अब कोई हालचाल लेने नहीं जाता।
अब कोई चर्चा नहीं करता।
अब सब सामान्य हो गया है
उस घटना के बाद।
जिसे रचा गया था शातिर दिमाग से।
दस-बीस चादर के नीचे दबा दिया गया था
सच को मुंह सीकर।
कोई बोल नहीं पा रहा था
न कोई समझ पा रहा था
भीतर का जाल।
लोग ऊपर ही ऊपर चल रहे थे।
और अपराधी उधर गुलछर्रे उड़ा रहे थे
व्यवस्था ओढ़कर।
सच को कराहने की मनाही थी।
चादर का ऊपरी परत
चर्चा में था बाकी सब सामान्य
सपाट सूनसान सन्नाटा
नासमझों के लिए।।
-अन्वेषी