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नेशनल पार्क के पात्र झुग्गीवासियों ने पुनर्वसन का किया विरोध! …मरोल-मरोशी में ९० एकड़ भूमि हुई है चिन्हित

  
– मुंबई हाई कोर्ट में दायर की गई याचिका
सामना संवाददाता / मुंबई
राज्य सरकार ने हाल ही में उच्च न्यायालय को सूचित किया कि संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान (नेशनल पार्क) में पात्र झुग्गीवासियों का मरोल-मरोशी में ९० एकड़ भूमि पर पुनर्वसन किया जाएगा। हालांकि, यह क्षेत्र आरे कॉलोनी का हिस्सा है और इसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया गया है। इसलिए सरकार को नेशनल पार्क में पात्र झुग्गीवासियों के पुनर्वास से रोकने के लिए सोमवार को उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई।
‘सम्यक जनहित सेवा’ नामक संस्था ने नेशनल पार्क में अवैध निर्माण कर रहने वाले निवासियों की ओर से जनहित याचिका दायर की है। साथ ही हाई कोर्ट के पूर्व आदेश के अनुसार, उनका पुनर्वास करने की मांग की है। हालांकि, अदालत ने पात्र झुग्गीवासियों के पुनर्वास के लिए एक तत्काल नीति तैयार करने के बार-बार आदेश देने के बावजूद इस मामले में गंभीर नहीं होने के लिए सरकार की आलोचना की थी। वन शक्ति और पर्यावरणविद् जोरू बाथेना ने याचिका के माध्यम से यह भी दावा किया है कि सरकार ने नेशनल पार्क के पात्र झुग्गीवासियों का पुनर्वसन मरोल-मरोशी के जिस इलाके में पुनर्वसन करने की सूचना पिछली सुनवाई के दौरान दी थी। हालांकि, ऐसा आरोप है कि इस क्षेत्र को भी वन क्षेत्र घोषित किया गया है और राज्य सरकार द्वारा जानबूझकर अदालत से यह तथ्य छिपाए गए।

मूल याचिका के साथ हो सुनवाई
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि इसकी सुनवाई मूल याचिका के साथ ही की जाए। जिसे कोर्ट ने इसे स्वीकार कर लिया। राष्ट्रीय उद्यान में पात्र झुग्गीवासियों का पुनर्वसन मरोल-मरोशी में १९० एकड़ में से ९० एकड़ भूमि पर किया जाएगा। इसका विरोध करते हुए वन शक्ति और जोरु बाथेना का कहना है कि पुनर्वास किया जाने वाला क्षेत्र भी आरे डेयरी कॉलोनी का हिस्सा है और इसे वन क्षेत्र घोषित किया गया है। इसलिए वहां पुनर्वास रोका जाए।

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