हमने ‘उनको’ अपना जाना, हम कितने ‘दीवाने’ हैं
फूलों का ‘भ्रम’ पाल रखा है, ‘काॅंटों के ज़माने’ हैं।
नया इलाज रास न आया, ‘जख़्म सदियों पुराने’ हैं
‘उलफत’ में ये कैसी ‘आफ़त’ तेवर अभी आज़माने हैं।
मुहब्बत पर ‘पहरे की बातें’ ये तो ‘कोरे बहाने’ हैं
जिनको मिलने आना होता, चले आते ‘सीना ताने’ हैं।
‘गीत/ग़ज़ल’ मेरे लिखे ‘नग़में’ तुम्हीं को सुनाने हैं
लिख गया हूं ‘धुन में तेरी’ तुम्हीं ने आकर गाने हैं।
दिख रहे जो ‘दाग वफ़ा के’ बेवफ़ा तेरे ‘तानें’ हैं
“निगाहें समन्दर” में तेरी, ‘हर्फ’ मेरे बह जाने हैं।
प्यार हमारा एक ‘हक़ीक़त’ बाकी सब ‘अफ़साने’ हैं
लौट के आजा ओ ‘बेदर्दी’ हम नही ‘बेगाने’ हैं।
कितने ‘पल मिलन के’ गुज़रे, कितने ही ‘गुम’ जाने हैं
ठहर गए जो ‘ख़ुश्क’ आंखों में “अश्कों के पैमाने” हैं।
त्रिलोचन सिंह’अरोरा’