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वायु प्रदूषण को कम करने में फेल मनपा …नहीं बनी है पर्यावरण समिति

अनिल मिश्रा / उल्हासनगर 
उल्हासनगर में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने में उल्हासनगर का पर्यावरण विभाग फेल साबित हो रहा है। इस बात का जीता जागता उदाहरण यह है कि उल्हासनगर में पर्यावरण कमेटी, गार्डन अधीक्षक जैसे महत्वपूर्ण पद रिक्त हैं।
ज्ञात हो कि साढ़े तेरह किलोमीटर क्षेत्र में पैâले उल्हासनगर  शहर में चार श्मशान भूमि हैं, जिसे ट्रस्ट चलाते हैं। परंतु श्मशान में आधुनिक शवदाह की व्यवस्था नहीं है। अब तक हजारों शव का शवदाह लकड़ी से किया जाता रहा है। इस तरह से शवदाह करने से एक तरफ विषैला धुआं निकलता है तो वहीं दूसरी तरफ जंगल को काट कर पर्यावरण को हानि पहुंचाई जा रही है। बिजली, एलपीजी गैस से शवदाह क्रिया का काम ग्राम पंचायत और नपा में काफी समय से शुरू है, परंतु उल्हासनगर मनपा में आज तक शुरू नहीं हो सका है।
उल्हासनगर में देखा जाय तो वर्ष २०१८-२०१९ में १,०९४ शव, २०१९-२० में १,०९५ शव, २०२०-२१ में ९८४ शव, २०२१-२०२२ में १,२१५ शव तथा २०२२-२०२३ में १,१२८ शव जलाए गए हैं। एक शव को जलाने के लिए लगभग सात मन लकड़ी लगती है। अर्थात एक पेड़ का कत्ल करना पड़ता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मनपा प्रशासन की लापरवाही से कितने पेड़ काटे गए होंगे।
बताया गया कि शवों को जलाने के लिए लगने वाली लकड़ी को कसारा, कर्जत के अलावा मुरबाड़ के जंगलों से वन विभाग की आंखों में धूल झोंककर या फिर मिलीभगत से चोरी कर देर रात में लाया जाता है। यदि मनपा प्रशासन जागरूक होता तो मनपा के चारों श्मशान में बिजली, एलपीजी गैस के इस्तेमाल वाले शवदाह गृह के माध्यम से बड़े पैमाने पर जंगल को बचा सकती थी।
क्या कहते हैं अधिकारी?
उल्हासनगर मनपा के सार्वजनिक बाधकाम विभाग के कार्यकारी व शहर अभियंता संदीप जाधव ने बताया कि उल्हासनगर तीन के शांति नगर श्मशान व उल्हासनगर वैंâप नंबर ५, वैâलाश कॉलोनी श्मशान भूमि में एलपीजी गैस से शवदाह करने के लिए शवदाह गृह के बांधकाम का निर्माण किया जा चुका है। मशीन लगाने की प्रक्रिया शुरू है। ठेकेदार को वर्क ऑर्डर दिया गया है। कार्य जल्द ही एकाध माह में शुरू किए जाने की संभावना है। वहीं उल्हासनगर एक, दो व चार में इलेक्ट्रिक शवदाह लगाने के लिए बजट प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा गया है।

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