मुख्यपृष्ठग्लैमर‘राजनीति कभी हॉबी नहीं हो सकती!’ -सचिन पिलगांवकर

‘राजनीति कभी हॉबी नहीं हो सकती!’ -सचिन पिलगांवकर

फिल्म ‘गीत गाता चल’, ‘नदिया के पार’, ‘अंखियों के झरोखे से’, ‘त्रिशूल’ जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके और अपने जीवन के कई संस्मरण अपनी किताब ‘हाच माझा मार्ग’ में लिखनेवाले सचिन अभिनीत वेब सीरीज ‘सिटी ऑफ ड्रीम्स-३’ डिस्नी हॉट स्टार पर आरंभ हो चुकी है। पेश है, सचिन पिलगांवकर से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-

‘सिटी ऑफ ड्रीम्स-३’ करने की क्या वजह रही?
‘सिटी ऑफ ड्रीम्स’ के दोनों सीजन बहुत पसंद किए गए। उन दोनों ही सीजन का मैं भी हिस्सा रहा हूं, जिसमें अभिनय को मैंने बहुत एन्जॉय किया। निर्देशक नागेश कुकुनूर ने मुझे इस शो का ऑफर दिया। नागेश कुकुनूर और समीर नायर से मेरी मित्रता रही है और सुलझे हुए निर्देशकों के साथ काम करना मेरे संस्कारों में शामिल है।

सुना है आपका किरदार मुख्यमंत्री का है? राजनीति से आपको कितना लगाव है?
मुझे राजनीति से रत्ती भर भी लगाव नहीं है। लेकिन राजनीतिक क्षेत्र में मेरे कई मित्र हैं, जो धुरंधर नेता हैं। मैं अपने इन दोस्तों से मिलता हूं, लेकिन हमारे बीच पॉलिटिकल बातें नहीं होतीं। खैर, राजनीतिक हस्तियां बुरी होती है यह मैंने कभी माना नहीं और न ही सोचा। इन नेताओं के साथ मेरा व्यक्तिगत अनुभव हमेशा अच्छा ही रहा है। राजनीति कभी हॉबी नहीं हो सकती, यह ३६५ दिनों का काम है।

क्या कभी कोई पॉलिटिकल पार्टी जॉइन करने की इच्छा हुई?
मैं अभिनेता हूं, नेता नहीं। मैं चाहता हूं कि मैं अभिनेता ही बना रहूं, नेता न बनूं। एक-दो बार पॉलिटिकल पार्टी ज्वॉइन करने का ऑफर जरूर मिला था, लेकिन मैंने विनम्रतापूर्वक मना कर दिया था। राजनीति मेरा क्षेत्र नहीं, मुझे इससे कोई लगाव नहीं है।

अतुल कुलकर्णी, प्रिया बापट जैसे कलाकारों के साथ काम करने का अनुभव कितना अलग रहा?
अतुल कुलकर्णी ने आज तक जितने भी किरदार निभाए सभी में वेरायटी थी। मैं उनके अभिनय का हमेशा कायल रहा हूं। उनके साथ काम करना बड़ा रोमांचक रहा। प्रिया बापट और एजाज खान दोनों मंजे हुए फनकार हैं।

अपने ६० वर्षों के करियर से आप कितने संतुष्ट हैं?
मराठी फिल्म ‘हा माझा मार्ग एकला’ से मैंने बतौर बाल कलाकार अपने करियर की शुरुआत की। चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर मैंने ६५ से अधिक फिल्में कीं। १९७५ में रिलीज हुई फिल्म ‘गीत गाता चल’ से मेन लीड का दौर शुरू हुआ। ‘बालिका बधू’, ‘नदिया के पार’, ‘त्रिशूल’ जैसी सफल फिल्मों के साथ मराठी फिल्मों में बतौर एक्टर, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, सिंगर, कोरियोग्राफर मेरा करियर परवान चढ़ा। भोजपुरी फिल्में भी मैंने काफी की। अब नए डिजिटल दौर में मैं ओटीटी प्लेटफॉर्म एन्जॉय कर रहा हूं। मैं संतुष्ट हूं। अपने सफर को हर मोड़ पर मैंने एन्जॉय किया।

फिल्म इंडस्ट्री में किन बदलावों को आप महसूस कर रहे हैं?
मेरी राय में बदलाव अक्सर अच्छे के लिए ही होते हैं। यह इसलिए भी अच्छे के लिए होते हैं क्योंकि बदलाव ही हमें आगे ले जाते हैं। अगर बदलाव नहीं होते तो कोई आगे नहीं बढ़ता। ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का मैं हिस्सा था। फिर कलर फिल्मों का दौर शुरू हुआ। टेक्निकली हमारी फिल्में बहुत अडवांस्ड हुईं। मैंने इन बदलावों को करीब से देखा और मैं इन सभी अच्छे बदलावों को स्वीकारता गया।

इतने लंबे करियर के बाद आप खुद को कैसे रिलेवेंट रख सके?
मैंने जो कुछ भी सीखा है सबसे पहले अपने लेखक-निर्देशक पिता शरद पिलगांवकर और मां के संस्कारों से सीखा है। मुझे बनाने में इस फिल्म इंडस्ट्री का बड़ा योगदान है। मैंने अपने निर्देशकों से सीखा। मरहूम एक्टर्स संजीव कुमार और मीना कुमारी ने मुझे निरंतर स्नेह और प्यार दिया, मैंने उनसे भी सीखा। दर्शकों ने मुझे बहुत प्यार दिया। इन सभी से मैं सीखता गया। जब मैं खुद निर्माता-निर्देशक बना, मैंने एक स्तरीय मनोरंजन दर्शकों को देने का प्रयास किया, शायद इसलिए मैं रिलेवेंट रहा।

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