सामना संवाददाता / मुंबई
प्रदूषण से निपटने के लिए मनपा ने एक बार फिर आईआईटी-कानपुर से मदद ली है, जिसने हाइपरलोकल एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग यूनिट्स लगाने का एक नया प्रस्ताव पेश किया है। मनपा के लिए यह कदम प्रदूषण पर काबू पाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, लेकिन मनपा की कमजोर योजनाओं और उनके समय पर लागू न होने के इतिहास को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या इस बार यह योजना सचमुच प्रभावी होगी?
आईआईटी-कानपुर का यह प्रस्ताव मुंबई के विभिन्न हिस्सों में प्रदूषण की स्थिति को ट्रैक करने के लिए ७५ हाइपरलोकल एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग यूनिट्स लगाने का है। यह सेंसर ८ वर्ग किलोमीटर के ग्रिड में लगाए जाएंगे और मनपा के मुख्यालय से डेटा भेजा जाएगा। इसका उद्देश्य हर इलाके की वायु गुणवत्ता को सटीक और व्यक्तिगत स्तर पर मापना है। यह यूनिट्स रियल-टाइम डेटा प्रदान करेंगी, जिससे मनपा प्रदूषण के स्रोतों का तत्काल पता लग सकेगा और जरूरी कदम उठा सकेगी।
मनपा की सबसे बड़ी कमजोरी यह रही है कि उसकी पहले लागू की गई योजनाएं अक्सर सुस्त रफ्तार से चलती हैं। उदाहरण के लिए पहले एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) मॉनिटरिंग सिस्टम को लेकर मनपा ने जो वादे किए थे, वे अधूरे पड़े रहे। प्रदूषण का स्तर घटने की बजाय बढ़ता गया और मनपा के कई प्रोजेक्ट्स समय पर नहीं पूरे हो पाए। मनपा का ध्यान ज्यादा बड़े और दिखावटी प्रोजेक्ट्स पर होता है, जबकि प्रदूषण की समस्या निरंतर बढ़ रही है।
शुरुआत में मनपा ने आईआईटी-मुंबई के साथ साझेदारी करने का विचार किया था, लेकिन वहां से अपेक्षित प्रतिक्रिया में देरी हुई। इसके कारण मनपा को आईआईटी-कानपुर से नया प्रस्ताव लेना पड़ा। इससे यह संकेत मिलता है कि मनपा की निर्णय लेने की प्रक्रिया में गंभीर कमी है और यह प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दों पर भी सही तरीके से काम नहीं कर पा रही है।
हालांकि, आईआईटी-कानपुर के प्रस्ताव में कोई खास बदलाव नहीं आया है। पर, इस बार मनपा को अपनी कार्यप्रणाली में बदलाव करने की जरूरत है। प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए केवल नीतियां बनाना ही पर्याप्त नहीं है, उसे प्रभावी ढंग से लागू करना भी उतना ही जरूरी है। मनपा को उम्मीद है कि यह नई योजना उसकी कमियों को दूर करेगी, लेकिन इसे सफल बनाने के लिए समय पर और सही कदम उठाने होंगे।