टीवी पर जब कॉमेडी शो शुरू हुए तो एक सामान्य से चेहरे ने अपनी कॉमेडी के जरिए बहुत जल्दी लोगों के बीच अपनी पहचान बना ली थी। ये हैं सुनील सांवरा। इनकी हाजिरजवाबी के दर्शक कायल हैं। पेश है इस चुटीले हास्य कलाकार से श्रीकिशोर शाही की हुई बातचीत के प्रमुख अंश –
स्टैंडअप कॉमेडियन किसी को भी नहीं छोड़ते। क्या बचपन में भी होली की शरारतें इसी तरह करते थे?
-ओह, बचपन की तो बात ही कुछ और थी। होली के दिन हम दोस्तों के साथ फुग्गा फेंक रहे थे। तभी एक स्कूटी सवार को फुग्गा लगा। पर ये क्या? उस आदमी ने मुड़कर देखा तो हमारे होश गायब। वो हमारे स्कूल वाले मैथ के टीचर निकले। वह फुग्गा मुझे बहुत भारी पड़ा। बाद में वो हमेशा मैथ के कठिन सवाल पूछकर परेशान करने लगे।
क्या बचपन में ऐसी होली खेली जब आईना में खुद को ही पहचान नहीं पाए हों?
-एक बार का किस्सा मजेदार है। मैं सज-धज कर १०वीं की गर्लप्रâेंड के मुहल्ले में जा रहा था, तभी ८-१० लड़के आए और उन्होंने मेरे चेहरे पर इतने रंग पोत दिए कि मैं पहचान में नहीं आ रहा था। सामने गर्लप्रâेंड रंग खेल रही थी पर वह भी मुझे पहचान नहीं पाई। अब मेरी हालत ऐसी थी कि मैंने भी सोचा कि चलो अच्छा है कि वो पहचान नहीं रही।
आप कॉमेडियन लोग तो दूसरे कॉमेडियन की खिंचाई करने का कोई मौका नहीं गंवाते हैं। होली में फिर क्या करते हैं?
-होली में हम बोली से होली खेलते हैं। ‘बुरा न मानो होली है’ बोलकर हम सबकुछ बोल देते हैं। एक बार होली के आसपास बिग बी के एक करीबी ने प्रोग्राम कराया। प्रोग्राम की रवानगी में मैंने कह दिया कि हर हीरो २-३ शादी कर रहा है और अमिताभ बच्चन आधे में ही (जया बच्चन की हाइट की ओर हाथों से इशारा करके) खुश हैं। आयोजक महोदय को यह बात काफी बुरी लगी। फिर मैंने जोर से बुरा न मानो होली है कहकर बात संभालने की कोशिश की।
होली के दौरान कोई मजेदार घटना जो याद आते ही हंसी आ जाती हो।
-कई हैं। एक बार एक मनचला थोड़े सुरूर में था। रंग देखकर बोला कि अरे इनका क्या काम? हमारे यहां तो ‘आंख मार’ होली होती है। आंख मार दो तो लाल हो जाती है। वैसे जो ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं, उनका अंदाज ही निराला होता है। एक बार मैंने फुग्गा मारा तो एक महिला की आवाज आई कि ‘नो रंग ओनली कलर्स, नो पानी ओनली वाटर्स’!
आज देश के कई कोनों से आवाजें उठ रही हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी को दबाया जा रहा है। क्या आपको भी ऐसा महसूस होता है?
-वाकई वक्त बदल गया है। अब तो शो के पहले एक गाइडलाइन आ जाती है। सरकारी संस्थानों से हिदायतें मिलती हैं कि ये नहीं बोलना है। पहले हम मनमोहन सिंह, लालू प्रसाद, सोनिया गांधी जैसे नेताओं पर खूब जोक सुनाते थे। पर अब बंदिश आ गई है। पहले ही बता दिया जाता है कि किसी नेता पर जोक नहीं सुनाना है। पार्टी पर जोक नहीं सुनाना है। सरकारी आयोजनों में तो ये सब पूरी तरह मना है। सच पूछिए तो ऐसे में मजा नहीं आता। बिना सत्ता पर व्यंग्य किए कार्यक्रम में मजा नहीं आता। पब्लिक को भी मजा नहीं आता। वैसे अब प्राइवेट शोज् में भी यह बीमारी पसर गई है। वहां भी तमाम तरह के बंधन लगाए जाने लगे हैं कि ये नहीं बोलना है, वो नहीं बोलना है वगैरह।
ओटीटी पर तो कोई सेंसर नहीं है। वहां तो बोल सकते हैं?
-न जी न। अब तो वहां भी छूट खत्म हो गई है। वहां भी आप बड़े सितारों पर व्यंग्य नहीं कर सकते। फिर क्या मजा आएगा। कहने को ओटीटी पर सब एलाऊ है, पर असल में ऐसा है नहीं। ऐसे में क्या हास्य-व्यंग्य करें? अब तो बिहार में भी बंदिश है। वहां आप शराब पर कोई भी अच्छा-बुरा जोक नहीं सुना सकते।
हिंदी फिल्मों में होली गीतों की एक अपनी मस्ती रही है। कौन-सा गीत आपको सबसे ज्यादा पसंद है?
-वैसे तो हिंदी फिल्मों में एक से बढ़कर एक होली गीत हैं। पर जब आपने पसंदीदा की बात की है तो वह एक ही है। बागवान का गीत ‘होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेले रघुवीरा…’। यह गीत लाजवाब है। इसका कोई जवाब नहीं है। पता नहीं इन दिनों फिल्मों में होली के गीत कम क्यों हो गए।
अगर आपको मौका मिला तो किस हीरोइन के गालों पर गुलाल लगाना पसंद करेंगे?
-देखिए मेरी पत्नी ‘दोपहर का सामना’ की नियमित पाठिका है इसलिए मैं बता नहीं सका। वैसे इच्छा तो है कि काश, दीपिका पादुकोण को लगा पाता। उनकी शादी के पहले सिर्फ दीपिका समझकर खेलता। अब रणवीर भाई से शादी हो गई है तो भौजाई समझकर खेलना पड़ेगा। उसमें सेफ भी रहेगा। मौका मिला तो उसे रंग जरूर लगाएंगे।
पहले की होली और आज की होली में क्या फर्क महसूस करते हैं?
-बहुत फर्क आ गया है। आज सोशल मीडिया मजबूत हो गया है पर वन टू वन का रिश्ता खत्म हो गया है। पहले ढोल बजाकर, थाली बजाकर होली खेलते थे। अब लोग होली खेलना नहीं चाहते। चलते-चलते एक चुटकी हो जाए।
मेरे दोस्त सुंदरलाल जी ने होली के त्योहार का फायदा कुछ इस तरह उठाया
चेहरा समझ में न आने के कारण पड़ोसन को ४-५ बार रंग लगाया
पर जैसे ही घर में घुसे, उन्हें देख परिवार का हर सदस्य मौन था।
भाभीजी बोली, जब तुम अभी आ रहे हो तो मेरे साथ कौन था?
बुरा न मानो होली है!!