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आपदा प्रबंधन की खुली पोल … पालघर जिला प्रशासन फेल!

• अब तक आसमानी आफत ने लील लीं २१ जिंदगियां
• जिले में ५७३ घरों को पहुंचा गंभीर नुकसान
योगेंद्र सिंह ठाकुर / पालघर
पिछले सप्ताह पालघर जिले में भारी बारिश हुई है। आसमान से बरसती आफत ने ६१ दिनोें में २१ जिंदगियां लील लीं और ५७३ घरों को नुकसान पहुंचाया है। बारिश में हुई तबाही को रोकने में जिला प्रशासन पूरी तरह विफल रहा है, जबकि मानसून आने से ठीक पहले आपदा प्रबंधन के बड़े-बड़े दावे किए गए थे। जो हवा हवाई साबित हुए हैं। यह खुद पालघर जिले के आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़े कह रहे हैं। जिले भर में १ जून से ३१ जुलाई तक ६१ दिनों की अवधि में बारिश के कारण २१ लोगों की जान चली गई है। मृतकों की सबसे ज्यादा संख्या पालघर जिले के ग्रामीण इलाकों की है। जहां पर्यटन स्थलों, झरनों और नदियों में पानी के बहाव में बहने से अब तक २१ लोगों की मौत हो चुकी है।
आपदा प्रबंधन की व्यवस्था ध्वस्त
पालघर तालुका में ६, दहानू-वसई-जव्हार में ४-४ और तलासरी, वाडा और विक्रमगढ़ में १-१ मौत दर्ज की गई है। फिलहाल जिला प्रशासन इन मृतकों के परिवारों को जल्द ही सहायता राशि मुहैया कराने की कार्रवाई कर रहा है। जिले भर में हुई भारी बारिश के बाद जिला प्रशासन ने नदी के बहाव वाले स्थलोें और पर्यटन स्थलों पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि, कुछ झरनों पर मौज-मस्ती करने गए पर्यटकों की दुर्भाग्यपूर्ण मौत की घटनाएं भी हुई हैं। कुछ मौतें नदियों के बाढ़ के पानी में बह जाने के कारण हुर्इं। अभी भी पालघर के कई ग्रामीण इलाकों में बाढ़ की स्थिति बनी हुई है। जिले के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में लोगों और छात्रों को खतरनाक तरीके से नदी, नालों के बीच से होकर अपनी मंजिल तक पहुंचना पड़ रहा है। क्योंकि कई जगहों पर नदियों पर बने पुल और सड़कें पानी के कारण बह गए हैं। हालांकि, जिला प्रशासन बार-बार आग्रह कर रहा है कि कोई भी इस तरह खतरनाक तरीके से यात्रा न करे। जिला प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि भारी बारिश होने पर नागरिक आवश्यक कार्य न हो तो घर से बाहर न निकलें। साथ ही जिला प्रशासन ने तेज बहते पानी और नदी नाले वाले स्थानों पर जाते समय सावधानी बरतने की अपील भी की है। फिर भी पालघर जिले में ६१ दिनों में बारिश के कारण २१ लोगों की मौत हो चुकी है। जो बताने के लिए काफी है कि आपदा प्रबंधन की व्यवस्था जिले में ध्वस्त है।
अधिकारियों के घिसे-पिटे जवाब
जब भी ऐसा होता है, अधिकारियों के जवाब कुछ घिसे -पिटे ही होते हैं। सबके जवाब वही रहते हैं कि बारिश ही इतनी हुई तो क्या किया जा सकता है। ऐसे में एक सवाल उठता है कि वाकई में कुछ नहीं किया जा सकता इसलिए लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि क्या इस बार भी कुदरत जिम्मेदार या फिर लापरवाही का काम है और कुदरत बदनाम है?

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