नीति आयोग की बैठक में प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को बोलने की इजाजत नहीं दी गई। उनका माइक बंद कर दिया गया। ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि उन्हें केवल पांच मिनट बोलने की अनुमति दी गई और वह बैठक से बाहर चली गईं। यह प्रधानमंत्री मोदी के सामने हुआ और लोकतंत्र का ढोल पीटने वाले मोदी ने इसे रोकने की कोशिश नहीं की। नीति आयोग की बैठकों में राज्यों के मुख्यमंत्रियों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है। बैठक में योजनाओं, विकास कार्यों, वित्तीय लेन-देन, केंद्र से क्या चाहिए, क्या नहीं, इस पर पक्ष-विपक्ष के बीच खुलकर चर्चा होती थी, लेकिन जब से मोदी-शाह सत्ता में आए हैं, विपक्षी दलों से सुसंवाद खत्म हो गया है। राजनीतिक मंच, संसद भवन और अब नीति आयोग की बैठक में विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों की बात सरकार सुनने को तैयार नहीं है। नीति आयोग देश की आर्थिक नीतियों पर चर्चा के लिए है। नीति आयोग की वह बैठक भारतीय जनता पार्टी के घर का कोई विवाह समारोह नहीं था। देश के संसाधनों पर हर राज्य का समान अधिकार है। सिर्फ इसलिए कि भाजपा किसी राज्य में हार गई, इसलिए उस राज्य से बदला नहीं लिया जा सकता और उस राज्य को विकास से वंचित नहीं किया जा सकता, लेकिन जब से मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, प्रधानमंत्री मोदी प. बंगाल, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना जैसे राज्यों पर कृपा दिखाने को तैयार नहीं हैं। जब उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तब मोदी ने महाराष्ट्र को उसके हक के मुताबिक कुछ भी नहीं दिया। मुंबई केंद्र को सबसे ज्यादा पैसा देता है। जीएसटी के जरिए केंद्र को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचाने वाला राज्य महाराष्ट्र है, लेकिन केंद्रीय बजट हो या नीति आयोग की नीतियां, मोदी सरकार हर मामले में महाराष्ट्र के साथ अन्याय कर रही है। अब ममता बनर्जी ने नीति आयोग के पाखंड को उजागर किया है, लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नीति आयोग की बैठक में अपनी दाढ़ी पर हाथ फिराते हुए छपे हुए भाषण को पढ़कर लौट आए। उन्होंने कपास और सोयाबीन किसानों को न्याय देने और प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने जैसी मांगें कीं। प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध से महाराष्ट्र के किसानों को काफी नुकसान हुआ और इसका फायदा बांग्लादेश, पाकिस्तान और अन्य देशों के किसानों को हुआ। नीति आयोग अपने ही किसानों को भूखा रखकर और आर्थिक संकट पैदा कर विदेशी किसानों की जेब गर्म कर रहा है। देश को ५ ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना साकार करना है, लेकिन महाराष्ट्र जैसे राज्य पर आठ लाख करोड़ के कर्ज का पहाड़ है। राज्य में विकास का असंतुलन है। कई सार्वजनिक उपक्रम खत्म किए जा रहे हैं। परिणाम स्वरूप बेरोजगारी का भस्मासुर मुंह फाड़कर खड़ा है। केंद्रीय बजट में शिक्षा पर खर्च घटाया गया। केंद्र के पास रोजगार के लिए कोई नीति नहीं है, नए उद्योगों के सृजन के लिए कोई दिशा नहीं है। मोदी और उनके लोग आम और मध्यम वर्ग से टैक्स के रूप में पैसा इकट्ठा करके मस्ती में हैं और नीति आयोग इस बारे में बात करने को तैयार नहीं है। मूल रूप से मोदी और उनके लोग अर्थव्यवस्था के बारे में कितना जानते हैं? यह डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी जैसे विशेषज्ञों द्वारा पूछा गया सवाल महत्वपूर्ण है। गुजरात की पेढ़ी के दो व्यापारी देश चला रहे हैं। अर्थव्यवस्था, नीति आयोग उन्हीं की पेढ़ी है। कई राज्यों में गरीबी, महंगाई और बेरोजगारी से हाहाकार मचा है। इस बात का कोई उचित समाधान करे बिना सत्ता का समर्थन करने वाले नीतीश कुमार व चंद्रबाबू नायडू को हजारों करोड़ की बिदागी मिल रही है। प. बंगाल, केरल, तेलंगाना और कर्नाटक को कुछ नहीं मिलता। क्या प. बंगाल जैसे राज्य भारत के नक्शे में नहीं हैं? क्या नीति आयोग की नीति में इन राज्यों का कोई स्थान नहीं है? मोदी अवतारी पुरुष हैं अपने अंधभक्तों के लिए, लेकिन अवतारी पुरुष के पास विकास का कोई मॉडल नहीं है। आजादी के बाद पंडित नेहरू ने योजना आयोग की स्थापना की। यह योजना आयोग संपूर्ण भारत के लिए था। योजना आयोग का मुख्य कार्य पंचवर्षीय विकास योजनाएं तैयार करना था। २०१५ में प्रधानमंत्री मोदी ने योजना आयोग का नाम बदलकर ‘नीति आयोग’ कर दिया। इस तरह मोदी ने लाल किले से देश को विकास का रास्ता दिखाने वाली एक महान योजना की हत्या कर दी। पंडित नेहरू ने देश को आत्मनिर्भर, आर्थिक रूप से परिपूर्ण, कृषि, शिक्षा, उद्योग में संतुलन बनाने के लिए योजना आयोग का निर्माण किया। इस संस्था में कई विशेषज्ञों को लाया गया और देश को आधुनिक वैज्ञानिकता की ओर ले जाया गया। राज्यों के विकास का संतुलन बनाए रखा। यह संतुलन और आधुनिक विचारों की मीनार अब ध्वस्त हो चुकी है!