कुछ मस्तक का संत्रास, कुछ हृदय की वेदना।
कुछ उपेक्षा की ठेस, कुछ भावना पर चोट।
कुछ संबंधों की घुटन, कुछ संयम की टूटन।
कुछ जज्बात का दर्द, कुछ दिल का मर्ज।
कुछ रिश्तों की खरोंचें, कुछ भाग्य की ठोकरें।
कुछ खामोशी का रंज, कुछ बेहोशी का दंश।
कुछ नाज ओ नखरे, कुछ गिले और शिकवे।
कुछ आड़े आती हेठी, कुछ समस्या की खेती।
कुछ अतीत की चुभन, कुछ वर्तमान की जलन।
कुछ यहां उखड़े खड़े, कुछ वहां बिखरे पड़े।
जीवन को ये कैसा ‘शाप’ है! चहुंओर ताप और पाप है!
ये भी मानव की तंग मानसिकता का फल है।
न कि विधि के विधान का प्रतिफल है।
-त्रिलोचन सिंह अरोरा