रेलवे की ‘रट’ बना रही मुंबईकरों को मरीज
सामना संवाददाता / मुंबई
मुंबई की उपनगरीय लोकल ट्रेनों में लाखों यात्री रोजाना यात्रा करते हैं। मुंबई की भागदौड़ भरी जिंदगी में तो वैसे ही लोग थके होते हैं, ऊपर से यात्रा के दौरान लोकल की कानफाडू एनाउंसमेंट उन्हें चिड़चिड़ा बना रही है। इसका मुख्य कारण है कि बार-बार एक जैसी आवाज से यात्रियों के मस्तिष्क के न्यूरॉन परेशान हो रहे हैं। ‘अगला स्टेशन…’ इस तरह की बार-बार की ‘रट’ मुंबईकरों को मरीज बना रही है।
लोकल में घोषणाओं के शोर से आम आदमी को भी आ जाता है गुस्सा!
बढ़ जाता है सिर दर्द
लोकल ट्रेन को मुंबई की लाइफलाइन कहा जाता है। मुंबई की तीनों वेस्टर्न, सेंट्रल और हार्बर लाइन मिलाकर रोजाना ५० लाख से ज्यादा यात्री सफर करते हैं। एक तो ट्रेन की भीड़ और ऊपर से ट्रेन के भीतर ‘अगला स्टेशन…’ का एनाउंसमेंट लोगों का सिर दर्द बढ़ा रहा है। इतना ही नहीं, यात्रियों का सामान्य व्यवहार गुस्से में बदल जाता है।
घर से कार्यालय जाते वक्त यात्रियों को भारी भीड़ का सामना करना पड़ता है, जबकि कार्यालय से घर आते वक्त काम करके थक चुके यात्री उतनी ही भारी भीड़ का सामना करते हुए घर जाते हैं। इस दौरान कुछ मिनटों की यात्रा में उन्हें कई बार ‘अगला स्टेशन….’ सुनना पड़ता है। इससे यात्रियों को मानसिक रूप से परेशानी होती है और उनहें गुस्सा आता है। इस बारे में मनोचिकिस्तकों का कहना है कि इससे यात्रियों का व्यवहार बदल जाता है और वे गुस्सेवाले बन जाते हैं। इसलिए रेलवे की एनाउंसमेंट आफत बन सकती है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि इस प्रकार की अनाउंसमेंट यात्रियों के दिमाग पर बुरा असर करती है। दरअसल एक ही ध्वनि बार-बार सुनने से मस्तिष्क के न्यूरॉन थक जाते हैं और तनाव तथा बौखलाए हुए व्यवहार के साथ यात्री अपनी यात्रा पूरी करता है।
बेहद अजीब लगता है
यात्रियों को पता होता है कि अगला स्टेशन कौन-सा है, लेकिन इसके बावजूद लगातार रेलवे की वही एनाउंसमेंट बार- बार सुनकर बेहद अजीब लगता है। वही एक चीज बार-बार सुनकर गुस्सा आने लगता है। रेलवे को बेवजह की एनाउंसमेंट से बचना चाहिए और यात्रियों की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।
-श्लोक देशमुख, यात्री
बढ़ जाती है गुस्से की प्रवृति
बेवजह की एनाउंसमेंट आम नागरिक के दिमाग पर बुरा असर करती है। दरअसल, काम पर जाते वक्त और घर आते वक्त आम नागरिक थक जाता हैं। लेकिन जब एक ही एनाउंसमेंट बार बार होती है तो मस्तिष्क के न्यूरॉन की यही थकावट बढ़ जाती है। इसके बाद व्यक्ति में गुस्से की प्रवृति बढ़ जाती है।
-प्राची चिवटे, मनोचिकित्सक
संख्या घटानी चाहिए
रेलवे प्रशासन जब ‘दोपहर का सामना’ में इस खबर को पढ़ेगा तो उसे इस पर विचार करके निर्णय लेना चाहिए। यदि बेवजह बार-बार इस प्रकार के एनाउंसमेंट से यात्रियों को मानसिक बीमारी होती है तो रेलवे को इसकी संख्या कम कर देनी चाहिए।
-नंदकुमार देशमुख, ठाणे रेल प्रवासी संगठन