-प्राचीन भारतीय परंपराओं से अलग हुआ भोजन
अशोक तिवारी
आज के आधुनिक युग में हमारा आहार देश की प्राचीन परंपराओं से बहुत अलग होता जा रहा है। आजकल जो भोजन करते हैं, चाहे फास्ट फूड के नाम या फिर अन्य विविध प्रिपरेशन के रूप में, वह सब आंतों के लिए बहुत हानिकारक है। आजकल खाद्य पदार्थ और दवाइयों के पैकेट पर एक्सपायरी तारीख़ लिखी रहती है। इसका मतलब होता है उस तारीख के बाद प्रयोग वर्जित है, क्योंकि वह खाद्य पूरी तरह जहरीले पदार्थ में बदल चुका है। ऐसा एक दिन में नहीं होता, बल्कि बनने और पैकेजिंग के बाद धीरे-धीरे खाद्य संरक्षण केमिकल जहरीला बन जाता है। खाद्य पदार्थ और दवाइयां सड़ने के कारण जहरीली नहीं बनतीं, बल्कि उनको संरक्षित रखने के लिए जो प्रिजर्वेटिव डाले जाते हैं; उनके कारण जहरीलापन अधिक आता है, उनमें से कुछ मसालों में प्रयोग किए गए केमिकल्स के कारण विदेश में मसाले ही प्रतिबंधित कर दिए गए हैं।
हम कैसे बेवकूफ बन रहें हैं
१. पहले हम दस रुपए किलो टमाटर खरीदकर तारी चटनी खाते थे। अब हम १५० रुपए किलो का दो महीने पुराना टोमैटो सॉस खाते हैं।
२. पहले हम एक दिन पुराना पानी भी नहीं पीते थे, आजकल हम २० रुपए वाली तीन महीने पुरानी बोतल का पानी पीते हैं।
३. पहले हम सुबह शाम ताजा दूध पीते थे। आजकल हम पांच दिन पुराना थैली वाला दूध ताजा के नाम से पीते हैं।
४. पहले हम ताजा जूस पीते थे, अब हम ६ महीने पुराना जूस अलग-अलग नाम से पीते हैं।
५. पहले हम ताजा जलजीरा पीते थे अब हम दो महीने पुराना कोल्ड ड्रिंक ६० रुपए लीटर में पीते हैं।
६. ५०० या ७०० रुपए प्रति किलो वाले काजू,बादाम जो शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाते हैं,वह हमें महंगा लगता है, लेकिन ४०० वाला सड़े हुए मैदे से बना पिजा हमको सस्ता लगता है।
बढ़ रही हैं पेट की बीमारियां
अक्सर देखा जाता है कि लोगों में पेचिश फिर कोलाइटिस और अल्सर और अंत में वैंâसर हो जाता है। पुराने समय में पेट की ऐसी बीमारियां कभी नहीं होती थी। इसका कारण था मोटे अनाज जिन में रफेज की कमी नहीं रहती, खाए जाते थे। आज के लोग पैâशन में मैदा की चीजें खाते हैं ऊपर से रफेज की फंकी लगाते रहते हैं।
केमिकल का इस्तेमाल बढ़ा रहे हैं पेट की बीमारी
आज के वैज्ञानिक दौर में फसलों एवं सब्जियों को उगाने के लिए कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ फलों को भी पकाने और उनका आकार बढ़ाने के लिए केमिकल युक्त इंजेक्शन का इस्तेमाल हो रहा है। यह केमिकल युक्त अनाज से बना भोजन जब इंसान खाता है तो उसे पेट का अल्सर और कैंसर जैसी घातक बीमारियां हो जाती हैं। जागरूकता के अभाव में भारतीय अपने स्वास्थ्य से बुरी तरह खिलवाड़ कर रहे हैं।
डॉक्टर रजनीकांत मिश्रा, मुंबई
भारतीय परंपरागत भोजन है वरदान
आज विदेशियों में भारतीय सभ्यता और परंपरा को अपनाने की होड़ लगी हुई है। भारत का एक बड़ा वर्ग आज फिर से ऑर्गेनिक खेती की तरफ वापस लौट रहा है। भारतीय परंपरागत भोजन न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए अच्छे थे, बल्कि मानव सभ्यता के लिए एक वरदान थे। आज माता-पिता भी बच्चों को ताजा भोजन देने की बजाय पैक्ड फूड खिलाने पर जोर देते हैं जो कि सरासर गलत है।
अजय अमरनाथ शुक्ला, सिविल इंजीनियर, कुर्ला
पश्चिमी सभ्यता की नकल
आज से मात्र ३० से ३५ वर्ष पहले तक ९० साल के बुजुर्ग व्यक्ति को भी चश्मा नहीं लगता था,उसके पूरे दांत सलामत रहते थे। युवा वर्ग में पश्चिमी सभ्यता और भोजन का खतरनाक क्रेज बढ़ चुका है। आश्चर्य की बात यह है कि उनके माता-पिता भी भारतीय भोजन की अवहेलना करते हुए उन्हें चाइनीस जैसे घातक भोजन खिलाने पर जोर देते हैं। युवा वर्ग को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के लिए सरकार के साथ ही माता-पिता को भी उचित शिक्षा देनी चाहिए।
अखिलेश तिवारी, समाजसेवक
डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और कैंसर का हब बन रहा है भारत
पहले गांव में जिले में एक अस्पताल होते थे। क्योंकि पहले कभी-कभार ही कोई बीमार पड़ता था। आज हर गली मोहल्ले में अस्पताल है, क्योंकि आज जनता को अस्पताल की ज्यादा जरूरत है। केमिकल युक्त विषाक्त भोजन ही भारत के नागरिकों के स्वास्थ्य को खराब कर रहे हैं। आज भारत डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और कैंसर जैसी बीमारियों का हब बन चुका है। जबकि सरकार का ध्यान इस गंभीर मुद्दे की तरह बिल्कुल नहीं है। अभी से प्रयास नहीं किए गए तो आने वाले दिनों में स्थिति भयावह हो सकती है।
अरशद आमिर सैयद, समाजसेवक
सरकार उदासीन क्यों?
केंद्र सरकार स्वदेशी अभियान और मेड इन इंडिया अभियान जोर-जोर से चला रही है। आखिर सरकार का ध्यान इस तरफ क्यों नहीं जाता है कि केमिकल युक्त जहरीले भोजन देश की जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। सरकार को इन मुद्दों पर जनता को न सिर्फ जागरूक करना चाहिए, बल्कि जहरीला सामान बेचने वाली कंपनियों को भी बंद करना चाहिए।
सिद्धराम पवार, साकीनाका