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सवाल हमारे, जवाब आपके ?

केंद्र सरकार चुनावी घोषणाओं में युवाओं को रोजगार देने की गारंटी देती फिर रही है, जबकि देश में ८३ फीसदी युवा बेरोजगार हैं। २०१२ की तुलना में इस सरकार के कार्यकाल में युवा बेरोजगारी तीन गुना बढ़ गई है। क्या केंद्र सरकार की यही गारंटी है। इस पर आपका क्या कहना है?

अमली जामा पहनाना है जरूरी
केंद्र सरकार द्वारा युवाओं को रोजगार देने की गारंटी देने की बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन इसका अमली रूप से प्रभावी होना जरूरी है। युवा बेरोजगारी की समस्या गंभीर है और इसे हल करने के लिए सरकार को सक्रिय और संवेदनशील प्रयास करने की आवश्यकता है। गारंटी देने के साथ-साथ नीतियों को क्रियान्वित करने में भी सकारात्मक परिणामों की आशा की जा सकती है।
– नीरज मिश्रा, मीरा रोड

यह कड़वी सच्चाई है
देश में बेरोजगारी बढ़ रही है यह देश की एक कड़वी सच्चाई है, लेकिन तकलीफ तो इस बात की है कि सच्चाई को स्वीकारने को कोई भी तैयार ही नहीं है। कम से कम ऐसे वक्त में जब चुनाव सिर पर हैं तब तो आपको इन बातों को स्वीकार करना चाहिए और बेरोजगारी को खत्म करने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए। जब इस सच्चाई से सरकार ने ही अपनी आंखें मूंद ली हैं तो हमें भी यह मान लेना चाहिए कि देश में बेरोजगारी है ही नहीं।
– अपर्णा खरे, अंधेरी

बातों की बजाय कदम उठाए सरकार
केंद्र द्वारा युवाओं को रोजगार देने की गारंटी देना महत्वपूर्ण है, लेकिन बड़ी-बड़ी बातें करने से ज्यादा वास्तविक कदम उठाने की जरूरत है। युवाओं की बेरोजगारी की समस्या गंभीर है और इसके समाधान के लिए निरंतर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। सरकार के वादों को वास्तविकता में परिणाम में बदलने के लिए, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर सहयोग और प्रेरणा की आवश्यकता है।
– संदीप दुबे, सांताक्रुज

हंसें या रोएं समझ नहीं आता
पिछले दिनों एक रिपोर्ट पढ़ी थी, जिसमें लिखा था कि भारत के कुल बेरोजगारों में ८० फीसदी युवा हैं। द इंडियन अपॉइंटमेंट रिपोर्ट २०२४ के मुताबिक, पिछले २० सालों में भारत में युवाओं के बीच बेरोजगारी लगभग ३० प्रतिशत बढ़ चुकी है। सन् २००० में युवाओं में बेरोजगारी की दर ३५.२ प्रतिशत थी, जो २०२२ में ६५.७ प्रतिशत हो गई है। अब इस रिपोर्ट पर हंसें या रोएं समझ नहीं आता।
– शैलू तिवारी, मानखुर्द

ठोस कदम उठाने की जरूरत
सरकार को युवाओं के रोजगार को लेकर सख्ती से निर्धारित कदम उठाने की जरूरत है, न कि खोखले वादों में बहकाने की। बेरोजगारी निवारण के लिए नीतियों को क्रियान्वित करने में वक्त गंवाने की बजाय सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
– अजय सिंह, नालासोपारा

मजाक बनकर रह गई है गारंटी
गारंटी शब्द अब एक मजाक बनकर रह गया है कोई भी आता है और गारंटी देकर चला जाता है। दरअसल, गारंटी वह किस चीज की देता है, उस पर लोगों ने गंभीरता से सोचना ही बंद कर दिया है। सभी को पता है कि यह सब चुनाव जीतने के जुमले हैं, जब जुमले और गारंटी एक-दूसरे के पूरक हो जाते हैं तो नतीजा यही होता है।
– आत्माराम, कांदिवली

अगले सप्ताह का सवाल?
बेरोजगारी की बीमारी के चपेट में आईआईटी संस्थान भी आ चुके हैं। देश के प्रतिष्ठित आईआईटी संस्थानों में से एक आईआईटी मुंबई के प्लेसमेंट में दो साल से गिरावट जारी है। पिछले वर्ष ३२ फीसदी और इस वर्ष ३६ फीसदी छात्रों का प्लेसमेंट नहीं हुआ। इस पर आपका क्या कहना है?
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