर में दूसरा हमला हुआ…
एजाज उसमें बुरी तरह घायल हुआ…२
बाद में इस हमले में शकील का हाथ पता चला…
दाऊद को शिकायत की, लेकिन उसने ध्यान न दिया…
…एजाज बुरी तरह नाराज हो उठा और तुरंत दाऊद से किनारा करने की योजना बना ली।
अब एजाज ने कराची और इस्लामाबाद से दूरी बनाने की व्यवस्था की। वह अपने रिश्तेदारों के पास पेशावर चला गया। वहां कुछ समय बिताने के बाद वह १९९९ में दुबई आ गया और सोना, चांदी व नशे की तस्करी करने लगा।
इसी दौरान दाऊद विरोधी सिंडिकेट बनाने वाले बहरीन निवासी गिरोहबाज अली बुदेश उर्फ अली बाबा उर्फ बाबा बहरीन उर्फ एबी भाई ने एजाज से संपर्क किया। तब अली के साथ अरुण गवली, सुभाष सिंह ठाकुर, बबलू श्रीवास्तव भी थे।
अली ने एजाज से कहा कि वो दाऊद विरोधी गठबंधन तैयार कर रहा है। अगर एजाज साथ आता है तो बड़ा काम होगा। वे सब मिलकर दाऊद और उसके गिरोह को कुछ ही दिनों में धूल चटा देंगे। एजाज को लगा कि पैसे से मजबूत अली और उसके बाहुबली साथी मिलकर दाऊद को कमजोर कर देंगे। एजाज ने साथ जुड़ने की हामी भर दी।
एजाज के साथ आने से दाऊद विरोधी सिंडिकेट मजबूत तो हो गया, लेकिन अधिक दिनों तक चल न सका। सबसे पहले अरुण गवली अलग हुआ, फिर सुभाष, फिर बबलू और अंतत: एजाज भी अलग हो गया।
एजाज ने कुछ समय इस गठबंधन में बिताया तो पता चला कि अली उस स्तर पर काम करने की स्थिति में न था कि दाऊद का स्थान ले पाए, इसलिए वह भी अली से किनारा कर गया। एजाज दरअसल शकील से १९९५ और १९९६ के हमलों का बदला लेने का इच्छुक था, जिसमें गठबंधन असफल रहा और यही बात एजाज को अच्छी नहीं लगी।
हां, एक बात और…
एजाज के संबंध राजन से करवाने की लाख कोशिशें अली ने कीं, लेकिन असफल रहा। एजाज क२भी खुद से छोटे सिपहसालार राजन के साथ हाथ मिलाना पसंद न कर पाया और ये भी सही है कि राजन कभी एजाज पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर पाया।
गिरोहों में ये बात आम है। इसे ही देखकर नंबरकारी के मुंह से फूटा:
– जिदर मेरा-तेरा, उदर काम का तीन-तेरा।
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)