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सियासतनामा : दोहरा मापदंड?

  • सैयद सलमान

दोहरा मापदंड?
दक्षिण के कर्नाटक में सरकती जमीन को देख भाजपा उत्तर पर अभी से ध्यान केंद्रित कर रही है। बेमौसम अमित शाह और भाजपा के अन्य कद्दावर नेताओं की उत्तर प्रदेश में सभाएं करवाने की योजना को आगामी लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। परिवारवाद, जातिवाद और तुष्टिकरण की राजनीति पर जब यूपी में अमित शाह ने भाषण दिया तो सोशल मीडिया में उनकी खूब खिल्ली उड़ाई गई। नाम ले-लेकर भाजपा के बड़े नेताओं के परिवार के सदस्यों का उल्लेख किया गया। जाति आधारित टिकट बंटवारे का उदहारण भी दिया गया। अभी-अभी तो उत्तर प्रदेश में भाजपा ने एक ब्राह्मण, एक वैश्य, एक मुस्लिम, एक अनुसूचित और दो पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधि मनोनीत किए हैं। और तो और भाजपा के तुष्टिकरण वाले बयान की भी खूब खिल्ली उड़ाई गई। सवाल उठाया गया कि क्या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति तारिक मंसूर को विधान परिषद भेजना तुष्टिकरण नहीं है? यानी भाजपा जब परिवारवाद, जातिवाद और तुष्टिकरण करे तो सही, लेकिन अन्य पार्टियां ऐसा ही करें तो गलत। क्या यह दोहरा मापदंड नहीं है?

दो कौड़ी की इज्जत!
जब तक आप सुर में सुर मिलाएं आप महान, वरना आपसे बड़ा कोई दुश्मन नहीं। यही इन दिनों गुलाम नबी आजाद के साथ हो रहा है। राहुल गांधी के खिलाफ टिप्पणियां करने वाले `आजाद’ अब कांग्रेस से तो `आजाद’ हैं लेकिन मोदी की तारीफ करने पर कांग्रेस नेता उन्हें मोदी का `गुलाम’ बता रहे हैं। दूसरी तरफ अपनी आत्मकथा ‘आजाद’ को लेकर अब वह भाजपा के भी निशाने पर हैं। इस किताब के जरिए कथित तौर पर कश्मीरी पंडितों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का उन पर आरोप लगाया जा रहा है। आजाद को जम्मू कश्मीर में ‘मौत और तबाही के लिए जिम्मेदार’ और ‘धर्मनिरपेक्षता की आड़ में सांप्रदायिक’ नेता बताया जा रहा है। ये वही आजाद हैं, जिनकी कांग्रेस से नाराजगी को भांपते हुए मोदी ने उनकी तारीफ में खूब कसीदे पढ़े थे। यहां तक कि पद्मभूषण पुरस्कार से भी नवाज दिया गया। उम्मीद थी कि वह भाजपा में जाएंगे लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी बनाने का रास्ता चुना। अब, जब उनकी किताब के पन्ने खुले तो भाजपा को यह रास नहीं आया। फिर क्या था, लिहाज का पर्दा हटा दिया गया और मोदी मित्र आजाद, दो कौड़ी के हो गए।

बिहार का पीके फैक्टर
बिहार विधान परिषद के चुनावी नतीजे चौंकाने वाले रहे। चुनाव नतीजों के बाद भाजपा उच्च सदन में सबसे बड़ी पार्टी बन गई। भाजपा ने अपनी पुरानी एक सीट को बचाते हुए एक अतिरिक्त सीट जीतकर नीतिश और तेजस्वी की जोड़ी को बड़ा झटका दिया। सबसे बड़ा उलटफेर कार्यकर्ता से राजनीतिक रणनीतिकार बने प्रशांत किशोर ने किया। उनके समर्थन वाले एक उम्मीदवार ने बिहार के सत्तारूढ़ महागठबंधन उम्मीदवार को हराकर विधान परिषद की एक सीट जीत ली। प्रशांत किशोर इन दिनों अपनी जन सुराज पदयात्रा को लेकर चर्चा में हैं। प्रशांत अपनी यात्राओं में मौजूदा राजनीति की नाकामियों का जिक्र करते हुए पीएम मोदी, बिहार के सीएम नीतिश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का खुलकर विरोध करते हैं। बिहार के इस सियासी घमासान पर आगे देखना है प्रशांत किशोर और क्या-क्या गुल खिलाते हैं?

किच्चा का सेफ गेम
कर्नाटक में दल-बदल और बयानबाजियों का दौर जारी है। चुनाव तक इसमें और तेजी आएगी। इस बार खलबली भाजपा में है। पिछले दिनों भाजपा विधायक एनवाई गोपालकृष्ण, विधान परिषद सदस्य बाबूराव चिंचानसुर, वरिष्ठ नेता मंजूनाथ कुन्नूर, मोहन लिंबिकाई सहित अन्य कई नेता और उनके समर्थक कार्यकर्ता भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। ६ बार के विधायक गोपालकृष्ण की एक तरह से यह घर वापसी है। जद (एस) विधायक केएम शिवलिंगे गौड़ा और एसआर श्रीनिवास भी कांग्रेस के साथ हो लिए। भाजपा और जद (एस) नेता जिस तरह से कांग्रेस का दामन थाम रहे हैं वह इस बात का इशारा है कि जनता के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों का भी ‘डबल इंजन सरकार की नाकामी’ के कारण हृदय परिवर्तन हो रहा है। वैसे जवाब में आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम किरण कुमार रेड्डी का भाजपा में प्रवेश कराकर, कर्नाटक चुनाव को प्रभावित करने की योजना बनाई गई लेकिन लोग इसे भाजपा का बचकाना कदम बता रहे हैं। कन्नड़ कलाकार सुदीप किच्चा को साथ लेकर जरूर भाजपा खुश है। हालांकि, किच्चा ने चुनाव नहीं लड़कर बस प्रचार करने का सेफ गेम खेला है।

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