प्रणव पारे
मध्य प्रदेश में भाजपा की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। भाजपा की पूर्व विधायक ममता मीना ने पार्टी से इस्तीफे का एलान कर दिया है। इसके साथ ही वे ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) का दामन थामने की तैयारी कर रही हैं। इस बवाल के बीच इंदौर से बुरी खबर सामने आ रही है। यहां पर ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक प्रमोद टंडन ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। प्रमोद टंडन भाजपा की राज्य कार्यसमिति के सदस्य हैं, वहीं ग्रामीण राजनीति में भाजपा से बड़ा नाम रहे दिनेश मल्हार ने भी भाजपा छोड़ दी है। दोनों नेताओं ने शहर अध्यक्ष के साथ ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा को अपना इस्तीफा भेजा है। सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद प्रमोद टंडन ने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया था और भाजपा ज्वाइन कर ली थी।
भाजपा में आने से पहले प्रमोद टंडन पूर्व में युवा कांग्रेस और इंदौर कांग्रेस के शहर अध्यक्ष रह चुके हैं। दो बार पार्षद का चुनाव लड़ चुके हैं।
सिंधिया के कट्टर समर्थक होने के कारण ही उन्हें शहर अध्यक्ष बनाया गया था। वे लगभग ७ साल अध्यक्ष रहे थे। भाजपा में शामिल होने के बाद टंडन पिछले ४-५ महीनों से अपनी उपेक्षा से नाराज चल रहे थे।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा से लगातार बगावत की खबरें सामने आ रही हैं, भाजपा लाख दावे कर रही है कि उनकी पार्टी में सब कुछ ठीक है, लेकिन रोज किसी न किसी नेता की बगावत की खबर सामने आ जाती है।
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक बयानबाजी का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। पिछले दिनों कांग्रेस की ‘जन आक्रोश यात्रा’ के पोस्टर से पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की फोटो गायब थी, जिसके बाद भाजपा ने कांग्रेस पर कई आरोप लगाए थे। यहां तक कि केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस को यूज एंड थ्रो वाली पार्टी करार दिया था।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि मुझे आश्चर्य है कि दिग्विजय सिंह का चेहरा कांग्रेस ने अपने पोस्टर में से हटा दिया है। जो इनकी रैली निकल रही है, उसके पोस्टर में कांग्रेस के सभी नेताओं के चेहरे तो लगे हैं, लेकिन उसमें दिग्विजय सिंह का चेहरा नहीं है। यही मान-सम्मान कांग्रेस पार्टी अपने २ बार के मुख्यमंत्री को दे रही है। उनको पोस्टर से ही गायब कर दिया। मुझे बहुत आश्चर्य है। यही कठनाई कांग्रेस पार्टी की है, वहां केवल यूज एंड थ्रो की ही राजनीति की जाती है।
इस पर पलटवार करते हुए दिग्गी राजा ने जवाब दिया है कि मैं तो जब मुख्यमंत्री था, तब भी शासकीय योजनाओं के विज्ञापनों पर अपनी फोटो नहीं लगवाता था। मैं विचारधारा की राजनीति करता हूं न कि अपने सेल्फ प्रमोशन की। मैंने स्वयं ही अपनी फोटो लगवाने से मना किया हुआ है, ये शौक आपको मुबारक हो ‘महाराज’।
