उमेश गुप्ता / वाराणसी
भूतभावन बाबा विश्वनाथ के बिना काशी की होली अधूरी है। आदिकाल से ही महादेव की नगरी में होली समेत किसी भी उत्सव की शुरुआत ‘बाबा’ से ही होती है। रंगभरी एकादशी के दिन बाबा के संग गुलाल खेलकर रंगोत्सव की शुरुआत हो जाती है। महाश्मशान की नगरी काशी में अन्नपूर्णा स्वरूप देवी गौरी के पहली बार काशी आगमन के साथ ही बनारस में होली की शुरुआत रंगभरी एकादशी से हो जाती है। इसके अगले दिन मोक्ष स्थली मणिकर्णिका पर भस्म की होली खेली जाती है।
मान्यता है कि काशी में रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन बाबा विश्वनाथ शिवगणों के साथ होली खेलते हैं। बाबा भूतों और औघड़ों के साथ तांडव करते हैं। इस दौरान भगवान भोलेनाथ का सबसे विरत और अड़भंगी स्वरूप दिखता है। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में गुरुवार को मणिकर्णिका घाट पर जलती चिताओं के भस्म से होली खेली गयी। यहां भूत-पिशाच का वेश धारण किए लोगों में किसी ने चिताओं के भस्म से होली खेली, तो कोई डमरुओं के नाद पर थिरका। किसी ने चेहरे पर राख मला, तो कोई चिता भस्म से नहाया हुआ नजर आया। इस दौरान घाटों पर राख की मोटी परतें जमी रहीं। पूरा माहौल शिवमय रहा।
मणिकर्णिका घाट पर गुरुवार को मसान की होली देखने के लिए बड़ी संख्या में भक्तगण इकट्ठा हुए। घाटों पर जबरदस्त भीड़ उमड़ पड़ी थी। यहां पांव रखने भर की भी जगह नहीं बची रही। मणिकर्णिका की मसान होली 100 डमरुओं की निनाद के साथ शुरू हुई।
दरअसल, गौना के बाद मां पार्वती को श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर में विराजमान कर बाबा आज यहां पर होली मना रहे हैं। मान्यता है कि रंग भरी एकादशी पर गौना कराकर लौटते समय बाबा विश्वनाथ ने देवताओं के साथ खूब होली खेले थे, लेकिन भूत-प्रेत और औघड़ आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे। इसी वजह से श्रीकाशी विश्वनाथ ने महाश्मशान में भूतों की होली खेली।
इस कार्यक्रम के संयोजक गुलशन कपूर के अनुसार, सबसे पहले 21 अर्चकों ने बाबा मसाननाथ की आरती उतारी। 12 बजकर 5 मिनट पर आरती शुरू हुई, जो 45 मिनट तक चली। बाबा महाश्मशान समिति के अध्यक्ष और भस्म होली के आयोजक चैनू प्रसाद गुप्ता ने बताया कि उन्हीं की पीढ़ी 350 साल से चिता-भस्म की होली करा रही है। आज से करीब 17-18 साल पहले चिताओं के साथ सीधे होली नहीं खेली जाती थी। जब मंदिर में जगह नहीं बची, तो हम लोगों को बाहर निकलना पड़ा। यह हुल्लड़बाजी और बाबा का नटराजन नृत्य देख कर पूरी दुनिया चकित हो उठी, तब से हर साल रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन चिताओं पर होली खेले जानी लगी।
चैनू प्रसाद ने बताया, ”साधु नरमुंड लगाकर तांडव करते हैं। वे कहां से आते हैं, क्या करते हैं और उनकी क्या मंशा है, यह मुझे नहीं पता। कुछ तो ओरिजिनल ही लगते हैं, तो वहीं कुछ कैरेक्टर प्ले करते नजर आते हैं। इन लोगों ने मसाने की सांस्कृतिक होली को भव्य बना दिया है।”