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नए साल का संकल्प: शराब का त्याग

अगर यह कहा जाए कि शराबखोरी या नशीले पदार्थों का सेवन बेहद खराब है तो गलत नहीं होगा। यह नशा आपकी उम्र तेजी से घटाता है और आपको ढेरों मर्ज दे जाता है। शराब के नशे का आशय उस स्थिति से है जिसमें व्यक्ति लगातार शराब पीता जाता है, उसे शराबखोरी कहा जाता है। शराब के लगातार सेवन से याददाश्त में कमी, अवसाद, चिड़चिड़ापन, हाइपरटेंशन, भ्रूण को नुकसान, कैंसर के खतरे में बढ़ोतरी, डिमेंशिया (मतिभ्रम) के खतरे में बढ़ोतरी, लीवर को नुकसान, दिमागी तंतुओं में सिकुड़न, दिल की मांसपेशियों में कमजोरी, पाचन समस्याएं, यौन विकार, समय से पहले बुढ़ापा और बौद्धिक क्रियाशीलता में गिरावट जैसे परिणाम हो सकते हैं। अत्यधिक मात्रा में शराब का सेवन याददाश्त को खत्म कर सकता है, शरीर में विषाक्तता पैदा कर देता है। जिससे अल्पायु होने की भी संभावना बनी रहती है।

शराब को मस्तिष्क तक पहुंचने में ६ मिनट लगते हैं। एथेनॉल अल्कोहल का बहुत ही छोटा अणु है। यह शरीर के तरल तत्वों में घुल जाता है और शरीर में फैल कर सीधे मस्तिष्क तक पहुंचता है। लंबे समय तक अत्यधिक शराब पीने वाले इंसान के शरीर में जानलेवा परिस्थितियां बनने से विटामिन और जरूरी तत्वों की आपूर्ति गड़बड़ाने लगती है, इनका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में अहम योगदान होता है। लंबे समय तक बहुत ज्यादा शराब पीने से विटामिन बी१ नहीं मिलता और वेर्निके-कोर्साकॉफ सिंड्रोम पनपने लगता है। इससे डिमेंशिया की बीमारी पैदा होने का खतरा बढ़ने लगता है। शराब का सेवन दिल के आकार को ब़ड़ा कर देता है। नियमित और खूब शराब पीने वाले आदतन झगड़ालू होते हैं।
शराब की घूंट हलक में उतरते ही उसे कफ झिल्ली सोख लेती है। इसके साथ बाकी शराब सीधे छोटी आंत में जाती है। छोटी आंत भी इसे सोखती है, फिर यह रक्त संचार तंत्र के जरिए लीवर तक पहुंच जाती है। लीवर शरीर से हानिकारक तत्वों को बाहर करता है। अल्कोहल भी हानिकारक तत्वों में आता है. लेकिन लीवर में पहली बार पहुंचा अल्कोहल पूरी तरह टूटता नहीं है। कुछ अल्कोहल अन्य अंगों तक पहुंच ही जाता है। यह पित्त, कफ और हड्डियों तक पहुंचता है और कई अंगों पर बुरा असर डालता है। यह २०० से ज्यादा बीमारियां पैदा कर सकता है। यह सबसे ज्यादा मस्तिष्क पर असर डालता है। लंबे वक्त तक ऐसा होता रहे तो शरीर हानिकारक तत्वों से खुद को नहीं बचा पाता है। लंबे समय से जो लोग इस तरह से शराब पी रहे होते हैं उन्हें कैंसर का खतरा ज्यादा रहता है। अवसाद और घबराहट जैसे मनोविकार पैदा हो जाते हैं।

अगर आपको शराब की लत है तो डॉक्टरी सलाह लें। इलाज आमतौर पर शुरू होता है डिटॉक्सीफिकेशन की प्रक्रिया के साथ, यानि मरीज़ के शरीर को पहले शराब के जहर से मुक्त किया जाता है। इस काम में सप्ताह या कुछ ज्यादा समय लग सकता है। इस अवधि के दौरान मरीज शराब छोड़ देता है, छोड़ने के बाद के लक्षण अगर दिखने लगें तो वह उनसे ठीक से निपट सके, इसके लिए दवाएं दी जाती हैं। शराब से दूरी की ये अवधि, शरीर को लत से बाहर खींच लाती है। अगला कदम होता है काउंसलिंग यानी सलाह या थेरेपी का। इसमें मरीज को नशे की प्रकृति और उसके खतरों के बारे में बताया जाता है और ये भी बताया जाता है कि सेहत सुधारने के लिए वह क्या करे। अगर नशे की वजह से उसकी मानसिक सेहत में कोई विकार आया है तो वह भी खुलकर बताए, उन लोगों से भी समर्थन हासिल करे जो उसकी जैसी समस्या से लड़ रहे हैं और इस तरह अपना व्यवहार बदलने के प्रति प्रेरित रहे। इलाज का तीसरा और आखिरी चरण फॉलो-अप का है जिसमें देखा जाता है कि इलाज के पिछले चरणों से मरीज की हालत में क्या प्रगति हुई या क्या सुधार आया या नहीं। इस दौरान मरीज़ अपनी नियमित जीवनशैली में लौट जाते हैं और इस दौरान उन्हें शराब से दूर रखने में मदद की जाती है। जब व्यक्ति शराब पीना छोड़ता है, तो वह गंभीर भावनात्मक और भौतिक लक्षणों से जूझता है जैसे कंपकंपी, पसीना आना, घबराहट, चिड़चिड़ापन आदि। अगर आप इन लक्षणों का अनुभव करते हैं तो फौरन डॉक्टर से संपर्क कीजिए पर अपना संकल्प दृढ़ रखिए। अगर आप भी शराबखोरी के शिकंजे में हैं तो इसी नव वर्ष से उससे मुक्त होने का संकल्प लें ताकि आपका भविष्य भी निरोगी और उज्जवल हो सके।

शीतल अवस्थी

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