मुख्यपृष्ठस्तंभबिखरते कुनबे से कमजोर होता एनडीए

बिखरते कुनबे से कमजोर होता एनडीए

रमेश सर्राफ धमोरा
झुंझनू, राजस्थान

कहने को तो केंद्र में भाजपा नीत एनडीए गठबंधन की सरकार चल रही है। मगर सरकार में शामिल दलों की सूची देखें तो एनडीए के नाम पर इक्का-दुक्का छोटे दलों को छोड़कर कोई भी बड़ी पार्टी केंद्र सरकार में शामिल नहीं है। कभी देश के अधिकांश बड़े दल एनडीए का हिस्सा होते थे। मगर आज स्थिति उसके उलट हो गई है। अब एनडीए नाममात्र का रह गया है।
१९९८ में कांग्रेस से मुकाबला करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस विरोधी राजनीतिक दलों को एक छतरी के नीचे लाने के लिए अटल बिहारी बाजपेयी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का गठन किया था। जॉर्ज फर्नांडिस को इसका संयोजक बनाया गया था। १९९८ के लोकसभा चुनाव से पूर्व गठित एनडीए में शामिल १६ दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में सरकार बना ली थी। जो मात्र एक साल बाद ही अन्नाद्रमुक के समर्थन वापस लेने से गिर गई थी। १९९९ में फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी, जो २००४ तक चली थी। गठन के समय एनडीए में छोटे-बड़े कुल १६ राजनीतिक दल शामिल थे। १९९९ के चुनाव में २१ दल, २००४ में १२ दल, २००९ में ८ दल, २०१४ में २३ दल व २०१९ में २० राजनीतिक दल एनडीए में शामिल होकर एक साथ चुनाव लड़े थे। मगर अब एनडीए की स्थिति बहुत कमजोर हो गई है। एनडीए में शामिल अधिकांश बड़े राजनीतिक दल भाजपा से गठबंधन तोड़कर अलग हो गए हैं। वर्तमान समय में एनडीए में छोटे-बड़े मिलाकर मात्र १३ राजनीतिक दल शामिल हैं। जिसमें लगभग सभी दल नाममात्र के ही हैं। एनडीए के कुनबे की बात करें तो इसमें भाजपा के अलावा अपना दल (सोनेलाल), ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन, नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, नेशनल पीपुल्स पार्टी, मिजो नेशनल प्रâंट, नागा पीपुल्स प्रâंट, लोक जनशक्ति पार्टी, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, अखिल भारतीय एनआर कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, पीएमके, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आठवले) जैसी पार्टियां शामिल हैं।
२०१९ के लोकसभा चुनाव के बाद शिरोमणि अकाली दल, जनता दल (यूनाइटेड), शिवसेना, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी जैसे कई दलों ने भाजपा का साथ छोड़ दिया है। एनडीए छोड़ने वाले सभी दलों ने भाजपा नेतृत्व पर आरोप लगाया कि वह अपनी मनमानी करता है। एनडीए में गठबंधन धर्म समाप्त प्राय है। सारे पैâसले भाजपा नेतृत्व ही करता है। इसी तरह बिहार में मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी के तीनों विधायकों को तोड़कर भाजपा में विलय करा लिया गया। उत्तर प्रदेश में भी ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी एनडीए से बाहर निकल गई थी।
कभी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन द्रमुक, ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, तेलुगू देशम पार्टी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा की जनता दल (सेकुलर), तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति, बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, हरियाणा जनहित कांग्रेस, तमिलनाडु की डीएमडीके, पीएमके, महाराष्ट्र का स्वाभिमानी पक्ष, एनडीए का हिस्सा थी। आज ये सभी पार्टियां भाजपा से दूर जा चुकी हैं। शिरोमणि अकाली दल और राजस्थान की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी तो किसान आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार की नीतियों से खफा होकर एनडीए को छोड़ा था। शिरोमणि अकाली दल की नेता हरसिमरन कौर ने केंद्रीय मंत्री का पद भी छोड़ दिया था। उसके बाद पंजाब में हुए विधानसभा के चुनाव में भी भाजपा व शिरोमणि अकाली दल ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। २०१९ में राजस्थान की नागौर सीट हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी को देकर भाजपा ने उससे समझौता किया था। मगर अब हनुमान बेनीवाल भी अपनी एकला चलो की नीति पर काम कर रहे हैं। वह राजस्थान में खुलकर भाजपा के खिलाफ बोल रहे हैं और भाजपा को उखाड़ने में लगे हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को हरियाणा में बहुमत नहीं मिलने पर वहां जननायक जनता पार्टी के दुष्यंत चौटाला को उपमुख्यमंत्री तथा कुछ निर्दलीय विधायकों को मंत्री बनाया गया था। उत्तर प्रदेश में अपना दल व निषाद पार्टी के विधायक भी मंत्रिमंडल में शामिल है। असम में असम गण परिषद व यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल सरकार में शामिल है। गोवा में भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिला था इस कारण वहां महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी व निर्दलीयों के सहारे से भाजपा की सरकार चल रही है। त्रिपुरा में इंडिजिनियस पीपुल्स प्रâंट ऑफ त्रिपुरा का एकमात्र विधायक शुक्ला चरण नोएतिया भी सरकार में शामिल हैं।
कभी भाजपा को सत्ता में लाने के लिए हिंदूहृदयसम्राट शिवसेनाप्रमुख बालासाहेब ठाकरे, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडीज, शरद यादव, नवीन पटनायक, चंद्रबाबू नायडू, जे जयललिता, प्रकाश सिंह बादल, शिबू सोरेन, ममता बनर्जी, प्रमोद महाजन जैसे दिग्गज नेताओं ने एनडीए का गठन किया था। उनका यह प्रयोग सार्थक भी साबित हुआ था। गठन के कुछ समय बाद ही एनडीए की केंद्र में सरकार भी बन गई थी। बाद में एनडीए की सरकार को हटाने के लिए कांग्रेस ने यूनाइटेड प्रोग्रेसिव एलायंस (यूपीए) का गठन किया। कांग्रेस के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दस वर्षों तक यूपीए एक और यूपीए दो की सरकार चलाई थी।
कुल मिलाकर, पिछले एक अर्से में सत्ता पर मजबूती से पकड़ बनाने के लिए भाजपा ने अपने मित्र दलों को कमजोर किया है। भाजपा अपने अधिकांश पुराने साथियों को एनडीए से अलग कर चुकी थी। मगर २०२४ के लोकसभा चुनाव में संघर्ष कड़ा होता देख भाजपा को फिर से एनडीए के साथियों की याद आने लगी है। इसीलिए भाजपा फिर अपने पुराने साथियों को एनडीए में लाने का प्रयास कर रही है। लेकिन भाजपा की फितरत से वाकिफ दल शायद ही फिर एनडीए में लौटें। फिलहाल तो ऐसा ही लग रहा है।
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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