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झोपु भूखंड का मालिकाना हक विकासकों को देने का विरोध! …गृहनिर्माण नीति पर ग्राहक पंचायत की ओर से आपत्ति -सुझाव प्रस्तुत

सामना संवाददाता / मुंबई
बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करने के लिए स्लम पुनर्विकास परियोजनाओं में भूखंडों को किसी भी परिस्थिति में डेवलपर के नाम पर नहीं दिया जाना चाहिए। मुंबई उपभोक्ता पंचायत ने राज्य की मसौदा आवास नीति पर आपत्तियां और सुझाव दर्ज करते समय यह सुझाव दिया है।
सार्वजनिक भूमि राज्य सरकार के स्वामित्व में है, इसलिए बैंकों या वित्तीय संस्थानों को भूमि गिरवी रखने के बजाय ऋण चुकाने के लिए कड़ी शर्तें लगानी चाहिए। राज्य आवास नीति का मसौदा जारी कर दिया गया है। आपत्तियां एवं सुझाव प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि ३ अक्टूबर थी। अब इसे ७ अक्टूबर तक बढ़ा दिया गया है। उपभोक्ता पंचायत की मांग है कि इसकी समयसीमा को ३१ अक्टूबर तक बढ़ाया जाए। झोपु स्कीम के तहत भूखंड का मालिकाना हक डेवलपर्स को दिया जाएगा। उपभोक्ता पंचायत ने इस मसौदे का कड़ा विरोध करते हुए सुझाव दिया है कि लगातार किस्तें नहीं चुकाने पर डेवलपर की निजी संपत्ति कुर्क कर ली जाए। इसके अलावा इस ड्राफ्ट में त्रुटियों को लेकर १९ सुझाव दिए गए हैं। रुकी हुई पुनर्विकास परियोजनाओं के कारण हजारों निवासी बेघर हो गए हैं। यह भी बताया गया है कि मसौदे में रेरा अधिनियम के तहत इन निवासियों को सुरक्षा के मुद्दे का उल्लेख नहीं है।
आवास की आसमान छूती कीमतों, आवास परियोजनाओं को पूरा करने में लगनेवाले लंबे समय, रुकी हुई आवास परियोजनाओं और हर चरण में होनेवाले बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के समाधान का सुझाव नहीं दिया गया है। पंचायत के कार्यकारी अध्यक्ष एडवोकेट शिरीष देशपांडे ने इस बात को संज्ञान में लाया है। राज्य सरकार पहले ही स्व-विकास के लिए कई रियायतों की घोषणा कर चुकी है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि इस मसौदे में स्व-पुनर्विकास के लिए आवश्यक वित्तीय आधार को मजबूत करने के लिए कोई विकल्प नहीं सुझाया गया है।

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