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अब ‘नो थ्रू सिग्नल’ का द एंड! बालासोर दुर्घटना के बाद रेलवे की खुली नींद

  • रेलवे के प्रिंसिपल चीफ ऑपरेशन मैनेजर ने लिखा पत्र
  •  विशिष्ट निर्देशों की रूपरेखा तैयार
  • सावधानी बरतने की आवश्यकता पर जोर

अभिषेक कुमार पाठक / मुंबई
भारतीय ट्रेनें अक्सर दुर्घटनाओं की शिकार होती रहती हैं। इन दुर्घटनाओं में तमाम लोगों की जानें जाती हैं, साथ ही रेल विभाग को आर्थिक क्षति भी होती है। हाल ही में बालासोर में हुई रेल दुर्घटना इसका जीता-जागता उदाहरण है। दिल दहला देने वाली दुर्घटना के बाद रेल विभाग की नींद खुली है। इस कड़ी में पश्चिम रेलवे ने सुरक्षा उपायों को बढ़ाने और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए निर्णायक कदम उठाए हैं। पश्चिम रेलवे के प्रिंसिपल चीफ ऑपरेशन मैनेजर चितरंजन स्वैन ने सभी संबंधित अधिकारियों को एक पत्र जारी किया है, जिसमें सिग्नल के रखरखाव या पुन: संयोजन के बाद पालन किए जाने वाले विशिष्ट निर्देशों की रूपरेखा तैयार की गई है। अब ‘नो थ्रू सिग्नल’ को नो बोला जाएगा यानी इस सिस्टम को खत्म कर दिया जाएगा।
पत्र में सुझाए गए हैं जरूरी बदलाव
‘दोपहर का सामना’ द्वारा प्राप्त इस पत्र में इस तरह के ऑपरेशन के दौरान अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि रीकनेक्शन के बाद पहली अप और डाउन ट्रेन होम सिग्नल से पहले पूरी तरह से रुकी होनी चाहिए। बाद में, इन ट्रेनों को आगे बढ़ने की अनुमति दी जाती है लेकिन ३० किमी प्रति घंटे की सीमित गति से।  इसके अलावा पत्र में कहा गया है कि रीकनेक्शन या किसी भी प्रकार के रखरखाव के बाद पहली ट्रेन के लिए नो थ्रू सिग्नल नहीं दिया जाना चाहिए।
इसके अतिरिक्त, पत्र में रिले रूम, रिले गम्टीज और रिले हट्स की सुरक्षा से संबंधित उपायों पर प्रकाश डाला गया है। यह इनमें से प्रत्येक सुविधा के लिए दोहरे तालों के प्रावधान को अनिवार्य करता है, जिसकी चाबियां विशेष रूप से स्टेशन प्रबंधकों के पास होती हैं। स्टेशन प्रबंधकों को अपने नकद कोष का उपयोग करके नए तालों की खरीद करनी है और सभी चाबियां उनके कब्जे में होनी चाहिए। समर्पित रजिस्टर में उचित प्रविष्टि के बाद ही चाबियां सिगनल अनुरक्षकों या अन्य अधिकारियों को सौंपी जानी चाहिए। इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल मेंटेनर के स्तर से नीचे के एस एंड टी कर्मियों को कोई चाबी नहीं दी जानी चाहिए।
समन्वय बढ़ाने पर दिया जोर
समन्वय बढ़ाने और सटीक रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए पत्र में सुझाव दिया गया है कि स्टेशनों पर डिस्कनेक्शन और रीकनेक्शन के बारे में जानकारी नियंत्रकों के रिकॉर्ड में दिखाई देनी चाहिए। क्रिस (सेंटर फॉर रेलवे इंफॉर्मेशन सिस्टम्स) को इस उद्देश्य के लिए आवश्यक प्रावधान करने का निर्देश देने का आग्रह किया है। अंत में, पत्र ब्लॉकों के लिए सक्रिय योजना के महत्व पर जोर देता है, जिसमें संबंधित शाखा अधिकारी एक सप्ताह पहले ब्लॉकों की योजना बनाते हैं। ऐसी योजना को मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए। किसी भी नियोजित ब्लॉक को अग्रिम रूप से सूचित किया जाना चाहिए, जिससे उपयुक्त ट्रेन विनियमन, शॉर्ट टर्मिनेशन या रद्दीकरण की अनुमति मिल सके, जिसे तुरंत अधिसूचित किया जाना चाहिए। पश्चिम रेलवे के सभी मंडलों के वरिष्ठ मंडल परिचालन प्रबंधक को संबोधित पत्र में चितरंजन स्वैन ने लिखा है, ‘ये निर्देश ट्रेन संचालन में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल प्रभाव से सख्त अनुपालन के लिए जारी किया जाता हैं।’

रेलवे सुरक्षा के ४८ करोड़ मोदी सरकार ने खर्च किए शौचालयों पर : वैâग
केंद्र की मोदी सरकार रेलवे की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं होने की बात सामने आई है। रेलवे सुरक्षा के लिए मिली निधि का उपयोग मोदी सरकार ने अनावश्यक वस्तुओं पर खर्च किया है, इसका ‘कैग’ की ताजा रिपोर्ट से हुआ है। रेलवे सुरक्षा में सुधार के लिए २०१७ में बनाए गए एक विशेष कोष-राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष का दुरुपयोग फुट मसाजर, क्रॉकरी, बिजली के उपकरण, फर्नीचर, सर्दियों की जैकेट, कंप्यूटर और एस्केलेटर खरीदने, उद्यान विकसित करने, शौचालय बनाने और झंडा लगाने के लिए किया गया। भारतीय रेलवे में ट्रेनों के पटरी से उतरने को लेकर कैग द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष २०१७-१८ से २०२०-२१ तक ४८ महीने की अवधि से सुरक्षा के लिए बने कोष के तहत ४८.२१ करोड़ रुपए गलत वस्तुओं की खरीद पर खर्च किए गए हैं। योजना का अनावरण २०१७-१८ के बजट में किया गया था।

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