सामना संवाददाता / नई मुंबई
नई मुंबई के शिल्पकार होने का दावा करने वाली सिडको, नई मुंबई की प्रशासनिक इकाई नई मुंबई महानगरपालिका या फिर नई मुंबई की दशा-दिशा बदलने के लिए मर-मिटने का दावा करने वाले अवसरवादी नेताओं का झुंड, सभी नई मुंबईकरों को समुचित रूप से विकसित खेल का मैदान देने में या तो नाकामयाब रहे या फिर उन्हें इस बात का कोई लेना-देना ही नहीं है। यहां के खेल मैदानों के साथ खेला हो गया है।
दरअसल, जब नई मुंबई का विकास हो रहा था, तब इस बात को अनदेखा किया गया होगा कि सात नोड में बसने जा रही इस नगरी में खेल मैदान समुचित अनुपात में बनाए जाएंगे। लेकिन इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया। वरना ऐसा क्यों है कि कई नोड में काफी खूबसूरत खेल मैदान हैं और कुछ नोड मैदान के लिए तरस रहे हैं।
गौर करने वाली बात ये है कि नई मुंबई महानगरपालिका ने सिड़को से १५५ भूखंडों की मांग की थी। इनमें से पिछले ३० वर्षों में महानगरपालिका को सिर्फ ६९ भूखंड ही मिले हैं। ६९ भूखंडों में से ५० भूखंडों पर ही मैदान बनाए गए हैं। यदि स्पोर्ट्स ग्राउंड की बात की जाए तो यहां पर यशवंतराव चव्हाण ग्राउंड और राजीव गांधी स्टेडियम के अलावा कोई और सुनियोजित खेल मैदान नहीं है।
खेल मैदानों के विकसित न हो पाने की एक वजह शिवसेना (बालासाहेब उद्धव ठाकरे) पक्ष के जिलाध्यक्ष विट्ठल मोरे बताते हैं कि शैक्षणिक संस्थाओं की दादागीरी और उनकी उदासीनता है। जब सिडको ने नई मुंबई में शैक्षणिक संस्थाओं को भूखंड आवंटित किए, तब एक शर्त रखी गई थी कि स्कूल प्लेग्राउंड भी विकसित करेंगे और उस प्लेग्राउंड का इस्तेमाल स्कूल के अलावा स्थानीय लोग भी कर पाएंगे। ऐसे कई स्कूल हैं, जिन्होंने प्लेग्राउंड तो बनाए लेकिन उसे अपनी बपौती मान बैठे। मोरे बताते हैं कि किस तरह उन्होंने वाशी के सैक्रेड हार्ट स्कूल के प्लेग्राउंड का ताला तोड़कर स्थानीय बच्चों को वहां खेलने की अनुमति दिलाई। दूसरी ओर पत्रकार केसर सिंह बिष्ट सीधे-सीधे आरोप लगाते हैं कि भूखंड आवंटन में लूप होल निकालकर बिल्डरों को देने में ज्यादा रुचि रखता है। सिडको यानी सिडको के अधिकारी के लिए फायदे का सौदा होता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, घणसोली का वह भूखंड जो मैदान के लिए आरक्षित था और सिडको ने उसे बेचने के लिए टेंडर निकाल दिया।
क्रिकेट, फुटबॉल के अलावा एथलेटिक्स, वॉलीबॉल, खो-खो, कबड्डी, कुश्ती और फेंसिंग आदि जैसे बहुत सारे स्पोर्ट्स हैं, जिनके खिलाड़ियों के लिए कोई सुविधाएं मुहैया नहीं हैं। इस विषय पर भी गंभीरता से ध्यान देना बहुत जरूरी है।
-मिलिंद ठाकुर, खेल प्रशिक्षक (वेस्टर्न कॉलेज, सानपाड़ा)
नई मुंबई में ऐसे कई ग्राउंड हैं, जिन्हें निजी संस्थाओं ने प्लेग्राउंड डेवलप करने के नाम पर हथिया लिया है। ऐसे भी कई मैदान हैं, जिन पर स्थानीय और रसूखदार लोगों ने कब्जा जमा रखा है और प्रशासन उसे खाली करा पाने को लेकर बेबस है या फिर आंखें मूंदे हुए है।
-विट्ठल मोरे शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)