सामना संवाददाता / मुंबई
गेटवे ऑफ इंडिया की जेट्टी के आधुनिकीकरण का रास्ता हाई कोर्ट ने साफ कर दिया है। कोर्ट ने प्रोजेक्ट के लिए तय पात्रता नियमों को सही ठहराते हुए मेरीनेटेक इंडिया सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड की याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता कंपनी का आरोप था कि ये नियम वेस्ट कोस्ट मरीन को फायदा पहुंचाने के लिए बनाए गए थे।
जेट्टी आधुनिकीकरण के लिए मंत्रालय ने निविदा प्रक्रिया में शामिल कंपनियों के लिए पोंटून की व्यवस्था और उसकी देखभाल का १० साल का अनुभव अनिवार्य किया था। याचिकाकर्ता कंपनी के पास यह अनुभव नहीं था इसलिए उन्होंने इसे ३ साल तक सीमित करने की मांग की थी। बंदरगाहों के जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्यों को देखते हुए मंत्रालय ने कहा कि केवल अनुभवी और भरोसेमंद ठेगेदारों को ही ऐसे प्रोजेक्ट्स सौंपे जाने चाहिए। यह शर्त सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए लगाई गई थी। मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने मंत्रालय के नियमों को प्रोजेक्ट की तकनीकी जरूरतों के अनुरूप मानते हुए याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि नियम न्यायोचित है और किसी विशेष कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं बनाए गए।