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वोटिंग से जनता ने बनाई दूरी!

दिल्ली से
योगेश कुमार सोनी
चुनाव आयोग द्वारा मतदान के लिए जागरूक करने के लिए करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद भी मतदाता वोट नहीं डाल रहा है। अगर २०१९ में हुए मतदान के पहले चरण से तुलना की जाए तो इस बार पहले फेज में कम वोटिंग हुई है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की चर्चा करें तो आठ सीटों पर लोकसभा चुनाव के पहले चरण में ६०.५९ प्रतिशत मतदान हुआ। सबसे ज्यादा ६६.६५ प्रतिशत मतदान सहारनपुर में हुआ, जबकि रामपुर में ५५.७५ प्रतिशत मतदान के साथ सबसे कम वोटिंग हुई। वर्ष २०१९ के मुकाबले पहले चरण की इन सीटों पर करीब ५.९ फीसदी कम वोट पड़े हैं। हालांकि, इसके अलावा भी हर जगह के आंकड़े बताने के लिए हैं, लेकिन सवाल यह है कि आखिर जिस ऊर्जा के साथ पक्ष-विपक्ष चुनाव प्रचार कर रहा है, उस स्तर पर लोग वोट डालने में रुचि क्यों नही ले रहे हैं। इसके पीछे हर किसी की अलग-अलग मंशा या वजह हो सकती है, लेकिन जनता का लोकतंत्र के इतने बड़े महापर्व में अपनी भागीदारी न निभाना लोकतंत्र के गलत संदेश देने जैसे हैं। बीते कई वर्षों से हम समझ व देख रहे हैं कि हमारे एक वोट की कीमत है, लेकिन न जाने हम इसको किस आधार पर हल्के में ले लेते हैं। स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि जितना लोग सोशल मीडिया पर अपनी जागरूकता दिखाते हैं, उतनी हकीकत में नहीं। तमाम लोग अपना समर्थन अपनी-अपनी पसंदीदा पार्टी व नेता को खुलेआम देते हैं, लेकिन उसका फायदा नेता या आपको तभी तो मिलेगा, जब उसके लिए वोट डालकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करेगें। एक आंकड़े के अनुसार, देश में १८ साल की उम्र पूरी करने वाले युवाओं में से महज ३८ प्रतिशत ने २०२४ के चुनावों के लिए खुद को मतदाता के रूप में रजिस्टर्ड कराया है। राजनीतिक विशेषज्ञ इस घटनाक्रम से चिंतित हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या युवाओं की लोकतंत्र में रुचि खत्म हो गई है? या वे वोट डालना व्यर्थ मानने लगे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार व दिल्ली में हाल ही में १८ साल पूरा करने वाले युवाओं में से २५ प्रतिशत से भी कम ने खुद को मतदाता के रूप में रजिस्टर्ड कराया है। यह संख्या बिहार १७ प्रतिशत के साथ सबसे कम है, लेकिन राजनीतिक रूप से सक्रिय महाराष्ट्र की स्थिति भी २२ प्रतिशत वोटर रजिस्ट्रेशन के साथ बहुत बेहतर नहीं है। वोट वाले दिन की छुट्टी को वह एंजॉय करना चाहते हैं और उनको लगता है कि वोट डालना तो बुजुर्गों व खाली लोगों का काम हैं, लेकिन युवा बहुत बड़ी गलतफहमी में हैं। वे यह नहीं समझ पा रहे कि एक तथ्यहीन भविष्य का निर्माण कर रहे हैं। आने वाले समय में आने वाली पीढ़ी के लिए भी इसकी गंभीरता खत्म कर देंगे। हम इस बात को जानते हैं कि भारत युवाओं का देश है और सबसे ज्यादा युवा भी हमारे यहां ही हैं। पूरी जिंदगी पड़ी होती है मौज-मस्ती के लिए लिए, मात्र एक घंटा निकालकर वोट डालना उनको बहुत भारी लगता है। युवा चर्चा तो ऐसे करते हैं मानो वे अपनी पूर्ण रूप से स्थिति दर्ज कराएंगे लेकिन चुनाव वाले दिन बिल्कुल गायब हो जाते हैं। अब से दशकभर पूर्व भी जो युवा पहली बार वोट डालते थे, वे वोटिंग वाले दिन को बहुत उत्साहित तरीके से जीते थे। अब धीरे-धीरे रफ्तार कम होने लगी है, जो लोकतंत्र के लिए घातक है। दरअसल, अब दौर बिना किसी की गुणवत्ता की जांच के आधार पर चल पड़ा और भेड़चाल का ट्रेंड ज्यादा है। यदि किसी ने कॉलेज या ऑफिस में कह दिया कि वो तो चुनाव वाले दिन बाहर जा रहा है तो अधिकतर लोग उसको ही फॉलो करने लगते हैं और अपने वोट को व्यर्थ करने में बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते। जितनी ऊर्जा कॉलेज या अन्य किसी भी तरह के चुनाव में देखने को मिलती है, उतनी उपस्थिति वह चुनावों में दर्ज नही करवा पा रहे हैं।

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