इन सभी बवालों के बीच आश्चर्यजनक रूप से आम आदमी पार्टी के मध्यप्रदेश में वो आक्रामक तेवर नदारद हैं, जो गुजरात चुनावों में दिखाई दिए थे। जानकार बताते हैं कि गठबंधन के बाद से ये असर दिखाई दे रहा है क्योंकि यदि ‘आप’ पार्टी मध्यप्रदेश में आक्रामक हुई तो फायदा भाजपा को ही होना है, भाजपा बड़ी ही उम्मीद के साथ ‘आम आदमी पार्टी’ के उग्र तेवरों का इंतजार कर रही है पर शायद ये इंतजार कभी खत्म नही होगा, ऐसे असर साफ दिखाई दे रहे हैं।
चलते चलते मध्यप्रदेश के आदिवासी जिलों में सक्रिय तेजतर्रार संगठन जयस के कई नेता इन दिनों भाजपा के संपर्क में हैं, जबकि परंपरागत तौर पर जयस कांग्रेस और वामपंथियों का समर्थक संगठन माना जाता है यदि भाजपा ने यहां सेंधमारी कर दी तो कांग्रेस पार्टी के लिए सफलता दूर की कौड़ी साबित हो सकती है।
पांच नंबर से इस बार अधिकारी
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर की पांच नंबर विधानसभा पर अंदरूनी खींचतान चरम पर है। अभी वर्तमान विधायक महेंद्र सिंह हार्डिया २०१८ के चुनावों में बहुत कम मार्जिन से जीते थे। अंदर खाने की खबर और कानाफूसी पर यकीन किया जाए तो खबर ये है कि इस सीट पर कांग्रेस की स्थिति बराबर की टक्कर वाली है। ये और बात है कि कांग्रेस यहां पर सफल नहीं हो पाती है। इस बार भी कांग्रेस से कद्दावर नेता सत्यनारायण पटेल फिर से दौड़ में हैं और हिसाब चुकता करने के मूड में हैं। इधर भाजपा के अंदर ये खबर है कि महेंद्र हार्डिया को टिकिट शायद ही मिले। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि टिकट किसको मिलेगा? दावेदारों पर यदि नजर डालें तो इस बार एक पूर्व पार्षद और ओबीसी लीडर नानूराम कुमावत के अलावा गौरव रणदिवे भी अपना अपना दावा ठोक रहे हैं, लेकिन खबरी ये बता रहे हैं कि इस बार इस टिकिट पर जो एलान होगा वो चौंकानेवाला हो सकता है। वो इसलिए कि इस सीट पर भाजपा को ऐन वक्त पर संघ की टोली ने विजय दिलाई थी और चुनाव संचालन कर रहे संघ से आनेवाले संतोष मेहता का ही कमाल था, जिन्होंने संघ की टोलियों को आखिरी वक्त पर उतार कर ये सीट भाजपा की झोली में डाल दी थी। माना ये जा रहा है कि संघ की तरफ से युवा और तेजतर्रार अशोक अधिकारी को पांच नंबर से उम्मीदवार बनाया जा सकता है। खबर ये है कि भाजपा के बाकी दावेदारों को इस खबर के बाद से सांप सूंघ गया है, वो इसलिए कि पांच नंबर में संघ की टोलियां बहुत सक्रिय और असरदार हैं। बताया जा रहा है कि सेवा भारती से आनेवाले अशोक अधिकारी का विरोध शायद ही कोई करे, अशोक अधिकारी से संपर्क करने पर उन्होंने किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है। संघ के पदाधिकारी भी मौन हैं और ये मौन क्या गुल खिलाएगा ये तो वक्त बताएगा। फिलहाल पांच नंबर से अशोक अधिकारी की दावेदारी की खबर जम कर चर्चा का विषय बन रही है और बाकी भाजपाई अशोक अधिकारी के नाम चल जाने से चारों खाने चित्त नजर आ रहे हैं। अब ये दांव इतना उल्टा है कि उन्हें न निगलते बन रहा है न उगलते, फिलहाल ‘अधिकारी नाम के अधिकारी नहीं हैं बल्कि संघ के एक दायित्ववान अधिकारी भी हैं तो खबरी बता रहे हैं कि भाजपा के लोग जरा बच के जरा हट के बोलियो, वाली नीति पर चलते हुए मामला वक्त पर ही छोड़ने में समझदारी समझ रहे हैं।
(लेखक मध्यप्रदेश की राजनीतिक पत्रकारिता में गहरी पकड़ रखते हैं, प्रदेश के सामाजिक-आर्थिक विषयों पर लगातार काम करने के साथ कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन भी करते हैं।)