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पंचनामा : शिंदे सरकार में कैसे गूंजेगी किलकारी?…मुंबई में बढ़े माताओं की मौत के आंकड़े

-गर्भ में ही दम तोड़ रहे भ्रूण…दो सालों में प्रदेश में २,२१६ माताओं की हुई मौत

धीरेंद्र उपाध्याय

शिंदे सरकार राज में मनपा लगातार दावा करती रही है कि मुंबईकरों के सुदृढ़ स्वास्थ्य को लेकर हम चिंतित रहते हैं। इसके लिए प्रमुख, उपनगरीय अस्पतालों के साथ ही स्वास्थ्य केंद्रों में समय-समय पर तमाम तरह की जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाती रही हैं। इसके बावजूद मुंबई में माता व बाल मौतों को रोकने में मनपा असफल साबित होती हुई दिखाई दे रही है। राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, बीते दो सालों मुंबई में कुल २,४८२ भ्रूणों ने गर्भ में ही दम तोड़ दिया है। इसी तरह ३५० माताओं की प्रसव व अन्य कारणों की वजह से मौत हुई है। दूसरी तरफ कड़ी मेहनत करके तत्कालीन महाविकास आघाड़ी सरकार द्वारा माता व भ्रूण मौतों को काफी हद तक कंट्रोल में लाया गया था, लेकिन शिंदे सरकार अपने शासनकाल में मुंबई में इन बाल मौतों को रोकने में नाकाम साबित हो रही है। दूसरी तरफ कुछ यही हालात राज्य में भी हैं। राज्य में इस अवधि में न केवल २,२१६ माताओं ने दम तोड़ा है, बल्कि २३,६८६ भ्रूणों की गर्भ में ही मौत हुई है।
उल्लेखनीय है कि मुंबई मनपा पांच प्रमुख अस्पताल, १६ उपनगरीय अस्पताल, ३० प्रसूति गृह, २१२ आरोग्य केंद्र, २२६ आपला दवाखाना को संचालित कर रही है। इन सभी पर मनपा के बजट में स्वास्थ्य पर हजारों करोड़ रुपए के निधि का प्रावधान किया जाता है। मनपा और राज्य में जब तक महाविकास आघाड़ी की सत्ता थी तब तक मुंबई में अस्पतालों से लेकर दवाखानों के साथ ही तमाम स्वास्थ्य योजनाओं पर पर्याप्त निधि खर्च की जाती थी। हालांकि, बीते ढाई सालों से मनपा, जनप्रतिनिधि विहीन है। ऐसे में भले ही मनपा आयुक्त व प्रशासक की देख-रेख में मनपा का कामकाज चल रहा हो, लेकिन इसका रिमोट शिंदे सरकार के हाथों में है। शिंदे सरकार जिस ओर चाह रही है, उस ओर मनपा का पहिया चल रहा है। इसका सबसे अधिक नुकसान मुंबईकरों को हो रहा है। मुंबई में स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। जीरो प्रिस्क्रिप्शन पॉलिसी के लागू न होने से अस्पताल अभी भी दवाइयों और तमाम स्वास्थ्य सुविधाओं की मार झेल रहे हैं। एमआरआई के लिए कई मनपा अस्पतालों में नौ-नौ महीने तक की वेटिंग है। ऐसे में जब तक मरीजों का नंबर आता है, तब तक उनकी हालात और खराब हो जाती है। मुंबई में सबसे दयनीय स्थिति छोटे बच्चों की है। मुंबई में तमाम संसाधन होने के बाद भी बाल मौतें रुकने का नाम नहीं ले रही है। मुंबई में साल २०२२ जहां १,४०४ भ्रूणों की मौतें हुई, वहीं साल २०२३ में १,०७८ मौंतें दर्ज की गईं। इसी तरह मुंबई में साल २०२२ में २०९, जबकि २०२३ में १४१ माता मृत्यु को पंजीकृत किया गया है, जो यह साबित करने के लिए काफी है कि यह सरकार किस तरह से स्वास्थ्य सेवाओं पर काम कर रही है।
राज्य में भी चिंताजनक है मृत्यु दर
