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पस्त हुईं पालघर की स्वास्थ्य सुविधाएं!… इलाज के लिए भटकने पर मजबूर लोग

• करना पड़ रहा २० किमी का जोखिम भरा सफर
• ६ पहले उपकेंद्र को मिली थी मंजूरी

योगेंद्र सिंह ठाकुर / पालघर
स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी को लेकर किए जा रहे तमाम दावों के बीच पालघर के जनजातीय बाहुल्य क्षेत्रों में हकीकत कुछ और ही नजर आता है। यहां न तो स्वास्थ्य सेवाएं हैं और न ही अस्पताल तक जाने के लिए सड़कें। विभिन्न राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों की रैंकिंग तय करने के लिए निर्धारित स्वास्थ्य सूचकांक के मूल्यांकन में पालघर जिला परिषद के पांचवें स्थान पर आने पर प्रशासन ने भले ही अपनी खूब पीठ थपथपाई है लेकिन जिले कि स्वास्थ्य सुविधाएं पस्त हो गई हैं।
बता दें कि जिले के मोखाड़ा तालुका में पंद्रह सौ की आबादी वाले दूरस्थ अंचलों में स्वास्थ्य व्यवस्था लगभग कागजों तक सीमित हैं। मोखाड़ा से कुर्लोद गांव करीब २० से २५ किमी की दूरी पर स्थित है। यह गांव खोडाला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत आता है लेकिन खोडाला से कुर्लोद की दूरी भी लगभग २० किमी है। इस ग्राम पंचायत की आबादी लगभग डेढ़ हजार है। इसमें पेठेपाड़ा, कापसीपाड़ा, माणीचापाड़ा, वडपाड़ा, रायपाड़ा, शेंड्याचापाड़ा, जांभूलपाड़ा और आंबेपाड़ा शामिल हैं। सर्पदंश या अन्य रोगों से कई लोगों की मौत हो चुकी है। बचाव शिविर के नाम से एक काम चलाऊ व्यवस्था स्थापित की जाती है लेकिन कुछ समय में वो भी गायब हो जाती है।

राह में नदी का रोड़ा
ग्राम पंचायत के चार पाड़ा जांभुलपाड़ा, रायपाड़ा, शेड्याचपाड़ा और अंबापाड़ा का संपर्क मानसून के दौरान पूरी तरह से अन्य इलाकों से टूट जाता है। इन गांवों के बीच नदी है लेकिन उस पर पुल नहीं है। ऐसे में यहां उपकेंद्र व स्वास्थ्य व्यवस्था होना जरूरी है लेकिन यहां स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं होने से नागरिकों के पास अक्सर जान गंवाने के अलावा कोई चारा नहीं रहता। लोग मजबूरी में कई किमी जव्हार या तो मोखाड़ा उपचार के लिए ले जाने को मजबूर हो जाते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बरसात के मौसम में नदी का जल स्तर बढ़ने से मरीजों को अस्पताल तक पहुंचाना संभव ही नहीं रहता।

उपलब्ध नहीं हो सकी जमीन
कुर्लोद में उपकेंद्रों को करीब ६ साल पहले स्वीकृति मिली थी लेकिन लाल फीताशाही का शिकार हो गया और इसकी फाइल आगे नहीं बढ़ सकी। अब सवाल उठता है कि क्या सरकार फिर किसी की मौत का इंतजार कर रहा है?

जर्जर सड़कें और अपर्याप्त एंबुलेंस
आदिवासी बाहुल्य मोखाड़ा, जव्हार, डहाणू, विक्रमगढ़, तलासरी जैसे इलाकों में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी, बदहाल स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ खस्ताहाल सड़कों की मार भी गांव में रहने वाले आदिवासियों पर पड़ती है। ग्रामीण गर्भवती महिला और जख्मियों को डोली के सहारे आपदा में ध्वस्त और बदहाल रास्तों पर कई किमी चलकर अस्पताल पहुंचना पड़ता है। इसके बाद वहां पहुंचने पर भी बदहाल व्यवस्था उन्हें इलाज तक नहीं दे पाती। अधिकतर गांवों की खराब सड़कों और एंबुलेंस की कमी के चलते मरीज समय पर अस्पताल भी नहीं पहुंच पाते हैं, जिससे उनकी मौत हो जाती है।

लाचार मरीजों से कमीशन का कनेक्शन
मरीज को देखने के लिए डॉक्टर पहुंचते हैं? आते ही ऐसी दवा लिखते हैं, जो बाहर मिलती है। सरकारी अस्पतालों में जांच न होने से लोगों को बाहर से करवाने के लिए कहा जाता है। सबका कमीशन बंधा हुआ है। ये खेल बहुत बड़ा है और इसमें डॉक्टर के साथ अस्पताल के स्टाफ भी शामिल होते हैं। एक मरीज पार्वती ने कहा कि कुछ दवाइयां मिल जाती हैं लेकिन बाकी दवाइयां बाहर से लेनी पड़ती है।

आजादी के ७५ साल बाद भी आदिवासियों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिली हैं। कुर्लोद गांव में स्वास्थ्य उपकेंद्र और गांव के संपर्क मार्ग टूटने को लेकर मैंने अनशन भी किया था लेकिन जगह का मामला मंत्रालय के स्तर पर है। यह कहते हुए कि कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। जल्द ही समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो जिलाधिकारी कार्यालय पर ग्रामीणों के साथ प्रदर्शन किया जाएगा।
-प्रदीप वाघ, उपसभापति, पंचायत समिति, मोखाड़ा

चली जाती है जान
कुछ समय पूर्व मोखाड़ा तालुका के मर्कटवाड़ी गांव की रहने वाली वंदना बुधर ने २ जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। समय से पहले बच्चों का जन्म होने से महिला और उसके बच्चों की हालत काफी खराब हो गई। महिला और उसके बच्चों को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस सेवा १०८ को फोन किया गया लेकिन गांव को जोड़ने वाली सड़क नहीं होने के कारण एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच सकी, जिससे एक डोली के सहारे वंदना के परिवार वाले खतरनाक रास्तों से होकर करीब तीन किमी चलकर उसे अस्पताल लेकर पहुंचे लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। अत्यधिक रक्तस्राव होने के कारण वंदना की हालत काफी बिगड़ गई और समय पर इलाज न मिलने के कारण उसके दोनों जु़ड़वां बच्चों की मौत हो गई।

स्टाफ की कमी
३१ जनवरी, २०२३ तक के आंक़ड़ों पर नजर डालें तो जिले के स्वास्थ्य विभाग में ३० राजपत्रित पद स्वीकृत हैं, जिनमें से १९ पद खाली हैं। ब श्रेणी के ३३ डॉक्टर के पद स्वीकृत हैं, जिनमें से २२ खाली हैं। डॉक्टर के ९२ में से ४३ पद खाली हैं। डेंटल डॉक्टर के स्वीकृत १४ में से ११ पद रिक्त हैं। इसी तरह तीसरी श्रेणी के स्टाफ नर्स, लैब, एक्सरे टेक्नीशियन आदि के लिए ३७९ पद स्वीकृत हैं, इनमें से १५० पद खाली हैं। चतुर्थ श्रेणी के लिए १३७ पद स्वीकृत हैं, जिनमें से ९९ की नियुक्ति नहीं हुई है। सिविल सर्जन कार्यालय में स्वीकृत ३३३ पदों में से १० ही भरे गए हैं।

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