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मरीजों को मिलेगी राहत, बंद होगा ब्रांडेड दवाओं का गंदा धंधा! चिकित्सकों को लिखनी होगी जेनेरिक दवाएं

धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
हिंदुस्थान के चिकित्सकों के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की ओर से २ अगस्त को नए नियमों का नोटिफिकेशन जारी किया गया है। इसके तहत अब चिकित्सकों को हर हाल में जेनेरिक दवाएं ही लिखनी होंगी। एनएमसी ने सख्त चेतावनी दी है कि नए नियम में यदि किसी तरह की कोताही बरती गई है, तो संबंधित चिकित्सकों के प्रैक्टिस लाइसेंस सस्पेंड कर दिए जाएंगे। इतना ही नहीं नए नियमों में अन्य दंड के प्रावधान भी किए गए हैं। एनएमसी के इस कदम से कथित ब्रांडेड दवाओं के गोरखधंधे पर लगाम लगेगी और जनता को राहत मिलने की उम्मीद है।
हिंदुस्थान में जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तुलना में ३० से ८० प्रतिशत तक सस्ती होती हैं। जेनेरिक और ब्रांडेड दवाओं की गुणवत्ता और असर में कोई अंतर नहीं होता, लेकिन तमाम बड़ी कंपनियां ऊंची कीमत वाली दवाइयों को प्रिस्क्राइब करने के लिए कई ऑफर चलाती रहती हैं। वहीं ब्रांडेड दवाइयां आदमी की जेब पर भारी पड़ती हैं। ऐसे में जेनेरिक दवाइयां लिखने पर स्वास्थ्य पर होनेवाले खर्च में कमी आएगी। एनएमसी के इस फैसले से देश में ब्रांडेड दवाओं के गंदे धंधे पर लगाम लगेगी।
एनएमसी नियमों के अनुसार चिकित्सकों को जेनेरिक दवाएं ही लिखनी होंगी। इस आदेश का बार-बार उल्लंघन करने पर चिकित्सक का प्रैक्टिस करने का लाइसेंस एक विशेष अवधि के लिए सस्पेंड कर दिया जाएगा। साथ ही चिकित्सकों को यह भी निर्देश दिया गया है कि वे यदि किसी मरीज को दवाएं लिख रहे हैं, तो उसे स्पष्ट भाषा में लिखें, ताकि कोई भी पढ़ सके। नेशनल मेडिकल कमीशन ने आदेश दिया है कि दवाइयों के नाम अंग्रेजी के कैपिटल लेटर्स में लिखे जाने चाहिए। अगर हैंडराइटिंग सही नहीं है, तो पर्ची को टाइप कराकर मरीज को प्रिस्क्रिप्शन दिया जाए। एनएमसी ने एक टेम्पलेट भी जारी किया है। इस टेम्पलेट का उपयोग नुस्खा लिखने के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने आदेश में कहा कि अस्पतालों और चिकित्सकों को मरीजों को जन औषधि केंद्रों और अन्य जेनेरिक फार्मेसी दुकानों से दवाएं खरीदने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। मेडिकल छात्रों और जनता को उनके ब्रांडेड समकक्षों के साथ जेनेरिक दवाओं की समानता के बारे में शिक्षित करते हुए उनके प्रचार को बढ़ावा देना चाहिए।
ब्रांडेड दावों के मूल्य में अंतर
जानकारी के अनुसार बुखार के लिए इस्तेमाल की जानेवाली डोलो ६५० की ब्रांडेड गोलियां जहां ३३ रुपए में बिकती हैं, वहीं ये जेनेरिक दुकानों पर केवल १५ रुपयों में ही उपलब्ध हैं। इसी तरह ब्रांडेड इंसुलिन ग्लोरिया इंजेक्शन १०० आईयू प्रति एमएल जहां ७२२ रुपए में बिक रहे हैं, वहीं यह जेनेरिक दुकानों पर महज ३४० रुपए में ही मिल रहे हैं। एमलोडीपाइन ५ एमजी की १० गोली जेनेरिक दुकानों पर मात्र ५.३० रुपए में बिकती हैं, यही दवा ब्रांडेड कंपनी की खरीदने पर २८ रुपए में मिलेगी। एंटीबायोटिक सेफिक्सिम २०० एमजी की १० गोलियां जेनेरिक दुकानों पर ५३ रुपए में उपलब्ध है। वहीं ब्रांडेड कंपनी की लेने पर ११० रुपए खर्च करने पड़ते हैं। ब्रांडेड कंपनी की पैंटोप्राजोल गैस्ट्रो रेजिस्टेंट ४० एमजी ९० रुपए में बिकती है, वही जेनेरिक दुकानों पर महज १२ रुपए में मिल जाती है।
पहले भी दिए गए थे निर्देश
भारतीय चिकित्सा परिषद विनियम, २००२ में कहा गया है कि प्रत्येक चिकित्सक को स्पष्ट रूप से और विशेषकर बड़े अक्षरों में जेनेरिक दवाएं लिखनी चाहिए। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ने सभी केंद्र संचालित अस्पतालों को केवल जेनेरिक दवाएं लिखने का पहले भी निर्देश दिया है। इसी तरह के निर्देश सभी सीजीएचएस डॉक्टरों और वेलनेस सेंटरों को भी जारी किए गए हैं। हालांकि इसमें दंड का प्रावधान नहीं किया गया था। इसलिए अभी तक इसे कोई भी चिकित्सक गंभीरता से नहीं ले रहा था।
… तो दवा कंपनियां दूसरे ब्रांड से करती हैं उत्पादन और विपणन
ब्रांडेड जेनेरिक दवाएं वे हैं जिनकी पेटेंट अवधि समाप्त हो गई है और दवा कंपनियां उनका उत्पादन और विपणन दूसरे ब्रांड से करती हैं। ये दवाएं ब्रांडेड पेटेंट दवाओं के मुकाबले सस्ती हो सकती हैं लेकिन जेनेरिक संस्करण के मुकाबले महंगी होती हैं। ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं की कीमतों पर कम नियमन नियंत्रण होता है।

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