सामना संवाददाता / मुंबई
कबूतर भले ही शांति के प्रतीक होते हैं, लेकिन उनका मल जहां पर्यावरण को दूषित करता है तो वहीं इंसानों के स्वास्थ्य को भी खतरे में डालता है। चिकित्सकों के मुताबिक, इनका मल बैक्टीरिया, कवक और वायरस का कॉकटेल होता है, जो सांस से जुड़े कई रोग दे सकता है। फिलहाल, इस खतरे को भांपते हुए मुंबई समेत कई मनपाओं ने कबूतर को दाना डालने पर रोक लगा दी है।
उल्लेखनीय है कि हाल ही में कबूतर की बीट के लंबे समय तक संपर्क में रहने के कारण दिल्ली के एक लड़के को फेफड़ों की एक दुर्लभ जानलेवा बीमारी हो गई, जो देश की स्वास्थ्य व्यवस्था को चिंता में डाल दिया है। इसके साथ ही इसके संभावित खतरों को समझना और सुरक्षा के लिए प्रभावी रोकथाम उपायों को लागू करना अब महत्वपूर्ण है। मुंबई के श्वसन विकारों के विशेषज्ञ डॉ. अनिल सिंघल ने कहा कि कबूतर की बीट की बूंदों में प्रोटीन होता है जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर कर सकता है, जिससे श्वसन संबंधी कई समस्याएं हो सकती हैं। इसके लंबे समय तक संपर्क में रहने से फेफड़ों में सूजन की स्थिति तक पैदा हो सकती है।
डॉ. सिंघल ने कहा कि एलर्जी से पीड़ित व्यक्तियों को छींक आना, नाक बहना और आंखों में खुजली जैसे लक्षण अनुभव हो सकते हैं। इसके अलावा मल में मौजूद बैक्टीरिया और कवक श्वसन संक्रमण का कारण बन सकते हैं। अस्थमा जैसी पहले से मौजूद श्वसन स्थितियों वाले लोगों को गंभीर लक्षणों का अनुभव हो सकता है।
सीधे संपर्क से बचें
कबूतरों और उनकी बीट से संपर्क कम से कम करें। उनके बाद सफाई करते समय दस्ताने और मास्क पहनें। जिन क्षेत्रों में कबूतर अक्सर आते हैं, उन्हें कीटाणुनाशक और पानी का उपयोग करके नियमित रूप से साफ करें। झाड़ू लगाने या वैक्यूम करने से बचें, क्योंकि इससे प्रदूषक तत्व पैâल सकते हैं। कबूतरों को बसेरा बनाने या घोंसला बनाने से हतोत्साहित करने के लिए पक्षी जाल, कीलें या अन्य अवरोधक लगाएं।