दिल है रोता, आंखें हैं रोती
आसमान भी रोता है
मैने सुना है, मेरे गुरुजी,
नमी भरे दिल की पुकार
‘तू’ जरूर सुनता है।
जब से आई हूं शरण तुम्हारी
शब्दों को विराम लगा है
आंखें नम हमेशा हैं रहतीं
दिल तुम में लीन रहता है।
बातें तुम्हीं से करती रहती
कोई पल न खाली है रहता
तुम से शुरू दिन मैं करती हूं
तुम्हारे ख्याल से दिन ढलता है,
काश! कभी हो दर्श तुम्हारा
इस चाह से दिल मचलता है
अफसोस! मुझे तब बुलावा आता
जब आप होते हैं बीच हमारे
सालों से ये अभिलाषा है मेरी
अपने ‘जनक’ से मैं मिल पाऊंगी
तुम जो मिले, चैन मिल गया
‘जनक’ तुम्हीं को माना है
लौटे तुम जब गुरुदेव मेरे
मिले बिन क्योंकर जाना है?
काश! हो जाते दर्श तुम्हारे
लिपट तुमसे यूं जाती मैं
रोती, बिलखती, यूं प्यार लुटाती
आस मिलने की बुझाती मैं।
बस यही एक इच्छा जगाई ‘गुरुजी’
चिर निंद्रा में खो जाने को
जब भी आए बारी मेरी
छवि आंखों में बस हो तुम्हारी,
सर पे हाथ हो तुम्हारा गुरुजी,
बस पूरी करना “फरियाद हमारी।”
-नैंसी कौर
नई दिल्ली