राज्य स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, विभिन्न कारणों की वजह से साल २०२२ में १,२१७, जबकि साल २०२३ में ९९९ माताओं की मौतें हुई है। इसमें मुंबई में सबसे अधिक संख्या २५० है। बताया गया है कि समय से पहले प्रसव, मातृ मृत्यु, कुपोषण, जन्म दोष और संक्रमण जैसे बाल मृत्यु के कई कारक हैं। बताया गया है कि माताओं में कुपोषण, भ्रूण में कुपोषण और सही समय पर पता न चलने से नवजात शिशुओं में स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करती है। इसके साथ मौजूदा समय में देर से शादी का चलन बढ़ा है। इस कारण समय से पहले बच्चों के जन्म की दर भी बढ़ रही है।
चिंताजनक भ्रूण मौतों के आंकड़े
राज्य स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, प्रदेश में दो सालों में २३,६८६ भ्रूण मौतें हुई है। इनमें से साल २०२२ में १३,६४४ और साल २०२३ में १०,०४२ मौतें शामिल हैं। बताया गया है कि मुंबई में तमाम तरह की स्वास्थ्य सुविधाएं होने के बाद भी भ्रूण मौतों को रोक पाने में मनपा से लेकर राज्य सरकार का स्वास्थ्य तंत्र फेल साबित हो रहा है। आंकड़े बता रहे हैं कि राज्य के अन्य जिलों की तुलना में मुंबई में सबसे अधिक भ्रूण मौतें हुई है। इसके बाद पुणे का नंबर आता है, जहां साल २०२२ में १,१५६ और साल २०२३ में ९१४ भ्रूण मौतें हुई हैं। इस मामले में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का जिला ठाणे भी पीछे वैâसे रह सकता है। ठाणे जिले में भी साल २०२२ में ९०४ और साल २०२३ में ७८९ मौतें हुई है।
बढ़ती उम्र में गर्भ संबंधी कई समस्याएं
चिकित्सकों के मुताबिक, ४० वर्ष की आयु के बाद गर्भावस्था से उच्च रक्तचाप, गर्भकालीन मधुमेह, थायराइड, क्रोमोसोम विकार जैसी जटिलताएं होती हैं, जिससे समय से पहले प्रसव होने का खतरा रहता है। बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार, महामारी के बाद बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो गई है, जिसके कारण वे आसानी से बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। बच्चे एनीमिया सहित रक्त विकारों के प्रति भी संवेदनशील होते हैं। ऐसे में स्वास्थ्य प्रणाली को इन मौतों को रोकने के लिए उचित उपाय करने की जरूरत है।
डॉ. शोभना चव्हाण, महिला रोग विशेषज्ञ
समय पर एंबुलेंस न मिलने से भी होती हैं मौतें
महाराष्ट्र में अक्सर स्वास्थ्य विभाग का लापरवाह और संवेदनहीन चेहरा सामने आते रहता है। इसमें एंबुलेंस देर से पहुंचने के कारण कई प्रसूताओं और उनके पेट में पल रहे भ्रूण की साथ में मौत हो जाती है। इस तरह के अब तक कई मामले ग्रामीण और दुर्गम आदिवासी क्षेत्रों में सामने आ चुके हैं। इसके बाद भी शिंदे सरकार की नींद नहीं टूट रही है।
रेनू मिश्रा, ठाणे
शिंदे राज में कब होगा कुपोषण पर ‘वार’
महाराष्ट्र सरकार के अपने सर्वेक्षण से पता चला है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के ठाणे जिले में १,८५२ कुपोषित बच्चे हैं। राज्य महिला व बाल विकास विभाग और स्वास्थ्य विभाग ने ठाणे के शहरी और ग्रामीण इलाकों में यह सर्वेक्षण किया है। इसमें सामने आया है कि १८१ बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित और १,६७१ बच्चे मध्यम कुपोषित हैं, जबकि मध्यम कम वजन और काफी कम वजन के २३,०३४ बच्चे पाए गए हैं।
दीपक हरपुडे, ठाणे

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