हिंदी के अलावा तमिल, तेलुगु और मलयालम फिल्मों के साथ ही धारावाहिकों में काम करनेवाले महेश ठाकुर किसी परिचय के मोहताज नही हैं। फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ में काम करनेवाले महेश ठाकुर का शो ‘आंगन अपनों का’ काफी लोकप्रिय हो चुका है। शो में महेश ने तीन बेटियों के पिता जयदेव शर्मा का किरदार निभाया है। कई ब्लॉकबस्टर फिल्मों के अलावा महेश शो ‘अस्तित्व- एक प्रेम कहानी’, ‘शरारत’ जैसे कई शोज में नजर आ चुके हैं। पेश हैं महेश ठाकुर से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
शो ‘आंगन अपनों का’ में तीन बेटियों का पिता बनने का अनुभव कितना अलग था?
शो में मैं जयदेव शर्मा यानी तीन बेटियों का पिता बना हूं। मेरी दो बेटियों की शादी हो जाती है, पर छोटी बेटी विवाह नहीं करना नहीं चाहती क्योंकि उसे लगता है उसके पिता अकेले पड़ जाएंगे। मेरी छोटी बेटी मेरा ध्यान रखने के लिए मुझसे कह देती है कि वो विवाह नहीं करेगी। अपनी बेटियों से बेहद भावनात्मक तरीके से जुड़े पिता का किरदार निभाना मेरे लिए बेहद चैलेंजिंग रहा है। असलियत में मैं दो बेटों का पिता हूं, बेटी नहीं है मेरी। शो में एक बेटी के पिता की भूमिका निभाना मेरे लिए गर्व की बात है, क्योंकि एक बेटी परिवार में पैरेंट्स के सबसे अधिक नजदीक होती है और माता-पिता की मानसिक स्ट्रेंथ को बढ़ाती है।
पीछे मुड़कर देखने के बाद आप किन यादों को साझा करना चाहते हैं?
मैंने एमबीए की पढ़ाई अमेरिका से की है। ८० के दशक में मुंबई आने के बाद इंडस्ट्री में काम की तलाश में जुट गया। बचपन से ही फिल्मों के प्रति रुझान था इसलिए स्कूल, कॉलेज से ही मैंने थिएटर करना शुरू कर दिया था। मुझे पहली फिल्म ‘जानेमन’ मिली जो फ्लॉप रही। इसके बाद मैंने टीवी का रुख किया और कई धारावाहिकों में मुझे काम करने का मौका मिला। इसी दौरान मुझे फिल्म ‘हम साथ साथ है’ में काम करने का ऑफर मिला। यह फिल्म हिट रही और मेरा नाम हो गया। इसके बाद मुझे फिल्मों में काम मिलता चला गया।
फिल्म इंडस्ट्री और टीवी में आप क्या बदलाव देखते हैं?
जब मेरी घर-गृहस्थी शुरू हुई तो उस समय लोग अभिनय को अच्छी निगाह से नहीं देखते थे और मुझे इस बात की हमेशा चिंता रहती थी। लेकिन अब इंडस्ट्री में कई बदलाव आए हैं। माहौल के साथ लोगों की सोच बदली है। पहले बड़े कलाकारों को छोड़कर बाकी कलाकारों को सम्मान नहीं मिलता था। अब कलाकार के काम को सम्मानपूर्वक काम माना जाने लगा है। सच कहूं जो बदलाव हुए हैं अच्छे के लिए हुए हैं।
लोग कहते हैं कि इंडस्ट्री में अच्छी कहानियों का अकाल है?
आजकल चारों तरफ कहानियां तो हैं लेकिन कहानियां प्रोग्रेसिव नहीं, अधिकतर रिग्रेसिव ही हैं और इसकी वजह टीआरपी है। आज जो भी शोज चल रहे हैं, सारे निगेटिव विचारवाले हैं, कुछ पॉजिटिव नहीं है। निर्माता मानते हैं कि सकारात्मक चीजें नहीं चलतीं क्योंकि दर्शकों के विचार को समझ पाना आज मुश्किल हो चुका है। नकारात्मक फिल्में और वेब सीरीज ही आज सुपर-डुपर हिट हो रही हैं। जितना ज्यादा डार्क और भयंकर किरदार होगा लोकप्रियता उतनी ही ज्यादा मिलेगी। हालिया रिलीज फिल्म ‘एनिमल’ इसका ताजा उदाहरण है।
ओटीटी की लोकप्रियता क्या फिल्मों पर भारी पड़ेगी?
वेब सीरीज का प्रचलन पिछले कुछ सालों में अधिक बढ़ा है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि फिल्में पहले भी थीं, आज भी हैं और कल भी रहेंगी। जब देश में टीवी युग शुरू हुआ तब चर्चा होने लगी की टीवी के कारण फिल्मों पर आफत आ जाएगी। लेकिन टीवी आया, मोबाइल में क्रांति हुई, ओटीटी आया लेकिन फिल्में चल ही रही हैं। फिल्म ‘तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया’ से लेकर फिल्म ‘आर्टिकल-३७०’ सभी फिल्मों को पसंद किया गया, यह सच्चाई आपके सामने है।
क्या आप निर्माता बनना चाहते हैं?
मैं फिलहाल एक्टर के रूप में काम करना चाहता हूं। निर्माता बनने के बारे में मैंने कुछ नहीं सोचा। भविष्य की योजना बनाना अच्छी बात है लेकिन हर योजना अपने अंजाम तक जाए यह कोई जरूरी भी नहीं। मुझे अभिनय से सबसे ज्यादा प्यार है और मेरा मन अभिनय में ही रहेगा।