राजस्थान सहित उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में नाम को लेकर फैली भ्रांतियां आज एक बड़ी चुनौती बन गई हैं। बैंक खातों से लेकर आधार कार्ड, पेन कार्ड और स्कूल प्रमाणपत्रों तक, हर जगह नाम के अलग-अलग स्वरूप दर्ज हैं। कहीं नाम के आगे ‘श्री’ जुड़ा है, तो कहीं ‘पुत्र’ लिखकर पिता का नाम और फिर सरनेम की जगह जाति का उल्लेख है। ऐसे में, जब कार्यपद्धति मैन्युअल थी, तो इस गड़बड़ी का प्रभाव सीमित था। लेकिन अब, जब सभी कार्य कंप्यूटर आधारित हो गए हैं, तो यह समस्या केवाईसी (KYC) रिजेक्शन का प्रमुख कारण बन गई है।
आज लाखों लोग आधार कार्ड केंद्रों पर अपने नाम बदलवाने के लिए कतारों में खड़े हैं। यह समस्या इतनी व्यापक हैं कि किसी व्यक्ति के स्कूल प्रमाणपत्र में एक नाम होता हैं, जबकि पेनकार्ड और आधार कार्ड पर दूसरा। इस भ्रम की स्थिति में लोगों को बार-बार अपने दस्तावेज़ अपडेट करवाने पड़ते हैं। समस्या यह हैं कि दस्तावेज़ों में नाम लिखने का एक निश्चित और मान्य तरीका अधिकतर लोगों को पता ही नहीं हैं।
आधिकारिक तौर पर पेन कार्ड आवेदन फॉर्म में नाम लिखने का सही तरीका दर्शाया गया है—फर्स्ट नेम (खुद का नाम), मिडिल नेम (पिता का नाम) और लास्ट नेम (सरनेम)। लेकिन इस मानक प्रणाली को देशभर में व्यापक रूप से लागू करने के लिए कोई संगठित प्रयास नहीं किया गया हैं।परिणामस्वरूप, ग्रामीण और अनपढ़ तबके के लोग, जिनके पास इस बारे में जानकारी नहीं हैं, बार-बार सरकारी कार्यालयों और बैंक शाखाओं के चक्कर लगाने को मजबूर हैं।
सरकार की भूमिका भी इस मामले में सवालों के घेरे में हैं। जब डिजिटल इंडिया के नाम पर हर प्रक्रिया को ऑनलाइन और पारदर्शी बनाने का दावा किया जा रहा हैं, तो यह जरूरी हो जाता हैं कि नाम और पहचान से जुड़ी इन समस्याओं को हल करने के लिए एक सटीक और समन्वित प्रणाली विकसित की जाए। एक राष्ट्रीय अभियान चलाकर लोगों को नाम दर्ज करने के मानक तरीके के बारे में जागरूक करना चाहिए।
यह सवाल उठता हैं कि क्या इस समस्या को केवल लोगों के विवेक पर छोड़ देना उचित है? क्या सरकार को इससे अपना पल्ला झाड़ लेना चाहिए? आखिरकार, यह समस्या न केवल प्रशासनिक कार्यों में बाधा डालती हैं, बल्कि आम नागरिकों के समय और धन की भी बर्बादी करती हैं। इस विषय पर गंभीरता से विचार करना न केवल सरकारी एजेंसियों की जिम्मेदारी है, बल्कि समाज के हित में भी आवश्यक हैं।
अगर सरकार और समाज मिलकर इस दिशा में कदम उठाएं, तो इस समस्या को हल करना असंभव नहीं हैं।हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर नागरिक का नाम, उसकी पहचान का सटीक और स्थायी आधार बने, जिससे डिजिटल युग में किसी को भी इन भ्रांतियों के कारण ठोकरें न खानी पड़ें।
—अर्थशिल्पी, भरतकुमार सोलंकी