मुख्यपृष्ठखेलआउट ऑफ पवेलियन : वो कौन थी चहल की बगल में?

आउट ऑफ पवेलियन : वो कौन थी चहल की बगल में?

अमिताभ श्रीवास्तव

धनश्री से तलाक की खबरों के बीच दुबई में फाइनल मैच के दौरान जब युजवेंद्र चहल को एक लड़की के साथ देखा गया तो सबके मन में सवाल आया कौन है जो चहल के बगल में बैठी है? वैâमरा भी बार-बार उन्हीं के ऊपर जा रहा था। इसके पहले भी चहल को इस लड़की के साथ देखा गया था मगर उस वक्त पहचान नहीं हो पाई थी कि ये कौन है? कमाल है सोशल मीडिया का जहां कोई किसी से नहीं बच सकता। आखिरकार पकड़ ही लिया गया कि ये लड़की कौन है? यह आरजे महवाश हैं। यानी क्या चहल महवाश के मोहपाश में हैं? जी हां, आरजे महवाश के साथ पहले भी युजवेंद्र चहल का नाम जुड़ा था। धनश्री वर्मा के साथ जब चहल के तलाक की खबरें चल रही थीं तो उस दौरान दोनों को एक साथ एक पार्टी के बाद स्पॉट किया गया था। हालांकि, उस दौरान महवाश ने ये कहा था कि चहल सिर्फ उनके अच्छे दोस्त हैं, लेकिन दुबई में एक साथ स्पॉट किए जाने के बाद एक बार फिर से चहल के नए रिश्ते की चर्चा होने लगी है। आरजे महवाश दिल्ली की एक रेडियो जॉकी हैं। रेडियो जॉकी के अलावा सोशल मीडिया पर कंटेंट क्रिएटर भी हैं। वह अपनी शानदार आवाज और मनोरंजक स्टाइल के लिए जानी जाती हैं। सोशल मीडिया पर उनकी अच्छी-खासी फॉलोविंग है और इंस्टाग्राम पर उनके १.४ मिलियन से अधिक फॉलोवर्स मौजूद हैं। कथित रूप से महवाश को ‘बिग बॉस’ और नेटफ्लिक्स के एक सीरीज में भी काम करने का ऑफर मिला था, लेकिन किसी वजह से वह काम नहीं कर पाईं।

यहां नहीं मनाते होली
रुकिए, होली भले ही भारत देश का पर्व है मगर भारत में कुछ ऐसी जगहें हैं जहां होली नहीं मनाई जाती। क्या आप जानते हैं? नहीं तो आज इस पर ही नजर डाली जाए। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में खुरजान और क्विली नाम के दो गांव हैं, जहां पिछले १५० सालों से होली नहीं खेली गई है। यहां के लोग मानते हैं कि उनकी कुल देवी को ज्यादा शोर-शराबा पसंद नहीं है। देवी नाराज हो जाएंगी और इस डर के कारण लोग यहां होली के रंगों से दूर रहते हैं। गुजरात में रामसन नामक एक जगह है, जहां २०० सालों से होली का त्योहार नहीं मनाया गया। मान्यता है कि इस गांव का नाम भगवान राम के नाम पर पड़ा, क्योंकि श्रीराम अपने वनवास के दौरान यहां आए थे। होली न मनाने के पीछे दो बड़ी वजहें बताई जाती हैं। २०० साल पहले जब गांव में होलिका दहन किया गया था, तब अचानक आग फैल गई और कई घर जलकर खाक हो गए। इसके बाद से लोगों ने होली मनाना बंद कर दिया। एक मान्यता यह भी है कि साधु-संतों ने गांव को श्राप दिया था कि अगर यहां होलिका दहन किया गया तो पूरे गांव में आग लग जाएगी। इस डर से लोग अब होली नहीं मनाते। ऐसा बताया जाता है कि दुर्गापुर में लगभग १०० सालों से होली नहीं खेली गई। इस गांव के लोग मानते हैं कि होली के दिन उनके राजा के बेटे की मृत्यु हो गई थी। इसके ठीक एक साल बाद राजा भी होली के दिन चल बसे। मरते समय राजा ने गांववालों से कहा कि वे कभी भी होली न मनाएं। तब से लेकर आज तक इस गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाता है।

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