बड़ा नाजुक है दिल मेरा, हर किसी पे आता है
कभी गहरी कभी हलकी सी नजर डाल जाता है
कभी दिख जाए कोई बेपनाह हुस्न-ए-जमाला
इशक का नाजनी कीड़ा मुसलसल कुलबुलाता है
कसक सी होती थी सीने में जब हमदम न था कोई
भला अब क्यों ये दिल कातिल बवंडर अब मचाता है
सुनते आए थे सपने देखना बस एक के लेकिन
दिल-ऐ-नादा मुहब्बत में हमेशा मात खाता है
कहीं थोड़ी कभी ज्यादा कभी कुछ भी नहीं फिर भी
ये मुशायरा चिरागों का बहुत ज्यादा बताता है।
-अनुराधा सिंह