जब अहंकार का होने लगता है मन में वास,
खुदा से बड़ा खुद को समझने लगता है इंसान !
जब लोभ लगे बढ़ाने महत्वाकांक्षा की आग तो,
दूसरे की रोटी पर भी रहती है हर वक़्त टेढ़ी आँख !
जब ईर्ष्या का होने लगता है मस्तिष्क पर वार,
दूजे को हराने में अंतर्मन जलाता है हरपल इंसान !
जब व्यर्थ क्रोध में बिगड़ने लगती है जुबान की वाणी,
गुस्सा उतरने पर वही बन जाती है शर्मिंदगी की निशानी !
जब अपनों के प्रति साजिशें हो जाए दिल मे सवार,
जीवन मे फिर बनते नहीं रिश्ते अपितु हो जाते है तबाह !
जब मोह माया की छाया लेने लगे मन मे आकार,
निश्चित ही हो जाती है रिश्तों में फ़िर महाभारत तैयार !
मुनीष भाटिया