सैयद सलमान मुंबई
महाराष्ट्र में अलग-अलग पार्टियों से टूट कर कई नेता भाजपा, शिंदे गुट या अजीत की एनसीपी में प्रवेश कर रहे हैं। शिंदे, फडणवीस और अजीत के बीच आपस में ही यह रस्साकशी है कि कौन कितने नेता तोड़ सकता है। सरकारी फंड के अलावा निजी रूप से भी कई तरह का लालच देकर नेताओं का खुला भर्ती अभियान जारी है। इसके पीछे केंद्रीय एजेंसियों का भय ज्यादा असर कर रहा है। कई विवादित चेहरे अब शिंदे-फडणवीस-अजीत की तिकड़ी के साथ ऐसे मंच साझा कर रहे हैं, मानो सब के सब अब दूध से धुलकर पाक-साफ हो गए हों। एक नगरसेवक स्तर के नेता ने भी भाजपा का इसी मोह में दामन थामा। स्थानीय स्तर पर उनका भाजपा में विरोध हुआ लेकिन `ऊपर’ किसी ने नहीं सुनी। श्रीमान शामिल तो हो गए, कुछ दिन उन्हें तवज्जो भी खूब मिली, लेकिन अब उनके फोन भी नहीं लिए जा रहे। अपने साथियों को विकास के नाम पर भाजपा में शामिल होने का छलावा देने वाले श्रीमान अब खुद को छला हुआ महसूस कर रहे हैं। बस न वो किसी से `कह’ पा रहे हैं, न स्थिति `सह’ पा रहे हैं।
वायनाड पर विवाद
कांग्रेस की लोकसभा चुनाव के लिए ३९ उम्मीदवारों वाली पहली सूची में सिर्फ १२ उम्मीदवार ऐसे हैं, जिनकी उम्र ५० साल से कम है। कांग्रेस को अपने पुराने चेहरों पर ज्यादा विश्वास है। जोश के साथ उसे होश की भी जरूरत है। पहली सूची में वायनाड से राहुल गांधी का नाम भी शामिल है। कांग्रेस के लिए यह चुनाव `जीवन और मरण’ वाली स्थिति का है। आगामी चुनाव की महत्ता को देखते हुए कांग्रेस ऐसे नेताओं को चुनावी समर में उतार रही है, जिनकी राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ प्रदेश में भी अच्छी पकड़ हो। हालांकि, राहुल गांधी को वायनाड से चुनाव लड़ाने की घोषणा से भाकपा ने नाराजगी जताई है। उसने यहां से पहले ही डी राजा की पत्नी एनी राजा को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था। भाकपा नेताओं की राय है कि राहुल गांधी को वहां से चुनाव लड़ना चाहिए, जहां उनकी भाजपा से सीधी टक्कर हो। इस बात से कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बीच टकराव बढ़ने के आसार हैं। इस स्थिति को टाला नहीं गया तो भाजपा को इंडिया गठबंधन पर उंगली उठाने का मौका मिल जाएगा।
अगला निशाना नवीन?
दूसरों के घरों में ताक-झांक कर उन घरों में क्लेश करवाने वाली पार्टी का अगला निशाना अब ओडिशा हो सकता है। आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव को लेकर ओडिशा में बीजेडी और भाजपा के बीच सीटों का बंटवारा फिलहाल नहीं हो सका है। ओडिशा में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं। लोकसभा के लिए तो शायद सहमति बन भी जाए, लेकिन विधानसभा चुनाव को लेकर दोनों में सहमति नहीं बन पा रही है। दोनों पार्टियों में कड़ी सौदेबाजी के बीच नवीन पटनायक राज्य की कुल १४७ विधानसभा सीटों में से कम से कम १०० सीटों की मांग पर अड़ गए हैं। नवीन पटनायक की समझ में शायद आ गया है कि वह उस पार्टी के साथ गठबंधन जारी रख रहे हैं, जिसे अपने सहयोगियों को खत्म करने में ही आनंद आता है। वैसे नवीन पटनायक के साथ समस्या यह है कि वे राष्ट्रीय परिदृश्य की परवाह नहीं करते और ओडिशा की राजनीति में ही खुश हैं। कई राज्यों में तोड़-फोड़ कर सरकार बना लेने वाली भाजपा का अगला शिकार अगर नवीन पटनायक हो जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा।
न घर के न घाट के
लोकसभा चुनाव की तैयारियों के बीच बिहार में अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि कौन सी राजनीतिक पार्टी, किस गठबंधन के साथ, कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों में अपने सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे का मामला अब भी उलझा हुआ है। जन विश्वास महारैली में शामिल होने के बावजूद इंडिया गठबंधन में शामिल राजद, कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियां सीटों पर सहमति नहीं बना पाई हैं। इस बीच एलजेपी नेता चिराग पासवान पर सबकी निगाहें जमी हुई हैं। दरअसल, बिहार में एनडीए की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हुई सभाओं में राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस तो नजर आए, लेकिन खुद को मोदी का हनुमान कहने वाले उनके भतीजे चिराग पासवान उन सभाओं से दूर रहे। अब सवाल यह है कि वे खुद दूर हुए या उन्हें दूर रखा गया। इधर चिराग को इंडिया गठबंधन में शामिल होने का न्योता मिल रहा है। चिराग जल्द पैâसला कर लें, वरना वह न घर के रहेंगे न घाट के।