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सवाल हमारे, जवाब आपके?

देश में आए दिन हिट एंड रन की घटनाएं सामने आ रही हैं। पुणे पोर्शे कांड के बाद हाल ही में मुंबई के वरली की घटना ने लोगों को हिलाकर रख दिया। आखिरकार, इस तरह की घटनाएं रुक क्यों नहीं रही हैं? इसके लिए आखिर जिम्मेदार कौन है?
आदमी के जान की कोई कीमत नहीं
पुणे और वरली में हिट एंड रन की दोनों घटनाओं में समानताएं कितनी हैं। दोनों ही बिगड़ैल बाप की औलाद, दोनों ही नशे में धुत और दोनों की ही जिंदगी में आम आदमी के जान की कोई कीमत नहीं। अब सबसे बड़ी बात दोनों को ही बचाने के लिए महाराष्ट्र की सरकार इस बात को भूलकर कि यह सरकार जनता द्वारा जनता के लिए बनाई गई है, उन दोनों अपराधियों को बचाने में जुट गई। जहां तक पुलिस का सवाल है तो वह नपुंसक बन चुकी है। अब आप समझ ही गए होंगे कि इन हत्याकांडों की असली जिम्मेदारी किसके सिर पर आती है।
– रजनी, विक्रोली

शराब पीकर गाड़ी चलानेवाले ही हैं दोषी
सच पूछा जाए तो ये दुर्घटनाएं नहीं, बल्कि हत्याएं हैं। क्योंकि दुर्घटना तो वह होती है, जो अचानक होती है और जिसके बारे में कोई अंदेशा नहीं होता, लेकिन इन मामलों में जब दोनों ही लड़के जो ड्राइव कर रहे थे वो शराब पीए हुए थे। कम उम्र में शराब पीना गैर कानूनी है और शराब पीकर गाड़ी चलाना तो उससे भी बड़ा जुर्म। कानून ने शराब पीकर गाड़ी चलाने पर इसलिए पाबंदी लगाई है, क्योंकि शराब पीकर गाड़ी चलाते वक्त ड्राइविंग सीट पर बैठा व्यक्ति नशे में मदहोश होता है। कभी-कभी उसे यह नहीं पता चलता कि वह गाड़ी किस तरह चला रहा है। गाड़ी की स्पीड कितनी है और वह नींद के झोंके में भी रह सकता है। सीधी बात है कि नशे में गाड़ी चलाना मतलब किसी की जान ले सकता है और अपनी भी जान गवां सकता है। इन दोनों ही मामलों में दोनों ही लड़के नशे में थे और ड्राइव कर रहे थे। ऐसे में एक्सीडेंट नहीं होता तो यह खुशकिस्मती कही जा सकती थी, लेकिन दोनों ही मामलों में बदकिस्मती रही कि पुणे के मामले में एक कपल और वरली के मामले में पति-पत्नी में से पत्नी की जान चली गई। हमारी नजर में शराब पीकर गाड़ी चलानेवाले ही दोषी हैं।
– सतीश मोरे, कल्याण

दुर्घटनाओं के लिए हैं माता-पिता दोषी
मुझे तो लगता है कि इन दुर्घटनाओं के लिए माता-पिता दोषी हैं। उन्हें पता था कि उनके बेटे शराबी और नशेड़ी हैं। उन्हें पता था कि उनकी उम्र उस लायक नहीं है कि वो शराब पीएं और गाड़ी चलाएं। उन्हें यह पता होना चाहिए कि उनके बेटे यदि शराब पीते हैं तो उन्होंने कभी उन पर यह ज्यादती नहीं की कि वे शराब पीकर गाड़ी न चलाएं। अगर उनके अभिभावक कठोर होते तो उनकी गाड़ियों के नीचे आकर लोगों की जानें नहीं जातींr।
– राधिका चौहान, माटुंगा

कानून-व्यवस्था है रईसों के हाथ की कठपुतली
इन दोनों घटनाओं से इतना समझ में आ गया है कि इस देश में कानून और व्यवस्था रईसों के हाथ की कठपुतली है, क्योंकि एक्सीडेंट होते ही अजीत पवार की पार्टी का कोई दलाल पुणे पुलिस को मैनेज करने में लग गया। वरली एक्सीडेंट के मामले में शिंदे गुट का कोई दलाल वही काम मुंबई पुलिस के साथ करने लगा। अब राजनीति में दलाल ही सब करने लग गए हैं तो कानून से क्या अपेक्षा की जा सकती है?
– गौतम झा, बोरीवली

सब कुछ अपराध ही तो है
मुंबई, पुणे, बंगलुरु, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में रात भर शराब बिकती है। नाइट क्लब बेधड़क लोगों की सेवा में समर्पित रहते हैं। इन शराबखानों में हालांकि, कम उम्र के बच्चों को शराब परोसने पर मनाही है, लेकिन आंख मूंदकर शराब परोसी जाती है। इन बारों से जब नशे में धुत शराबी बाहर निकलते हैं तो कुछ भी हो सकता है, लेकिन इन शराबखानों के मालिकों को सिर्फ कमाने से मतलब होता है। गैरकानूनी ढंग से शराब बेचना और अपनी गैरकानूनी हरकतों को पुलिस और सरकार से बचाने के लिए उन्हें भी रिश्वत देना सब कुछ अपराध ही तो है।
– हरीश, खार

अगले सप्ताह का सवाल?
रेल हादसों में हर साल सैकड़ों लोगों की मौत होती है। आखिर क्या कारण है कि तमाम प्रयासों के बावजूद इस तरह के हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं? क्या इसके लिए पूर्णतया रेलवे जिम्मेदार है या फिर व्यवस्था? इस पर आपका क्या कहना है?
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