मुख्यपृष्ठस्तंभपारेटिक्स : जात न पूछो साधु की!

पारेटिक्स : जात न पूछो साधु की!

प्रणव पारे
भोपाल

बड़े ही अचरज की बात है कि मध्य प्रदेश में कभी हिंदुत्व का परचम लहरानेवाली उमा भारती अब जातिवादी राजनीति की ओर बढ़ती दिखाई दे रही हैं। ये परिवर्तन अचानक नहीं हुआ है। इससे पहले भी उमा भारती ने लोधी समाज के लोगों को अपने विवेक से वोट डालने की सलाह दी थी, जिसका राजनैतिक गलियारों में विशेष अर्थ निकाला गया था। उमा भारती मध्य प्रदेश के ओबीसी लोधी समाज से आती हैं और उनका इस तबके पर जबरदस्त प्रभाव माना जाता है। हिंदुत्व का शंखनाद करनेवाली भाजपा में अब धीरे-धीरे हिंदुत्व के ऊपर जातिवादी राजनीति का रंग चढ़ने लगा है। जानकार बताते है कि पिछले १४ वर्षों से मध्य प्रदेश में शिवराजसिंह चौहान ने लगातार मुख्यमंत्री रहकर गाहे-बगाहे ओबीसी कार्ड को हवा दी है। इसके अलावा हाल ही में मध्य प्रदेश की दूसरी अन्य ओबीसी जातियों में ये विश्वास दृढ़ हो गया है कि प्रदेश का मुख्यमंत्री ओबीसी के अलावा कोई दूसरा बन ही नहीं सकता। इसी भरोसे का परिणाम है कि कट्टर हिंदुत्व की राजनीति करनेवाली फायर ब्रांड नेता उमा भारती को भी अब ये लगने लगा है कि उन्हें भी इस हिंदूवादी छवि से अब कोई खास लाभ नहीं मिलेगा, ऐसे में यदि उन्हें मुख्यधारा की राजनीति में आना है तो ओबीसी वाली छवि को मजबूत करना ही होगा। इस बात को बल तब मिला, जब उमा भारती ने ओबीसी नेताओं के साथ बैठक की और कहा कि ६० प्रतिशत आबादी को उनके अधिकार दिला कर रहूंगी। उमा ने कहा कि ३३ प्रतिशत आरक्षण को १०० मानकर २७ प्रतिशत ओबीसी को आरक्षण दिया जाए और यहां तक कह दिया कि सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित सीटों पर भी एससी-एसटी और ओबीसी को टिकिट दिया जाए। इससे एक कदम आगे बढ़ कर पूर्व में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने धाकड़, मीना, जाट, दांगी और अन्य कई ओबीसी जातियों के लिए कल्याण बोर्ड बनाने की घोषणा की थी, जबकि मुख्यमंत्री स्वयं भी ओबीसी की ही एक जाति किरार से आते हैं, जिसकी मध्य प्रदेश में अच्छी खासी संख्या है। धीरे-धीरे भाजपा की हिंदुत्व वाली छवि की धार भोथरी पड़ने लगी है और हिंदू समाज में सबसे ज्यादा डिवीजन भाजपा के कारण ही हो रहा है।
एक जानकार ने चुटकी लेते हुए कहा कि वो भी क्या दिन थे, जब अविभाजित मध्य प्रदेश में एक से बढ़कर एक ब्राह्मण मुख्यमंत्री हुए, जिसकी कल्पना आज के मध्य प्रदेश में दूर की कौड़ी है। बात भी सही है, मध्य प्रदेश के बाकि अन्य जातियों में भी अब इस बात को लेकर गहरा असंतोष उभर रहा है। भाजपा का परंपरागत मध्यमवर्गीय और उच्च जाति का समर्थक वोटर भी धीरे-धीरे इस बात को मानने लगा है कि वाकई भाजपा में हिंदुत्व की वो धार नहीं रही, जिसके लिए उसे पहचाना जाता था। यह बात भाजपा के लिए कहीं खतरे की घंटी न साबित हो जाए।
ज्योतिरादित्य का द्वंद्व
सिंधिया अपने समर्थकों को संभालने में बुरी तरह विफल हो रहे हैं। इधर, भाजपा में भी भगदड़ मची हुई है। कौन किसको वैâसे संभाले, समझ नहीं आ रहा है? कमलनाथ की खामोश रणनीति भाजपा के रणनीतिकारों को खूब छका रही है। भाजपा का रोज एक न एक नेता कांग्रेस, बसपा या आप पार्टी में शामिल हो रहा है। दूसरी तरफ, कांग्रेस से भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही भाजपा में रच बस गए हों, लेकिन उनके समर्थक या तो खुद भाजपा में असहज हैं या भाजपा के लोग उनसे सहज हैं। चंबल और मालवा में सिंधिया का अच्छा खासा प्रभाव है, लेकिन यहां पर सिंधिया समर्थक नेताओं और भाजपाइयों में जरा भी नहीं बन रही है। सिंधिया की दिक्कत यह है कि यदि वे भाजपा में स्वयं को सहज कर भी लें तो उनके समर्थक उनको हमेशा दुविधा में बनाए रखते हैं।
वार-पलटवार जारी है
मध्य प्रदेश में आसन्न विधानसभा चुनावों को देखते हुए दोनों ही दल एक-दूसरे पर आरोप और प्रत्यारोप लगा रहे हैं। कमलनाथ ने हाल ही में अपने बयान में कहा कि भाजपा को शिवराज को अपना सीएम का चेहरा बताने में शर्म क्यों आ रही है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार द्वारा लगातार लिए जानेवाले कर्ज को लेकर भी कांग्रेस पार्टी के प्रदेश मुखिया कमलनाथ जबरदस्त नाराज दिख रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा भी पलटवार में कोई सुस्ती नहीं दिखा रही है। वैâबिनेट मंत्री गोपाल भार्गव ने कांग्रेस पर खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया और कहा कि ये माल टिकाऊ है, बिकाऊ नहीं है।
अभी तो हम जवान हूं
मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के संगठन में ७० साल से ऊपर वाले नेताओं को इस बार के विधानसभा चुनावों में टिकिट न देने की अघोषित गाइडलाइन के खिलाफ करीब १७ बुजुर्ग नेताओं ने मोर्चा खोल रखा है, जिनमें नागेंद्र सिंह, गोपाल भार्गव, पारस जैन और सीता शरण शर्मा, अजय बिश्नोई प्रमुख हैं। इन नेताओं का कहना है कि देश के ऊर्जावान प्रधानमंत्री भी ७३ साल के हैं और उन्हीं की प्रेरणा से हम सार्वजनिक जीवन में मुस्तैदी से डटे हुए हैं। हमारी दसों इंद्रियां काम कर रही हैं। अब ये तो संगठन को सोचना है कि इस मसले को वैâसे निपटाना है? उम्र दराज इन नेताओं की इन चुनावों में क्या स्थिति बनती है ये भी देखना है, क्योंकि इन सभी को अकेले मोदी जी से प्रेरणा नहीं मिल रही, बल्कि कांग्रेस के प्रदेश के मुखिया कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और भी बहुत से नेता भी हैं। वो कहावत है कि उम्मीदों से तो आकाश टिका है। बहरहाल, देखना ये है कि मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनावों का ऊंट किस करवट बैठेगा?
(लेखक मध्यप्रदेश की राजनीतिक पत्रकारिता में गहरी पकड़ रखते हैं, मध्यप्रदेश के सामाजिक-आर्थिक विषयों पर लगातार काम करने के साथ कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लेखन भी करते हैं।)

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