मुख्यपृष्ठनए समाचारकविता संवेदना की भूमि पर उपजती है-सुधाकर मिश्र

कविता संवेदना की भूमि पर उपजती है-सुधाकर मिश्र

सामना संवाददाता / मुंबई

कविता वेदना की भूमि पर अंकुरित होकर संवेदना से खुराक लेकर लहलहाती है। वह किसी का विरोध या प्रतिरोध करने के लिए नहीं, बल्कि मानव जीवन और समाज में शिवत्व लाने की आग्रही होती है। आज की पीढ़ी के लोग समय से जुड़कर रचनाकार में प्रवृत्त हैं, उन्हें कविता लिखने के लिए भाषा, शब्द चयन, विषय और अभ्यास की आवश्यकता है। यह वक्तव्य डॉ. सुधाकर मिश्र ने महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित रचनाकार से मिलिए कार्यक्रम में दिया। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ने अन्य कार्यक्रमों के साथ रचनाकार से मिलिए कार्यक्रम की शुरुआत की है, जिसके अंतर्गत वरिष्ठ रचनाकारों के व्यक्तित्व-कृतित्व को डिजिटल रूप में संरक्षित किया जाएगा। कार्यक्रम के आरंभ में हरिप्रसाद राय ने सुधाकर मिश्र के व्यक्तित्व और कृतित्व की जानकारी देते हुए यह बताया कि किस तरह भायंदर में सुधाकर मिश्र के आने के बाद मीरा-भायंदर क्षेत्र, रचनाकारों की प्रमुख स्थली बन गया है। हृदयेश मयंक ने सुधाकर मिश्र के व्यवहार और उनकी कविता की रचना प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए कहा कि सुधाकर मिश्र जीवन मूल्य के कवि हैं, उनका व्यवहार अनुकरणीय है।
माता सीता भारतीय मूल्य परंपरा की धरोहर
अमित तिवारी ने सुधाकर मिश्र का साक्षात्कार लेते हुए जिज्ञासा प्रकट की कि डिजिटल युग में काव्य ग्रंथों के प्रकाशन की प्रासंगिकता कितनी बची हुई है? मिश्र ने कहा कि यह सच है कि डिजिटल जमाने में लोग व्हाट्सएप और फेसबुक पर लिखकर तुरंत कवि बन जाने के लिए उद्यत हैं, लेकिन सच्चा कवि अपनी रचना को कई बार पढ़ता है, उसमें आवश्यक सुधार करता है, शब्द- चयन और छंद आदि विधानों से समन्वित करता है, तब सच्ची कविता बनती है। हरिप्रसाद राय ने साक्षात्कार लेते हुए उनसे पूछा कि क्या कारण है कि वह सीता जी के चरित्र से संबंधित खंडकाव्य लिखने की तैयारी कर रहे हैं? सुधाकर मिश्र जी ने बहुत साफ-साफ कहा कि सीताजी या उस तरह की नारियां केवल एक व्यक्ति नहीं है, बल्कि भारतीय मूल्य- परंपरा की धरोहर हैं। आवश्यकता है कि ऐसे नारी चरित्र के मूल्य और आदर्शों को समाज के बीच लाया जाए।
वर्तमान में अतिआवश्यक हैं प्रबंध काव्य
महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी के कार्याध्यक्ष शीतला प्रसाद दुबे ने जिज्ञासा प्रकट की कि आज के समय में जहां लोग हाइकू या छोटी से छोटी कविताएं लिखने की तरफ बढ़ रहे हैं ऐसे में खंडकाव्य और महाकाव्य जैसे वृहद् ग्रंथों की कितनी प्रासंगिकता है? मिश्र जी ने बहुत साफ-साफ कहा कि आज का समय ऐसा है कि जिसमें परिवार, मानव -जीवन, उसके संबंध और जीवन की व्यावहारिक प्रबंधात्मकता खत्म होती जा रही है, इसलिए यह आवश्यक है कि हम प्रबंध काव्य के तत्व और उसके मूल्यों को ग्रहण करते हुए अपने जीवन में भी प्रबंधात्मकता ले आएं। आवश्यक है कि हम क्षणजीवी समाज में प्रबंध कवियों के माध्यम से जीवन के प्रबंधन और जीवन के जोड़ने वाले तंतुओं का विचार अवश्य करें। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ उद्घोषक आनंद सिंह ने किया। मृदुल तिवारी महक की सरस्वती वंदना ने पूरा माहौल काव्यमय कर दिया। राम व्यास उपाध्याय, उमेश शुक्ल, रासबिहारी पांडेय, एम एल गुप्त, त्रिभुवन दुबे, उमेश पांडे, ओमप्रकाश दुबे, अवनीश सिंह, विकास दुबे जैसे अनेक विद्वानों और रचनाकर्मियों की उपस्थिति में कार्यक्रम संपन्न हुआ।

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